🙏एक शिक्षिका की सेवानिवृत्ति🙏


"तन की सीमा में कैद असीम आत्मा"


शिक्षक की एक निराली दुनिया है क्योंकि जब वह सेवानिवृत्त किया जाता है तो उस समय वह अध्ययन और अनुभव के शिखर पर होता है।तब सरकारी नियम मानता है कि आप सेवानिवृत हो जाएं जबकि शिक्षा जगत में ओल्ड इज गोल्ड (Old is gold)होता है।


अन्य सेवा में तन की भूमिका अर्थात् फिजिकल फिटनेस की भूमिका महत्वपूर्ण होती है किंतु शिक्षा जगत में मन और आत्मा सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। तन का ढलान होता है किंतु मन और आत्मा साधना से सदैव उड़ान की ओर बढ़ते चले जा सकते हैं। इस बात का ज्वलंत उदाहरण वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस हैं जिनको 20 वर्ष की उम्र से एक ऐसी बीमारी ने घेरा जिसके कारण उनके अंग-प्रत्यंग साथ छोड़ते चले गए। फिर भी उन्होंने अपने मन को मजबूत रखा और अपनी आत्मा के प्रकाश में 76 वर्ष की उम्र तक ऐसी साधना की कि जगत को अद्भुत सिद्धांत और अविष्कार दे गए।


स्टीफन हॉकिंस की बीमारी की तरह पैरालिसिस बीमारी ने अचानक हमारे कॉलेज में प्रो.डॉ. सीमा भारद्वाज मैम को घेरा जिसके कारण उनका सुंदर चेहरा भयभीत करने लगा। पैरालिसिस के इलाज के क्रम में कुछ दिनों के बाद कैंसर का पता चला और उनका गौर वर्ण इलाज के क्रम में काला हो गया। टेढ़ा मुंह,टेढ़ी आंखें और काली पड़ गई चमड़ी में उन्हें देखकर परिचितों को अवसाद घेरने लगा। इस अच्छी शिक्षिका से विद्यार्थी बहुत ज्यादा प्रेम करते हैं, खासकर कन्या महाविद्यालय की छात्राएं तो दीवानगी की हद तक उन्हें चाहती हैं।


सारा जीवन उनका शिक्षा को और विद्यार्थियों को समर्पित रहा। अपनी गृहस्थी उन्होंने बसाई नहीं तो छात्र-छात्राएं उनके परिवार का सदस्य बनकर साथ निभाती रहीं।


ऐसी शिक्षिका को जब वक्त ने अपना सबसे कठोरतम और क्रूर रूप दिखाया तो विद्यार्थियों के प्रेम ने सबसे नरम और सुंदर रूप भी दिखाया। एक विद्यार्थी तो अपनी नौकरी की परीक्षा के दिन अपनी परीक्षा छोड़कर शिक्षिका को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचा और अहर्निश उनकी सेवा में लगा दिया तो अन्य विद्यार्थी उन्हें देखते ही दौड़ कर उनके पास आ जाते और गाड़ी से उतारने से लेकर कॉलेज में किसी कमरे में पहुंचाने तक कभी मैडम को अकेले नहीं छोड़ते।


कई छात्राएं अपनी आंखों में आंसू भरे हुए आकर मुझसे पूछती कि हमारी इतनी अच्छी मैडम ने कौन सा पाप किया था कि इतनी बड़ी सजा उन्हें मिली? इस प्रश्न के उत्तर खोजने के क्रम में मैंने पाया कि रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण जैसी अनेक दिव्य-आत्माएं असाध्य बीमारियों की शिकार हुईं। तन के साथ न देने के बावजूद उनकी मन और आत्मा ने कभी भी कोई शिकायत नहीं की।


मेरे द्वारा प्राचार्य पद का दायित्व संभालने की अवधि में वरिष्ठतम सहयोगी के रूप में डॉ सीमा मैम से मेरी गहरी बातचीत होती थी। इस उपनिषद से शिक्षा जगत के बारे में और जीवन के बारे में भी उनकी सात्विक-दृष्टि का परिचय मुझे मिला। उनके अनुसार मानव जीवन प्राप्त करना भाग्य है किंतु पढ़ने-पढ़ाने का जीवन तो सौभाग्य है। लेकिन एक बात उन्हें सदैव अखरती कि गैर शैक्षिक कार्यों की अधिकता ने शिक्षा का माहौल बर्बाद कर दिया। ऑफलाइन,ऑनलाइन और स्प्रेडशीट की सूचनाएं महत्वपूर्ण हो गईं और शिक्षण-कार्य गौण।ऊपर वाले को सूचनाएं मत भेजो तो नौकरी खतरे में पड़ती है और विद्यार्थियों को ज्ञान न दो तो शिक्षक की आत्मा मरती है।


यह आदर्श शिक्षिका अपनी सबसे खतरनाक बीमारियों के दौरान भी डॉक्टर के मना करने के बावजूद अपने विद्यार्थियों के जीवन को संवारने के उद्देश्य से अपना ज्ञान बांटती रहीं। वे सरकारी सेवा से तो सरकारी आदेश से निवृत हो जाएंगी किंतु अपनी सादगीपूर्ण-जीवन और शिक्षा के प्रति समर्पण के कारण हमेशा सबके दिलों में बसी रहेंगी। सबसे कठोर वक्त में भी उनका परमात्मा के प्रति श्रद्धापूर्ण हृदय मुझे महात्माओं की याद दिलाता है।


मौसम तो सदा बदलते रहते हैं,


साथ के पल कुछ कहते रहते हैं।


बधाई और शुभकामना🙏🙏🙏


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे