"गुरु-भक्ति के ललित लम्हे"


आपको किसी प्रोफेसर ने किसी विशेष परीक्षा के लिए तैयार किया हो और आपकी जिंदगी का लक्ष्य उसी विशेष परीक्षा में बैठने से मिलने वाला हो; किंतु उसी दिन आपके प्रोफेसर को पैरालिसिस अटैक आ जाए तो आप परीक्षा सेंटर की ओर जाएंगे या अपने शिक्षक को लेकर हॉस्पिटल की ओर? जीवन कभी-कभी ऐसे मोड़ पर लाता है कि जिसमें कोई भी निर्णय आसान नहीं होता। एक तरफ आपका कैरियर दांव पर है तो दूसरी तरफ आपके गुरु की जिंदगी।


शिष्य ललित ने निर्णय लिया कि मैं अपने गुरु को इस हालत में अकेला छोड़कर परीक्षा देने नहीं जा सकता। बांसवाड़ा जैसे सुदूर इलाके में मेडिकल की अच्छी सुविधा नहीं होने के कारण ललित तुरंत अपनी गाड़ी को लेकर इंदौर की ओर भागा जबकि उसे कॉलेज असिस्टेंट- प्रोफेसर का एग्जाम देने कोटा जाना था।


मैंने गुरु भक्त आरुणी की कथा बचपन में पढ़ी थी किंतु आज उस कथा को एक नए रूप में देखा भी। शिष्य आरुणि को गुरु धौम्य ने शाम के समय खेत का पानी बह न जाए इस उद्देश्य से मेड़ की रक्षा के लिए भेजा था। आरूणि ने देखा कि मिट्टी डालने से पानी का बहना नहीं रुक रहा है तो वह उसी जगह पर लेट गया। जब शिष्य नहीं लौटा तो गुरु उसे खोजते हुए खेत पर गए तो उसे उनकी आज्ञा के पालन हेतु खेत की मेड़ पर लेटे हुए पाया।


सर्द रात में गुरु की आज्ञा पालन करने हेतु शिष्य का यह संकल्प अद्वितीय था। गुरु ने भी शिष्य के सेवा भाव को देखकर यह आशीर्वाद दे दिया कि उसे सारी विद्या सिद्ध हो जाए।यह शिष्य-गुरु के अनूठे रिश्ते की मिसाल है।


आज के दौर का यह दुर्भाग्य है कि ऐसी कहानियां कपोल-कल्पना लगती हैं,हकीकत नहीं।


लेकिन मैं जो बता रहा हूं,वह हकीकत है। आप विश्वास करें या न करें।


बुद्धि-प्रधान इस दुनिया में हृदय की आवाज सुननेवाला कोई विरला होता है और हृदय की आवाज पर चलने वाला तो दुर्लभतम्।


मैंने ललित से बात की तो उसने कहा कि मैं आज जो कुछ हूं मैम डॉ. सीमा भारद्वाज के कारण हूं। और ऐसी गुरु के लिए परीक्षा छोड़ने का मुझे कोई मलाल नहीं है।उनकी जिंदगी की सादगी और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है-


एक चेहरा मेरी आंखों में आबाद हो गया


उसे इतना पढ़ा कि वो मुझे याद हो गया।


कोई खून का रिश्ता नहीं किंतु यहां मन का रिश्ता इतना गहरा है कि जिसे जानने मात्र से दुनिया और खूबसूरत हो जाती है। शिक्षक ने इस छात्र को सिर्फ विषय नहीं पढ़ाया है बल्कि अपना जीवन भी पढ़ाया है। छात्र ने भी अपनी शिक्षिका को सिर्फ मस्तिष्क से नहीं सुना,उन्हें हृदय से भी सुना है।


अन्यथा आज के चरम बेरोजगारी के जमाने में बरसों के बाद मिले स्वर्णिम अवसर को कोई छोड़ने का साहस कैसे कर सकता है? किंतु कोई शिक्षक अपने व्यक्तित्व से अपने विद्यार्थी के हृदय में श्रद्धा-भाव जगा दे तो यह मुमकिन है।


इस शिक्षिका को पैरालिसिस के बाद कैंसर भी हो गया। पैरालिसिस ने सुंदर मुख को डरावना बना दिया और कैंसर के इलाज ने गौरवर्ण को काला बना दिया। इतनी भयंकर बीमारी से जूझते हुए भी इस शिक्षिका ने अपने विद्यार्थियों के लिए अपना प्रेम और ज्ञान बांटने का काम जारी रखा।


आज उस शिक्षिका के विदाई समारोह में इतनी छात्राओं ने इतने प्रेम से ऐसी भावनात्मक विदाई दी कि इस कॉलेज के इतिहास में आज का दिन अमर हो गया। जो भी विद्यार्थी अपनी शिक्षिका के बुरे वक्त के बारे में और उनकी विदाई दिवस के बारे में सुना, वे सभी कॉलेज पहुंचीं और अपनी शिक्षिका से गले मिलकर इतना रोईं कि गुरु-शिष्य के पवित्र प्रेम के पुराने दिन ताजे हो गए।


शिक्षा जगत के ऐसे हार्दिक-रिश्ते बताते हैं कि आज के व्यवसायीकरण के युग में भी बहुत कुछ बचा है जो अनमोल है। इस शिक्षिका ने अपने प्रेम व ज्ञान से विद्यार्थी वर्ग में जो अपने प्रति आदर अर्जित किया है, वह शिक्षा जगत की अनमोल थाती है जिसे भावी पीढ़ियों को हर कीमत पर बचाने का प्रयत्न करना चाहिए-


सर झुकने को तैयार है एक दर चाहिए


मुसाफिर रुकने को तैयार है एक घर चाहिए।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे🙏🌹