संवाद
"विराट खाइयों से विराट ऊंचाइयों तक"
भारत की विराट जीत में विराट कोहली का विराट प्रदर्शन फिर से सुर्खियों में है। जिस खिलाड़ी के एक एक शॉट (shot) पर आज ताली बजाई जा रही है, उसी खिलाड़ी को कितनी गाली मिली है और कितने लंबे समय तक मिली है; उसका ध्यान इस समय बहुत सारे प्रशंसकों की दृष्टि में नहीं है।
लेकिन मैं कोहली के आउट ऑफ फॉर्म (out of form) होने के 3 साल के लंबे पीरियड को सबके ध्यान में लाना चाहता हूं। जब आप आकाश की बुलंदियों पर होते हैं तो पूरा जगत (world)आपके साथ होता है। घर में टीवी के सामने बैठा और स्टेडियम में खड़ा हर दर्शक आपके हर शाट(shot)को खूबसूरत लम्हों की तरह अपनी आंखों में भर लेता है और मैच के बाद भी खाते- पीते समय आपकी तारीफों के पुल बांधता रहता है। आपका ऑटोग्राफ लेने को और आपकी एक झलक पाने को लंबी लाइनें लगी रहती हैं।
आंखों का सितारा वही खिलाड़ी जब आउट ऑफ फॉर्म होता है तो आंखों की किरकिरी बन जाता है। जिस टीम के लिए वह सबसे बड़ा एसेट्स(assets) था,आज उस टीम के लिए सबसे बड़ा भार(burden) साबित होने लगता है। फार्म गंवाने के साथ उसे अपनी कप्तानी भी गंवानी पड़ती है, यहां तक की टीम से बाहर होने के रास्ते साफ दिखाई देने लगते हैं। खेल के मैदान से लेकर ड्रेसिंग रूम तक के उसके व्यवहार पर कई अपमानजनक टिप्पणियां आने लगती हैं।
यही वह समय होता है जब आपके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान होती है। सफलता के शिखर को छूने वाले हर इंसान को यह जानना चाहिए कि शिखर के नीचे की खाईयां उतनी ही गहरी होती हैं, जितना शिखर ऊंचा होता है। सफलता के समय जितनी बड़ी भीड़ आपके इर्द-गिर्द थी, असफलता के वक्त उतनी ही बड़ी आपकी तनहाई होती है-
"पनपने दे जरा आदत निगाहों को अंधेरों की
अंधेरे में अंधेरा रोशनी के काम आएगा
पलक पर और बढ़ने दे जरा सा इस समंदर को
तभी तो मोतियों का और ज्यादा दाम आएगा"
उस कठिन समय में विराट ने सिर्फ खिलाड़ी होने की अपनी विशेष पहचान को भुला दिया। यहां तक कि एक महीने तक बैट को हाथ भी नहीं लगाया। अपने मानव(human being) होने के पहलू पर सारा ध्यान केंद्रित कर दिया। दुनिया का नंबर वन बल्लेबाज होने का अहंकार जब धूलधूसरित होता जा रहा था तब भी साधारण मानव होने की अस्मिता तो बची ही हुई थी।
कठिन वक्त को उसने अनुष्का के साथ ज्यादा बिताना शुरू किया,'अनुष्का' का अर्थ होता है प्रेम/प्रकाश की रोशनी। उसने अपने को पति रूप में,पिता रूप में, दोस्त रूप में,रिश्तेदार रूप में ; अर्थात् रिश्तों के अनेक रूपों में ढूंढना शुरू किया।
असफलता के लंबे अंधकार काल को चीर कर जब फिर से भाग्य का विराट सूरज निकला है तो कई विराट संदेश जीवन को मिल रहा है।
पहला संदेश यह है कि सुबह में एक तरफ चंद्रमा अस्त होते रहता है तो दूसरी तरफ पूरब दिशा से सूरज क्षितिज पर उभर रहा होता है, शाम में यही स्थिति पूर्णतया पलट जाती है। सूरज डूबने लगता है और चंद्रमा आकाश में खिलने लगता है। किंतु विराट आकाश सिर्फ साक्षी बना रहता है। विश्व की इन दो महान विभूतियों के उत्थान और पतन से एकदम अछूता और एकदम अस्पर्शित। आखिर क्यों?
क्योंकि सिर्फ साक्षी भाव के साधने से सुख-दुख,सफलता-असफलता दोनों में समान रहा जा सकता है।
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि पद-पैसा-प्रतिष्ठा को पाने के बाद भी इंसान की इंसानियत सबसे बड़ी थाती है जो उसे सफलता में अंहकार से नहीं भरने देती और असफलता में अस्मिता से गिरने नहीं देती। उस अस्मिता को जो अनेक रूपों में और रिश्तों में ढूंढ लेता है,वही अर्श से फर्श पर आने पर भी अपने विराट-स्वरुप को नहीं भूलता है। अपने मूल इंसानियत स्वरूप को नहीं भूलने वाला फिर से विराट उपलब्धि पाने लगता है-
इंसानियत ही हर वक्त हमें महफूज रखती है
बुलंदी कब तलक इंसान के हिस्से में रहती है
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ सर्वजीत दुबे🙏🌹