🙏International Women's day🙏
"जैसिंडा जैसी महिला की राह"
"विश्व महिला दिवस"आधी आबादी को समझने का एक विशेष अवसर होता है। "Embrace equity" को 2023 की थीम चुनने के पीछे मकसद यही है कि नारी और पुरुष एक दूसरे से भिन्न है किंतु उनमें भेद नहीं। नारी को नारी की तरह विकसित होने का समान अवसर मिले और पुरुष को पुरुष की तरह विकसित होने का समान अवसर मिले तो एक सुंदर दुनिया बन सकेगी।
पुरुष प्रधान समाज में नारियों को बराबरी का दर्जा पाने में विज्ञान के आविष्कारों ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मसल्स पावर पर गर्व करने वाला पुरुष-वर्ग एक नई चुनौती का सामना कर रहा है क्योंकि मसल्स पावर को मशीनों ने गौण बना दिया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आज के जमाने में बौद्धिक प्रतिभा का बोलबाला हो गया, जिसमें स्त्री और पुरुष होना गौण है। यही कारण है कि बढ़ती शिक्षा के दौर में लड़कियां लड़कों को पीछे छोड़ रही हैं।
लेकिन इस तथाकथित विकास की कीमत परिवार जैसी संस्था चुका रही है, जो आज तक स्त्रियों के त्याग एवं बलिदान पर मुख्य रूप से आधारित थी। परंपरागत रीति रिवाज और परिवार अब तेजी से बदल रहे हैं। बाल विवाह वाला समाज अब "live in relationship" की ओर तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन बदलाव जैसा भी हो कीमत तो नारी को ही चुकानी पड़ती है।
मस्तिष्क प्रधान बाजार की दौड़ में हृदय प्रधान नारी का स्वभाव भी मस्तिष्क प्रधान ही होता जा रहा है, जो आज विशेष चिंता का विषय है। राजनीति या अन्य क्षेत्रों में जहां भी महिलाएं आईं तो एक उम्मीद थी कि शुचिता और कोमलता का गुण भी उनके साथ आएगा। लेकिन दिल्ली एमसीडी की मारपीट वाली सभा का दृश्य बता रहा है कि कठोरता में वे पुरुषों के मार्ग का अनुसरण करने लगी हैं।
प्रतियोगिता के क्षेत्र में कठोर तो होना ही पड़ता है वहां नारी सुलभ कोमल गुणों की अपेक्षा करना बेकार है। लेकिन नारी और पुरुष को अस्तित्व ने परिपूरक (complementary to each other)के रूप में बनाया है। जब कभी भी इनका संतुलन बिगड़ेगा तो जीवन जीने लायक नहीं रह जाएगा। हृदय प्रधान गुणों के कारण ही नारी को गर्भ देकर अस्तित्व ने सृष्टि का उसे माध्यम बनाया। सृष्टि को आगे बढ़ाने वाली नारी के योग्य प्रेमपूर्ण संसार बनाना सबकी जिम्मेदारी है और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम "Embrace equity" का भी यही मकसद है।
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने अपनी प्रसिद्धि के चरम शिखर पर अपनी बेटी और परिवार को ज्यादा समय देने के लिए महज 44 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री-पद का त्याग करके इस महत्त्वाकांक्षी संसार को प्रेम का एक संदेश दिया है। उनका कार्यकाल संवेदनशील मुद्दों पर अपनी संवेदनशीलता दिखाने के लिए अत्यंत प्रशंसा योग्य रहा है-चाहे आतंकी हमले के बाद मस्जिद में पहुंचकर एकजुटता दिखाने का हो या ज्वालामुखी विस्फोट के केंद्र के पास जाकर नेतृत्व दिखाने का हो या कोविड-काल में सख्त नियमों के द्वारा महामारी को नियंत्रित करने का हो।
यद्यपि ऐसे व्यक्तित्व को अपवाद के रूप में गिन लिया जाता है और हम उस रास्ते पर आगे कदम बढ़ाने की चुनौती से अपने को बचा लेते हैं। लेकिन एक फूल का खिल जाना यह संदेश देता है कि उपवन के बाकी फूल भी खिल सकते हैं। एक किरण भी सूरज तक पहुंचा सकती है, यदि व्यक्ति में गुणग्राहिता हो तो।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे
विश्व महिला दिवस की शुभकामना🙏🌹