🙏महावीर जयंती की शुभकामना🙏
"प्रेम का बीज"
'अहिंसा परमो धर्म:' का उपदेश देने वाले महावीर स्वामी की जन्मभूमि बिहार में और देश के अन्य भागों में हिंसा का तांडव देखकर किसी शायर की पंक्तियां याद आ रही है-
"हजारों खिज्र पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की
सब तस्लीम लेकिन आदमी अब तक भटकता है"
बाजार में प्रेम का बीज और नफरत का बीज दोनों उपलब्ध हैं। किंतु अपने हृदय की भूमि पर अपना अधिकार है। इतना जरूर है कि प्रचार-प्रसार ज्यादा नफरत के बीज का हो रहा है। प्रचार-प्रसार का बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है तभी तो आंतों को खराब करने वाला कोका-कोला भी करोड़ों-अरबों का व्यापार कर जाता है।
लेकिन व्यक्ति सजग हो और संकल्प से भरा हो तो अपने तन-मन-आत्मन् को खराब करने वाले नफरत के बीज को अपने हृदय की भूमि पर क्यों बोएगा?
रमजान के पवित्र महीने में रामनवमी के अवसर पर भी शोभायात्रा यदि इतनी अशोभनीय हो जाती है, तो हमने अपने महापुरुषों से क्या सीखा?
रमजान का समय पवित्र है और राम का व्यक्तित्व प्रेम से भरा है, फिर उसके अनुयायी अपवित्र नफरत के बीज कैसे बो सकते हैं?
वस्तुत:कुछ ऐसे लोग हैं जिनको न रमजान से मतलब है और न राम से; उनको मतलब है तो सिर्फ राजनीति से।
अरबों लोगों ने शांति के साथ पवित्रता और प्रेम से भरकर पूरे उल्लास और उमंग के साथ पर्व मनाया किंतु मीडिया में सिर्फ चंद शरारती लोगों का ही ऑडियो-विजुअल दिखाया जा रहा है। ह्रदय की भूमि यहां से गंदा होना शुरु होती हैं। आंखें जैसा देखती हैं,वैसा मस्तिष्क सोचता है और फिर व्यक्ति वैसा ही हो जाता है।
यदि मीडिया अपना धर्म ठीक से नहीं निभा रहा है तो अहिंसा प्रेमी शिक्षकों को अपना धर्म निभाना चाहिए। शिक्षकों को बताना चाहिए कि प्रेम के बीज का अंकुरण होते ही हृदय को कितना सुकून मिलता है। जब उसमें पत्तियां आती हैं तो चमन हरा भरा हो जाता है। जब फूल खिलते हैं तो सारा उपवन रंगीन हो जाता है। जब फल लगता है तो अमृतमयी प्रेम का फल चखते ही व्यक्ति अमर हो जाता है।
'अमर' का अर्थ है कि आज भी हम प्रेम के पैगंबरों को ही याद करने के लिए पर्व त्यौहार मनाते हैं। राम,मुहम्मद, कृष्ण,नानक,ईसा,बुद्ध, महावीर सहित अनेक संतो और फकीरों ने अपने हृदय की भूमि पर प्रेम के बीज बोए और उस वृक्ष पर फल फूल के लदने से उनका जीवन तो सुवासित हुआ ही, जो भी उनके पास आया उसका तन- मन भी महक उठा और वह प्रेम का फल खाकर अजर अमर हो गया।
किंतु अहिंसा की आबोहवा में पवित्र बेला के बावजूद प्रेम के मसीहा का नाम लेकर भी कुछ लोग हिंसा में कूद पड़ते हैं, इन्हें देखकर लगता है-
"सैर करके चमन की मिला क्या हमें
रंग कलियों का अब तक घुला ही नहीं
तन के तट पर मिले हम कई बार पर
द्वार मन का अभी तक खुला ही नहीं।"
हृदय का द्वार खोलो और उस हृदय की भूमि पर प्रेम के बीज बोओ, तब जान पाओगे कि प्रेम के पैगंबर अमर क्यों होते हैं और उनकी याद में पर्व त्यौहार क्यों मनाए जाते हैं? और क्यूं हमारी संस्कृति अहिंसा के उपदेशक को महावीर की उपाधि देती है?
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹