संवाद


"नए दृश्य देवभूमि के"


नए वर्ष 2023 का जश्न मनाने के लिए सपरिवार शिमला आने का भाग्य मिला। देवभूमि का दर्शन भाग्य होता है और अपनों के साथ नए वर्ष में अपनापन के पल हिमाचल में बिताना तो सौभाग्य होता है।


ऋषियों की तप:स्थली हिमालय की गोद में बसे हिमाचल जाने का यह कोई नया अनुभव नहीं था किंतु जो दृश्य इस बार प्रवेश करते वक्त नजर आ रहा था,वह एकदम नया था। शिमला के रास्ते में पहाड़ों पर पाए जाने वाले लंबे हरे-भरे पेड़ों के दर्शन नहीं हो रहे थे। हर छोटी-मोटी पहाड़ियां दूर से ही उजाड़ सी नजर आ रही थी।


सड़क निर्माण का कार्य अबाध गति से चल रहा था। सड़कों पर पड़े हुए रेत,गिट्टी और सीमेंट से उड़ने वाले धूलकणों ने पेड़ों की पत्तियों को मटमैले सफेद रंग में तब्दील कर दिया था। ज्यों-ज्यों गाड़ी ऊपर की ओर बढ़ रही थी, त्यों-त्यों मेरी सुनहरी स्मृतियों की शिमला विधवा सी नजर आ रही थी। पहले आकाश से छूते हुए लंबे पेड़ों की हरियाली के प्रेम में झुके हुए बादलों का समूह अपने आलिंगन में लेने को जहां बेताब दिखता था, वहां अब तो खिड़की खोलते ही धूलों के अंदर आने से सांस लेना मुश्किल पड़ रहा था।


विकास के नाम पर बनते जा रहे पत्थरों के मकान और चौड़ी होती कंक्रीट की सड़क ने आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु तपस्या-योग्य इस देवभूमि को पूर्णतया बदलकर धन की प्राप्ति हेतु मार्केट-भूमि बना दिया। प्रथम यात्रा के दर्शन में शिमला में आकर जिस आश्चर्यविमुग्ध भाव से मेरी आंखों ने सारे नजारों को अपने हृदय में कैद कर लेना चाहा था, इस यात्रा के दर्शन में विषाद-भाव से मैंने अपनी आंखें बंद कर ली।


जल के लिए ही नहीं बल्कि सांसो के लिए भी आज जो इंसान तड़प रहा है,वो इंसान ही विकास के नाम पर प्रकृति को रौंदकर अपनी मौत का इंतजाम कर रहा है। दानवी वृत्ति ने विज्ञान के साधनों का इस्तेमाल कर हिमालय देव की छाती में किल्लें ठोक दी और जगह-जगह से तन ही नहीं उनके मन को भी ख़रोंच दिया-


"हरे पहाड़ों को निर्वस्त्र कर उजाड़ बना दिया


पेड़ों को काटकर घर का फर्नीचर बना लिया"


घायल हुआ हिमालय नए वर्ष पर नई दृष्टि हेतु पुकार लगा रहा है। उस पुकार को संवेदनशील पर्यावरणप्रेमी अपने संवादशील लेखों के द्वारा सरकार को तथा संसार को सुनाने का प्रयास करते हैं; किंतु मुझे लगता है कि कान बधिर हो चुके हैं, आंखें अंधी हो चुकी हैं। अनाहत नाद को सुनने वाले कर्ण और पौधों में भी प्राण को देखने वाले नयन अब नहीं रहे।


प्रकृति क्रुद्ध होकर कभी सूखा तो कभी बाढ़, कभी भूकंप तो कभी भूस्खलन, कभी महामारी तो कभी महायुद्ध का जो दर्शन करा रही है; वह चेतावनी है। दानवी-वृत्ति के कारण ही कोरोना की विनाश लीला हम झेल रहे हैं।


करुणापूर्ण दैवीय वृत्ति ही प्रकृति के प्रति प्रेम से धरती को देवभूमि बना सकती है और हमें संपूर्ण- विनाश से बचा सकती है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे


नववर्ष की मंगलकामना🙏🌹