"नेताजी नए रूप में"
नेता जी की आत्मा नए-नए रूप में जन्म लेती रहती है, आज वह आत्मा न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न के रूप में प्रतिबिंबित हुई है।
आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद जब सुभाष बोस ने मातृभूमि की सेवा के लिए इतने बड़े पद को छोड़ने का मन बनाया तो सभी परिजनों ने इसका विरोध किया। पद-पैसा-प्रतिष्ठा के इतने बड़े अवसर को छोड़कर शक्तिशाली सरकार के विरुद्ध मातृभूमि की सेवा के लिए खतरे और अनिश्चय की दुनिया में उतर जाना आसान नहीं था। किंतु नेता जी ने अपनी आत्मा की आवाज सुनी।
न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा भी जब अपने प्रसिद्धि के चरम शिखर पर विराजमान हैं और उनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं है, फिर भी महज 42 वर्ष की उम्र में इतने बड़े पद को छोड़ देने का साहस नेताजी की अंतरात्मा की आवाज की याद दिलाता है।
जिस प्रकार से नेता जी ने देश के विभाजन की भीषण लहर के बीच भी हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई को एकजुट कर आजाद हिंद फौज का गठन कर लिया और लक्ष्मीबाई ब्रिगेड बनाकर युद्ध में लड़ने के लिए नारियों को भी प्रेरित कर दिया, उसी प्रकार से जैसिंडा ने भी मस्जिद पर आतंकी हमले के बाद जाकर मुस्लिमों को गले लगाया और ज्वालामुखी विस्फोट के समय सबसे खतरनाक पॉइंट पर पहुंचकर जन सेवा के कार्य के लिए अन्यों को प्रेरित किया।
मूल्यविहीन राजनीति के इस दौर में मूल्यों की खातिर जीने वाले ऐसी दिव्य आत्माओं को याद करना बहुत जरूरी हो जाता है। पद-पैसा-प्रतिष्ठा के लिए अपनी आत्मा को बेचने वाले जनसेवकों के समक्ष जब ऐसे नामों को जनता अपने हृदय में स्थान देती है तो एक आशा जगती है।
तुलसीदास जी को जब पढ़ते हैं कि-
"आगम निगम प्रसिद्ध पुराना
सेवा धरमु कठिन जग जाना..
"अर्थात् सेवा धर्म जग में कठिन है तब आज के अधिकांश जनसेवकों को देखकर यह सेवा धर्म कठिन ही नहीं असंभव लगता है।
ऐसे वक्त में अपने परिवार और पुत्री के लिए पीएम जैसे बड़े पद को छोड़कर सेवा की नई भूमिका में उतर कर जैसिंडा जी ने नेताजी की याद दिला दी,जिन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर अपनी नई भूमिका के लिए अपने आप को अज्ञात रास्ते पर झोंक दिया।
लोग पूछते हैं कि मूल्यों के लिए जीने वाले आज नेताजी कहां हैं? मेरा हृदय पूछता है कि मूल्यों के लिए जीने वाले नेता जी और जैसिंडा जी के लिए आज जन- जन का समर्थन कहां है?
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे
नेता जी को नमन🙏🌹