नवसंवत्सर नवरात्रि पर जल संकल्प
"बिनु पानी सब सून"
"विश्व जल दिवस" प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को संयुक्त राष्ट्र की पहल पर मनाया जाता है। उद्देश्य है कि प्रत्येक जन जल की महत्ता को समझे। "जल ही जीवन है" यह हम सभी जानते हैं किंतु उस जल को प्रदूषित करने में और बर्बाद करने में हम सभी का योगदान है।
अतः जब तक ज्ञान हमारा आचरण नहीं बन जाए अर्थात् लोग बूंद-बूंद पानी को सहेजने नहीं लगें और जलाशयों को साफ रखने को अपना परम कर्तव्य नहीं मानने लगें तब तक जल दिवस की सार्थकता बनी रहेगी।
"पानी बिच मीन पियासी , मोहि देखी देखी आवत हांसी" कबीर की यह उलटबांसी तब समझ में आयी जब पता चला कि 3/4 भाग में जल होने के बावजूद इस पृथ्वी पर अरबों लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण होने वाली बीमारियों से लाखों लोग मर जाते हैं।
पानी के लिए दो देश ही नहीं लड़ रहे बल्कि एक ही देश के दो राज्यों में भी लड़ाई हो रही है। अब तो स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि एक ही इलाके के लोग पानी के लिए अपने पड़ोसियों की हत्या तक करने लगे हैं।
कई राज्यों में तो ग्राउंड वाटर लेवल खत्म हो चुका है जिसके कारण विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। राजस्थान के जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में तो जल जीवन से ज्यादा कीमती हो चला है तभी तो कई किलोमीटर दूर जाकर गहरे कुएं से पानी निकालने में लोगों की जानें जाने लगी हैं।
जिस ग्रह पर जल नहीं मिलता वहां पर जीवन का होना संभव नहीं माना जाता। भारतीय संस्कृति के चारों वेदों में से एक प्रमुख वेद सामवेद जल पर केंद्रित है और जल को देव माना गया है क्योंकि जल की महत्ता का ज्ञान हमारे ऋषियों को था। तभी तो श्रीकृष्ण ने गीता के दसवें अध्याय में अपना विराट स्वरूप दिखाते हुए कहा कि जलाशयों में मैं समुद्र हूं और नदियों में गंगा। महावीर ने तो हजारों वर्ष पहले जल में भी जीवन माना था।
नदियों के किनारे ही मानव सभ्यताएं विकसित हुईं किंतु सभ्यता के औद्योगीकरण ने जल का ऐसा संकट खड़ा कर दिया है कि अगला विश्वयुद्ध जल के मुद्दे पर होने की संभावना वैज्ञानिकों ने जताई है।
उपभोक्तावादी दर्शन ने हर प्राकृतिक स्रोत का अनियंत्रित दोहन किया, जिसके कारण मानव अस्तित्व ही नहीं समस्त जीव-जंतु भी खतरे में पड़ गए हैं।
महासागरों,नदियों,झीलों और झरनों के रूप में धरती के तीन चौथाई हिस्से पर सिर्फ पानी ही पानी है किंतु इसका 1 फ़ीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है। ग्राउंड वाटर अर्थात् भूजल पृथ्वी पर मीठे पानी का सबसे बड़ा स्रोत है;हालांकि सतह के नीचे संग्रहीत होने के कारण इसे अनदेखा कर दिया जाता है। अतः भूजल को संरक्षित और संवर्धित करने की आज सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसीलिए विश्व जल दिवस 2022 की थीम थी- "भूजल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना".* जबकि 2023 की थीम रखी गई है -"Accelerating change"अर्थात् जल के संकट को हल करने के लिए तेजी से परिवर्तन लाना है।
भूजल के व्यवसायीकरण और अनियंत्रित दोहन को यदि सर्वजन हिताय नियमित नहीं किया गया तो यह अंतिम स्रोत भी सूख सकता है क्योंकि-
"मैं समूह रूप में गंगा हूं ,कावेरी हूं ,नर्मदा हूं
कल थी,आज हूं ;किंतु कैसे कहूं मैं सर्वदा हूं।।"
परमात्मा ने प्रकृति में सब कुछ दिया है किंतु मानवीय-विकृति के कारण जल जैसा अमूल्य संसाधन संकट में है क्योंकि-
मानवीय चेतना इतनी सुप्त हो गई
सरस्वती धरा से आज लुप्त हो गई।।
उस मानवीय चेतना को झकझोर कर जगाने के लिए विश्व जल दिवस बहुत ही सार्थक है। महाकवि रहीम के शब्दों में-
"रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून
पानी गए न ऊबरै मोती, मानुष, चुन।।"
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे
नवसंवत्सर, चैत्र नवरात्रि एवं विश्व जल दिवस की शुभकामना🙏🌹