🙏🌹महाशिवरात्रि की शुभकामना🙏🌹


"शिवत्व की प्राप्ति तप से"


शिव की तलाश हर जीव को है किंतु विरले को ही कल्याण(शिव) नसीब होता है। क्योंकि सभी प्रेय चाहते हैं। हमारी सीमित दृष्टि दूर तक देखने में समर्थ नहीं होती। दूरदृष्टि के बिना श्रेय(कल्याण) नसीब नहीं होता।


कहने को भारत में कंकर कंकर शंकर है किंतु शंकर के सद्गुण हमारे जीवन से बहुत दूर हो गए हैं। अमृत काल में अमृत महोत्सव के दौरान अमृत शब्द की चर्चा तो बहुत हो रही है किंतु बेरोजगारी,महंगाई और आत्महत्या की दर हमें विषम परिस्थितियों के संकेत दे रहे हैं और उस पर से धर्म,जाति के नाम पर बढ़ते वैमनस्य के कारण अधिकांश युवाओं से पूछने पर पता चलता है कि जीवन जहर बन गया है।


आईआईटी जैसी बड़ी परीक्षा की तैयारी करने सभी कोटा पहुंच जाते हैं और आईआईटी के बड़े संस्थानों में कम नंबरों पर कुछ लोगों का एडमिशन भी हो जाता है जो सबको प्रिय लगता है। लेकिन बाद में बहुत विद्यार्थी कोर्स में गति नहीं कर पाते हैं जिसके कारण कुछ विद्यार्थी कोर्स छोड़ देते हैं तो कुछ विद्यार्थी जीवन।


ऐसी परिस्थिति में शिव के सद्गुणों वाले महान आत्माओं के जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है‌। 'बचपन बचाओ आंदोलन' के प्रणेता श्री कैलाश सत्यार्थी और आतंकियों द्वारा गोली मारे जाने के बावजूद अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने को दृढ़ संकल्पित मलाला यूसुफजई की जिंदगी की किताब मुझे पढ़ने को मिली। अत्यंत विषम परिस्थिति में अपनी जान की परवाह किए बिना इन दोनों महान आत्माओं ने जीवन के गरल को पीकर और पचाकर जो काम किया है, वह शिव-तत्त्व के बिना संभव नहीं था। नोबेल पुरस्कार के बाद तो इन्हें दुनिया जान गई किंतु कई ऐसी आत्माएं हैं, जो शिव-शक्ति के आधार पर अपने महान लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रही हैं।


जीवन की विषम परिस्थितियों के बीच शांत रहने की कला और विष को पीने की कला शिव को देव से महादेव बना देती है। एक तरफ गंगा की प्रचंड धारा को माथे पर सहन करना और दूसरी तरफ सर्प को गले में धारण करना जैसे प्रतीक हमें संदेश देते हैं कि इतनी सहनशक्ति और सामंजस्य बिठाने की सामर्थ्य हो तो शिवत्व की प्राप्ति होती है।


विडंबना यह है कि बैकुंठ जैसी सुख सुविधाओं वाले जीवन को जीते हुए हम शिवत्व प्राप्ति की कामना करते हैं। किंतु कहानी कहती है कि नारद ने जब पार्वती के सामने विष्णु से शादी का प्रस्ताव रखा तो पार्वती ने कहा कि मेरे अभीष्ट शिव की प्राप्ति का कोई उपाय हो तो बताइए। तब नारद को आश्चर्य हुआ कि बैकुंठ में रहने वाले विष्णु को छोड़कर पार्वती शिव को क्यूं वरण करना चाहती हैं? फिर भी पर्वती के दृढ़ संकल्प को देखते हुए उन्होंने शिवत्व प्राप्ति का रास्ता तप को बताया-


"तप आधार सब सृष्टि भवानी


करहुं जाई तप अस जिय जानी।"


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे 🙏🌹