24.2.22काwar-23में World war?
"युद्ध की राह या बुद्ध की"
रूस यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण होने को है। जिस युद्ध को एक सप्ताह का भी नहीं माना जा रहा था, वह युद्ध 50 सप्ताह से ज्यादा का होने के बाद भी खत्म होने की बजाय और विकराल रूप लेता जा रहा है। मूल कारण बस इतना है कि इस युद्ध की अग्नि को भड़काने वाले तो बहुत हैं किंतु जिस अहंकार के कारण युद्ध हो रहा है,उसको शांत कराने वाला एक भी बुद्ध नहीं।
दोनों देश युद्ध में मरने वाले की संख्या मात्र गिना रहे हैं। किंतु मरने वाला एक इंसान गणित की एक संख्या मात्र नहीं होता। वर्ष भर पहले एक भारतीय नागरिक शेखरप्पा जो यूक्रेन में डॉक्टर बनने गया था , वह रूसी मिसाइल अटैक में मारा गया,.... वह किसी का बेटा था,तो किसी का भाई भी, किसी का भतीजा था तो किसी का भगीना भी, किसी का पोता था तो किसी का नाती भी, किसी का पड़ोसी था तो किसी का दोस्त भी, किसी देश का नागरिक था तो बहुतों का रिश्तेदार भी, किसी का सीनियर था तो किसी का जूनियर भी..... इतने रिश्तों और संबंधों को यह हादसा सूना कर गया।
युद्ध में अब तक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार तीन लाख लोग मारे गए, लाखों लोग घायल हुए, लाखों लोग विस्थापित हुए,बने बनाए करोड़ों घर खंडहर में तब्दील हो गए, अरबों हरे-भरे पेड़ पंक्षियों के घोंसलों के साथ जलकर राख हो गए, अनगिनत मासूमों के साथ पालतू पशु बेसहारा हो गए। जहां स्कूल की घंटियां बजनी चाहिए थी,वहां खतरे की घंटी बजती रहती है।अब तो अनगिनत आंखों से बहा हुआ आंसुओं का सैलाब सूख भी गया किंतु आज भी अहंकार का ज्वार ऊंचा ही उठता जा रहा है।
"इस अहंकार पर और कितने मासूम अरमानों की बलि चढ़ेगी?" -यह सोचने का यह सही वक्त है।
क्या नागरिकों का और सामान्य जनता का युद्ध के निर्णय में कोई हाथ नहीं होता? यदि नहीं होता है तो सबसे ज्यादा पीड़ित नागरिक और जनता ही क्यों होती हैं?
युद्धरत राष्ट्रपतियों में से किसी का पुत्र या पुत्री यदि बलि चढ़ जाए तो क्या वे उसी हाव-भाव के साथ राष्ट्र को या किसी सभा को संबोधन करने की स्थिति में होंगे, जिस उत्साह और विश्वास के साथ वे अभी कर रहे हैं?
सवाल सत्ताधीशों की संवेदना का है।
महात्मा बुद्ध रोहिणी नदी के दोनों तरफ शाक्य और _कोलिय_जनपद की सेनाओं को युद्ध के लिए खड़े देखकर बीच में पहुंच गए। उस समय के राजाओं के दिल में संन्यासियों का और गुरुओं का बड़ा आदर था। दोनों राजाओं ने उन्हें प्रणाम किया।
बुद्ध ने पूछा कि- "युद्ध का कारण क्या है?" राजाओं ने एक साथ उत्तर दिया- रोहिणी नदी का पानी।
महात्मा ने कहा कि जल तो जीवन देता है,जीवन लेता नहीं है। रोहिणी नदी का पानी अभी तक दोनों राज्यों को धन-धान्य से संपन्न बना रहा था।अचानक क्या हुआ?
हे राजन! तुम दोनों सही कारण बताओ। दोनों राजा सोचने पर विवश हो गए तो पता चला कि गर्मी के दिन के कारण नदी में पानी कम हो जाने पर पहले पानी कौन लेगा, इस बात को लेकर दोनों के अहंकार टकरा गए थे।
महात्मा बुद्ध ने कहा कि युद्ध का कारण अहंकार है और राजाओं के अहंकार पर इतने लोगों की बलि चढ़ाया जाना क्या उचित है?
कहानी कहती है कि महात्मा बुद्ध के प्रभाव से दोनों राजा के द्वारा अहंकार छोड़ते ही युद्ध टल गया और वहां की जनता रोहिणी नदी के पानी का आवश्यकतानुसार उपयोग करती रही। फिर युद्ध की नौबत ही नहीं आई।
आज का दुर्भाग्य यह है कि आधुनिक लोकतांत्रिक राजाओं और बुद्धों में कोई संबंध नहीं है। शक्ति के अहंकार की यह विशेष बात है कि उसके पास विध्वंस के सिवाय और कुछ नहीं होता।
प्राचीन काल में जो काम एक बुद्ध कर जाते थे,आज वह काम संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO)जैसी बड़ी संस्था भी नहीं कर पा रही है।
अतः यह वक्त विश्व के सभी नागरिकों के लिए परमात्मा से प्रार्थना का और अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर शांति स्थापना हेतु आवाज उठाने का वक्त है। साथ ही साहिर लुधियानवी साहब का यह प्रसिद्ध नज़्म भी गुनगुनाने का वक्त है-
टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतेह का जश्न हो या हार का शोक
जिंदगी मय्यतों पे रोती है।।
बम घरों पर गिरे की सरहद पर
रुह-ए-तामीर ज़ख्म खाती है
खेत औरों के जले कि अपनों के
जीस्त फांकों से तिलमिलाती है।।
जंग तो खुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
खून और आग आज बरसेगी
भूख और एहतियाज कल देगी।।
इसलिए ऐ शरीफ इंसानों!
जंग टलती रहे तो बेहतर है।
आप और हम सभी के आंगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है।।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे🙏🌹