🙏हनुमान जयंती की शुभकामना🙏


"ऊपरवाले की इज्जत नीचेवाले के हाथ में"


"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर" जब वातावरण में गुंजायमान हो रहा हो तो ज्ञान और गुण भक्त में दिखाई देने चाहिए। किंतु जो नालंदा ज्ञान और गुण का कभी सबसे बड़ा केंद्र था, उस नालंदा में ज्ञान प्रदान करने वाली पुस्तकों को जलाने वाला गुण कहां से आ गया?


पुस्तकालयों को जलाने की घटना अज्ञानी और दुर्गुणी आक्रमणकारियों द्वारा मध्यकाल में घटी थी किंतु 21वीं सदी जिसको ज्ञान की सदी कहा जाता है, उसमें विश्वगुरु भारत के ज्ञान प्रधान केंद्र नालंदा में पुस्तकों को जलाए जाने की घटना क्या शुभ संकेत है?


हनुमत् तत्व की आराधना का मतलब है कि हममें ज्ञान की प्यास जगे और सद्गुणों को सीखने की ललक लगे।


किंतु दुर्भाग्य की बात है कि देशभर में 70000 सरकारी स्कूल बंद हो गए और शिक्षा पर निर्धारित केंद्रीय बजट में कमी की गई है। शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की भारी कमी है और उपलब्ध शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में ज्यादा समय देना पड़ता है। किंतु भक्तों में कोई आक्रोश नहीं दिखता।


युवा आज वायु की तरह चारों तरफ चक्कर लगा रहे हैं। डिग्री है तो कौशल नहीं, कौशल है तो रोजगार नहीं। ऐसे में वे सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक साइट्स को देखने में या राजनीतिक दुष्प्रचार को फैलाने में साधन की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं। दरअसल वे सोए हुए हैं। तभी तो जिनके हाथों में पुस्तक और कलम होनी चाहिए,उनके हाथों में पत्थर और तलवार दिखाई दे रहे हैं।


परिणामस्वरूप राम काज करने की जगह अन्य काज करने में वे ज्यादा आतुर दिख रहे हैं।


राम के सेवक हनुमान की पवित्रता और सेवा भाव के गुण आधुनिक मुखर भक्तों में होते तो 'जय श्री राम' और 'हनुमान चालीसा का पाठ' गगनभेदी स्वर में कुछ और मकसद से नहीं करते। मर्यादा पुरुषोत्तम राम और विद्यावान गुनी अति चातुर हनुमान न तो भय पैदा करते हैं और न कभी किसी से भयभीत होते हैं।


सुनने में आता है कि भगवान की कृपा से भक्त बदल जाता है किंतु आजकल देखने में यह आ रहा है कि भक्त की कृपा से भगवान बदलने लगा है।


अन्यथा जो पर्व और जयंती जीवन में प्रेम और भाईचारा को बढ़ा देते थे, वे अब घृणा और हिंसा की आग क्यों भड़का रहे हैं? -


"खुदा अपने बंदों से आज इस कदर घबराया है


सजदे में खुद बैठा हुआ गुमसुम और शरमाया है"


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹