संवाद


"कैसी परीक्षा और कैसी शिक्षा?"


शिक्षक बनने के लिए होने वाली परीक्षा में पेपर लीक कराने वाले भी शिक्षक हैं और लाखों रुपए देकर पेपर खरीदने वाले भी भावी-शिक्षक हैं तो बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह यह खड़ा हो गया है कि यह कैसी परीक्षा और यह कैसी शिक्षा?


सरकार द्वारा कड़े कानून लाए जाने के बावजूद भी पेपर लीक करने वाले समाजकंटक और उस पेपर को खरीदने के लिए तैयार बैठे समाज के लोग यदि सरकारी सख्ती और लाखों अभ्यर्थियों की बद्-दुआओं की परवाह नहीं करते हैं तो इसका मतलब है कि लोभ इतना बड़ा कैंसर बन चुका है कि सारी व्यवस्था डावांडोल हो चुकी हैं।


सरकार तो दोषी है ही किंतु क्या समाज उससे कम दोषी है?


क्या लोभ को समझनेवाली और समझानेवाली शिक्षा व परीक्षा की कोई दरकार नहीं?


हजारों रुपए फॉर्म भरने के समय खर्च हो जाते हैं और फिर परीक्षा केंद्र पर पहुंचने में हजारों रुपए और उस पर से पेपर लीक ; लाखों विद्यार्थियों के साथ क्या यह क्रूर मजाक नहीं ??


जो विद्यार्थी फॉर्म भरने का पैसा भी बामुश्किल जुटा पाते हैं, वे दूरदराज के परीक्षा केंद्र पर पहुंचने का खर्चा और कष्ट कितनी मुश्किलों से सह पाते होंगे.... और उस पर से पेपर लीक .....नौजवानों को नाउम्मीदी की ओर धकेलता जा रहा है।


मेरी सोच यह है कि नौजवान नाकाम होते रहें तब तक चिंता की कोई विशेष बात नहीं ; किंतु नौजवान नाउम्मीद होने लगें तो यह बहुत बड़े खतरे की घंटी है। क्योंकि नाकामी इंसान को और ज्यादा मेहनत के लिए तैयार करती है किंतु नाउम्मीदी व्यवस्था के प्रति विद्रोह से भर देती है। -


"नाकामी ने जिसका पुरुषार्थ बढ़ाया था


नाउम्मीदी ने उसको विद्रोही बनाया था।"


सरकार की ही नहीं बल्कि समाज और समस्त नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि नई पीढ़ी के साथ सहानुभूति ही नहीं समानुभूति से भरें और उनके बिखरते सपनों को सहेजने के लिए संबल प्रदान करने वाली व्यवस्था का निर्माण करें।


बरसों की पढ़ाई के बाद बामुश्किल परीक्षा का दिन आता है और परीक्षा अच्छा जाने की खुशी कुछ देर में ही पेपर लीक की खबर से काफूर हो जाती है।और अब तो प्रश्न पत्र बंटते ही पेपर लीक होने की खबर पहुंचने लगी है-


बरसों की कठिन साधना के साथ प्राण नहीं क्यों लेते हैं?


अब किस सुख के लिए मुझे धरती पर जीने देते हैं??"


रश्मिरथी में राष्ट्रकवि दिनकर ने ये पंक्तियां कर्ण के मुख से परशुराम के प्रति कहलवाई थी,जब उन्होंने अपना दिया हुआ ब्रह्मास्त्र-ज्ञान उससे वापस ले लिया था।


आज हर परीक्षार्थी कर्ण के रूप में आ गया है और यही प्रश्न खड़े कर रहा है- "वर्षों की कठिन साधना के बाद दी जाने वाली परीक्षा का पेपर लीक हो जाता है और वे सरकारी नौकरी रूपी ब्रह्मास्त्र को पाने से भ्रष्ट-व्यवस्था के कारण वंचित रह जाते हैं, तो तड़प तड़प कर जीने के लिए अब उन्हें क्यों छोड़ा जा रहा हैं???


क्रिसमस का आज वह शुभ दिन है जो उस ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है जिन्होंने कहा था कि पापी को पहला पत्थर वह मारे जिसने पाप न किया हो।


क्या पेपरलीक-महापाप में सरकारी-लापरवाही के साथ सामाजिक-लोभ की कोई जिम्मेदारी या हिस्सेदारी नहीं?


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे


क्रिसमस की शुभकामना🙏🌹