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"वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान"


राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की 2023 की थीम -'वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान' है। विज्ञान के आविष्कारों ने पूरे विश्व को एक वैश्विक गांव में तब्दील कर दिया। विज्ञान के नियम सभी के लिए एक होते हैं और उसकी खोजों से सभी लाभान्वित होते हैं। किंतु अद्भुत वैज्ञानिक सफलताओं के बावजूद हिरोशिमा-नागासाकी हमें याद दिलाते हैं कि विज्ञान का कुछ दुरुपयोग भी हुआ है।


पदार्थ में छिपी हुई अद्भुत शक्ति से परिचय विज्ञान ने करा दिया और इसको सर्वसुलभ बना दिया, इसके कारण वैश्विक विज्ञान से वैश्विक कल्याण की आशा जगती है। लेकिन वैश्विक चेतना के अभाव में यह संभव नहीं हो रहा। इसके लिए जरूरी है कि वैश्विक धर्म की दिशा में आगे बढ़ा जाए।


हिंदू,मुसलमान,सिख,ईसाई के लिए विज्ञान एक हो सकता है तो धर्म एक क्यों नहीं हो सकता? सभी धर्मों के मूल में वैश्विक कल्याण की भावना है तो फिर धर्मों के बीच इतना संघर्ष क्यूं है? एक बात समझने की जरूरत हैं कि विज्ञान हमें सुख-सुविधाएं दे सकता है किंतु शांति- आनंद तो धर्म ही देगा।


वैश्विक कल्याण के लिए जितनी सुख-सुविधा की जरूरत है,उतनी ही जरूरत है शांति-आनंद की। लेकिन पदार्थ पर नई खोजों के कार्य को विज्ञान तो निरंतर आगे बढ़ा रहा है किंतु चेतना पर साधना के कार्य को धर्म निरंतर आगे नहीं बढ़ा सका।


जिसका परिणाम यह हुआ कि वैज्ञानिक ग्लोबल हो गया और धार्मिक लोकल होता चला गया। व्यापक दृष्टिकोण के कारण विज्ञान संवाद की ओर बढ़ता चला गया और संकुचित दृष्टिकोण के कारण धर्म विवाद की ओर।


वैश्विक कल्याण के लिए विज्ञान का भी धर्म होना चाहिए और धर्म का भी विज्ञान होना चाहिए। अर्थात् विज्ञान का प्रकृति के साथ चल रहा संघर्षरुपी दुरुपयोग भी रोका जाए यानी प्रकृति को जीतने की ओर नहीं बल्कि प्रकृति के साथ जीने की ओर बढ़ा जाए और धर्म का चेतना के साथ चल रहा संघर्षरुपी दुरुपयोग भी रोका जाए यानी इसको अंधविश्वास होने से बचाया जाए ताकि परस्पर-संघर्ष परस्पर-सद्भाव में तब्दील हो जाए-


"जीवन का फूल यूं खिलता रहे


कि धर्म भी हो विज्ञान भी हो


मंदिर की डगर भी आगे बढ़े


और दुनिया का कुछ ज्ञान भी हो।"


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹