संवाद


"SORRY संसद"


भारत को ब्रिटिश-राज ने एक चुनौती दी थी कि अपना संविधान तैयार करके दिखाओ। संविधान सभा के प्रतिनिधियों को चुनकर भारत ने जो संविधान तैयार किया, उसमें दिख रही भारतीय प्रतिभा की झलक ने ब्रिटिशों को भी चौंका दिया था। संविधान सभा में हर एक विषय पर जितनी गहरी और विस्तृत बहस हुई, उसको पढ़कर और जानकर ज्ञान प्रधान प्राचीन भारतीय संस्कृति का स्मरण हो आता है। हम भारत के लोगों (We the people of India) ने उस संविधान के प्रति स्वयं को आत्मार्पित किया था। किंतु उस संविधान को न हम पढ़ते हैं और न हमारे नेता।


उस संविधान की शपथ लेकर संसद की जो छवि आज माननीय सांसद निर्मित कर रहे हैं, उसे देखकर देश का चिंतनशील मस्तिष्क बहुत गहरी चिंता में पड़ गया है। जिस सत्ता पक्ष की संसद चलाने की प्राथमिक जिम्मेवारी है, वह संसद के बाहर दिए गए बयान को लेकर प्रतिपक्षी नेता से बिना शर्त माफी मांगने को कह रहा है। दूसरी तरफ पूरा विपक्ष एकजुट होकर एक स्वर से अडाणी मामले में संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग कर रहा है। जो संसद बोलने के लिए ही बनाई गई थी, वह ठप्प पड़ी है और बाहर में दिन-रात बोला जा रहा है‌। ‌


भारत का जागरूक नागरिक आश्चर्यचकित होकर सांसदों के भव्य और दिव्य आचरण को दिलो-दिमाग में संजो रहा है। असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी प्रकाशित करने वाली संसद बहुत जल्दी असंसदीय वीडियो का भी विमोचन कर पाएगी,ऐसी राजनीतिक विश्लेषकों की आशा और अपेक्षा है।


संविधान-विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार हमारी चुनाव प्रणाली है,जिसके कारण धनबल और बाहुबल के आधार पर चुनाव जीता जा रहा है ; विचारबल के लिए हमारे लोकतंत्र की न कोई प्यास है और न कोई प्रशिक्षण।


सरकार खुद कहती है कि इधर के कुछ बरसों में सरकारी स्कूलों की संख्या घटी है और शिक्षा पर खर्च होने वाला कुल जीडीपी का प्रतिशत बजट भी घटा है। जब शिक्षा उपेक्षित विषय बन जाएगा और शिक्षालयों में शिक्षकों के पद खाली पड़े रहेंगे, तो विचारशील और विवेकशील युवा पीढ़ी कैसे तैयार हो पाएगी?


टीवी डिबेट्स में जब युवाओं को प्रश्न पूछते हुए देखता हूं तो अधिकांश मौकों पर वे किसी पार्टी कार्यकर्त्ता के रूप में ज्यादा नजर आते हैं,एक सजग नागरिक के रूप में कम। जनहित और राष्ट्रहित के मुद्दों को समझने के लिए जितना व्यापक अध्ययन चाहिए और विचार-विमर्श चाहिए, उसका स्पष्ट अभाव व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से जुड़ी रहने वाली पीढ़ी में दिखाई देती है। अच्छे प्रश्न पूछने की कला तो अध्ययन,मनन और चिंतन के बाद उपलब्ध होती है।


खासकर युवा वर्ग अपनी शिक्षा प्रणाली और परीक्षा प्रणाली से पहले ही निराश हो चुका है, ऐसे में बेरोजगार युवाओं को बहुत बड़े सृजनात्मक आदर्श की ओर प्रेरित करने वाला चरित्रवान नेतृत्व नहीं मिलेगा तो न संसद की छवि बचेगी और न देश की; क्योंकि युवा वर्ग विध्वंस की ओर उन्मुख हो रहा है।


संसद हमारी आकांक्षाओं और आदर्शों की प्रतिनिधि है, उसका वर्तमान हालात देखकर संविधान-सभा के विद्वान,चरित्रवान और विवेकवान दिवंगत-आत्माएं क्या सोचती होंगी, भगवान जानें! किंतु कोई कवि हृदय क्या सोचता है,वह आप सुनें-


"सोचा था रौनक लाएगा आजादी का आफताब,


पर फकत धूलों भरा वो तो बवंडर दे गया


इस चमन के मालियों की नस्ल ऐसी हो गई,


जो भी आया इस चमन को एक बंजर दे गया।।"


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹