नरेंद्र मिटे तो विवेकानंद जन्मे
January 11, 2023संवाद
"नरेंद्र मिटे तो विवेकानंद जन्मे"
युवा-देश भारत युवाओं में आत्महत्या के बढ़ते दर को रोकने के लिए कोर्स तैयार करने पर विचार कर रहा है। यूजीसी ने सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटी को "राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति" हेतु योजना बनाने के लिए कहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में हर दिन लगभग 500 लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
आज से बहुत ज्यादा खराब परिस्थिति नरेंद्रनाथ दत्त के समय में थी। ब्रिटिशों की गुलामी और सामंती व्यवस्था के अत्याचारों ने जनमानस का गला घोंट रखा था। उस पर से अशिक्षा,अंधविश्वास और कुप्रथाओं ने रात के अंधेरे को और बढ़ा दिया था। इस अंधेरे को चीर कर विवेकानंद नाम का एक तरुण-सूरज निकला जिसने भारत ही नहीं बल्कि जगत को एक नई रोशनी से आलोकित कर दिया। वह रोशनी थी- आत्मज्ञान की रोशनी।
यदि यह देश आज भी आत्मज्ञान की इस रोशनी को पहचान जाए तो आत्महत्या की दर इतनी चिंताजनक नहीं हो सकती। विवेकानंद का संदेश ही नहीं बल्कि उनका जीवन भी कहता है कि-
"न फिक्रे गुरबत है,न अंदेशाए तन्हाई है
जिंदगी इतने हवादिशों से गुजर आई हैं
जिस हाल में लोग मरने की दुआ करते हैं
उस हाल में मैंने जीने की कसम खाई है।"
एक कहानी विवेकानंद कहा करते थे जो जीवन की भी सच्ची कहानी है-"एक गर्भवती शेरनी एक पहाड़ी से छलांग लगा रही थी। उसका बच्चा भेड़ों के झुंड में गिर गया। भेड़ों की तरह वह लसर-पसर कर चलता और मिमियाता। उस भेड़ों के झुंड पर एक दिन एक शेर ने आक्रमण किया। शेरनी के बच्चे को पकड़कर पानी में उसका चेहरा दिखाया और जोर से दहाड़ मारा। उस दहाड़ को सुनते ही और अपने स्वरूप को पहचानते ही भेड़ों की तरह जीने वाला शेरनी का बच्चा क्षणमात्र में शेर हो गया।"
काशी के भगवान विशेश्वर की कृपा से भुवनेश्वरी देवी के गर्भ से जिस बच्चे का जन्म हुआ उस बच्चे का नाम "नरेंद्र" रखा गया। सोच थी कि नरों में इंद्र के समान वह वैभवशाली जीवन जिए। किंतु संसार और सत्ता का आकर्षण उसे खींच न सका। गुरुवर रामकृष्ण परमहंस की कृपा से वह संन्यासी हो गया और सत्य के आकर्षण में बंध गया।
आत्महीन और दीन-हीन भारत को आत्मविश्वास से भरने हेतु और उसके दिव्य स्वरूप से परिचय कराने हेतु उस नरेंद्र नाथ दत्त नामक युवक ने अपनी जवानी अपने गुरु की कृपा से प्राप्त विवेक और आनंद को बांटने में लगा दिया। महज 39 वर्ष की युवावस्था में ही इस नश्वर संसार को छोड़ गए किंतु साथ ही उस अमर संदेश को भी छोड़ गए जो समस्त युवा शक्ति को आज भी प्रेरित करती हैं।
भौतिकतावाद के गहरे दलदल में फंसे अंधकार और अव्यवस्था से घिरी आज की युवा पीढ़ी को फिर से उस आध्यात्मिकता की प्यास जगानी होगी और अपने अंदर के प्रकाशपूर्ण-व्यवस्था को ढूंढना होगा।
आत्मविश्वास को जगाकर घनघोर तपस्या द्वारा उस आत्मा का आविष्कार करना होगा जो परमात्मा का अंश है। सर्वज्ञ,सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी परमात्मा का अंश आज अपने को तनमात्र समझकर जो भेड़ों का जीवन जी रहा है, वह अपने आत्मस्वरूप का परिचय होते ही भीड़ से मुक्त होकर स्वयं में स्थित परमात्म-स्वरूप का दर्शन कर लेगा। फिर अपने अंदर छुपे असीम ज्ञान और असीम शक्ति के खजाने से जगत के कल्याण हेतु कई प्रकार के दिव्य कर्मों से अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
आत्महत्या के नाम पर सिर्फ देह-हत्या होती है जो जीवन की निरर्थकता का परिणाम है। जीवन तो सार्थक होता है आत्मज्ञान से;जिससे विवेक-आनंद का जन्म होता है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे
युवा दिवस की शुभकामना🙏🌹