🙏🙏नम श्रद्धांजलि🙏🙏
"मौत के मातम में मासूम की किलकारी"
जिंदगी एक अद्भुत रहस्य है। भूकंप से जहां एक ओर तुर्की में हजारों जिंदगियां मलबे में दब गईं, वहां मरने से पहले एक मां बच्ची को जन्म देकर हमसे बहुत कुछ कह गई -
बना बनाकर यह दुनिया मिटाई जाती है
जरूर कुछ कमी है जो पाई जाती है।
चारों तरफ गुलजार जिंदगी, हंसते खेलते आराम की नींद लेने को बिस्तर पर गए लोगों को अनुमान भी नहीं था कि सुबह का मंजर इतना भयावह होगा। बरसों की कठिन तपस्या से अपनी सारी कमाई लगाकर खड़े किए गए बड़े बड़े महल ताश के पत्तों की तरह ढह जाएंगे,कौन सोच सकता है?
मनुष्य कितना इंतजाम करता है जिंदगी को सुरक्षित करने का और सजाने का ; धरती एक करवट लेती है और सारी सुरक्षा और सारे इंतजाम धरे के धरे रह जाते हैं-
इबादतखाने में सर झुकाया न गया
काबे की तरफ नजर उठाया न गया
देखी जो कयामत ऐ खुदा! तेरी
सजदे में यह दिल लगाया न गया।
कभी ऊपर वाले की बेरुखाई पर जिंदगी तंज कसती है तो कभी ऊपर वाले की रहनुमाई पर उसी की ओर पलकें उठाती है। लौह पुरुष जिन मलबों के नीचे दबकर दम तोड़ देते हैं, उन्हीं मलबों से मासूम सुरक्षित निकल आते हैं। दुनिया के सारे देश सहायता करने को दौड़ते हैं,फिर भी सहायता सब तक पहुंच नहीं पाती है, ऐसे नाजुक लम्हों में प्रकृति हमारे कानों में कुछ कह जाती है, उजड़ा हुआ मंजर कुछ फुसफुसा जाता है-
"विज्ञान के बल पर प्रकृति को जीतने चले इंसानों और अपने अहंकार में शस्त्रास्त्रों के बल पर विनाश लीला मचाने वाले हैवानों थोड़ा गौर से देखो। विज्ञान के दम पर बनाई बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं प्रकृति के नाराज होने पर फिर से रेत के कण साबित हो जाती है और मौत के बीच से भी जिंदगी की किलकारी गूंज जाती है" -
जीवन का यह विचित्र खेल समझ नहीं कुछ पड़ता है
शायद कोई कुछ बातें, कुछ संकेतों में हमसे कहता है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे
नम श्रद्धांजलि🙏🌹