"परीक्षा के तनाव के बीच मौत का सदमा"
प्रश्न- परीक्षा के महीने में घर में 2 मौतों से मुझे कुछ याद नहीं हो रहा, क्या करूं? शांति
प्रिय विद्यार्थी!
जिंदगी कभी-कभी बहुत कड़ी परीक्षा लेती है। जिंदगी का तनाव हमारी शांति को अशांति में बदल देता है। विश्वविद्यालय की परीक्षा का अपना तनाव होता है किंतु घर में असमय मौत के सामने यह तनाव कुछ नहीं है। वह प्रियजन की मौत भी कम अंतराल पर दोबारा दस्तक दे दे और वह भी परीक्षा के समय में तो किसी का भी टूट जाना स्वाभाविक है।
एक तनाव होता है जिसके लिए व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार होता है। यदि किसी विद्यार्थी ने परीक्षा की तैयारी सालों भर नहीं की है तो उसका तनाव उसी के द्वारा बढ़ाया हुआ तनाव है।
दूसरे प्रकार का तनाव मौत जैसी बड़ी दुर्घटना से होता है जिसके लिए नियति जिम्मेवार है। जब परिस्थिति पर अपना वश नहीं चलता है तो मन:स्थिति पूर्ण समर्पण की हो जाती है-
"मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
बाकी न मैं रहूं , न मेरी आरजू रहे ।"
जब ऐसा भाव ह्रदय में उठता है तो वैराग्य का जन्म होता है। वैराग्य के क्षण में मस्तिष्क में फालतू विचार नहीं चल पाते हैं। ऐसे में एकाग्रचित्त होना आसान हो जाता है।
वर्ल्ड कप के समय में तेंदुलकर के पिताजी का जब देहावसान हुआ तो अंत्येष्टि संस्कार से लौटकर सचिन ने शतक जमा दिया। विराट कोहली 17 वर्ष की उम्र में दिल्ली से एक रणजी ट्रॉफी मैच कर्नाटक के विरुद्ध खेल रहे थे कि उनके पिताजी के मौत की खबर आई। वे शवदाह संस्कार करने के बाद मैच में जाकर अपनी टीम को 90 रन बनाकर फौलोअन से बचा लिया।
बहुत ज्यादा प्रतिकूल परिस्थिति कभी-कभी भगवान की कृपा से बहुत अनुकूल मनोस्थिति का निर्माण कर देती है। तुम्हारे जीवन में ऐसा ही प्रतिकूल समय आया है तो भगवान का नाम लेकर परीक्षा में आने वाले प्रश्नों को याद करो। मौत पर किसी का वश तो है नहीं; फिर सिर्फ रोने- धोने में समय गंवाने से क्या फायदा?
रोने-धोने से प्रियजन तो लौटकर आएंगे नहीं, तुम्हारी परीक्षा भी बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाएगी। अपने आप को संभालो और पढ़ाई को भी संभालो।
अस्तित्व में दर्द मिला है तो दवा भी मिलता है। किंतु दवा के लिए चिकित्सक से परामर्श लेना पड़ता है और उसे सही समय पर खाना भी पड़ता है। अपने प्रिय शिक्षकों से मिलो और उनके कहे अनुसार चलने का प्रयास करो।
बिहार में एक लड़की के माता-पिता की हत्या कर दी गई थी क्योंकि वे अपने लड़कियों को पढ़ाने के लिए घर-गांव की परंपरा को तोड़ रहे थे। वह लड़की उसी साल आईआईटी की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सबसे अच्छे संस्थान में प्रवेश पा ली।
कभी-कभी विपत्ति में जो संपत्ति छिपी होती है, उसको देखने के लिए बहुत गहरी आंख चाहिए और उस संपत्ति को प्राप्त करने के लिए धैर्य भी।
परीक्षा के तनावपूर्ण वातावरण में प्रिय जनों के मौत का सदमा तुम्हें लगा है, इस नियति को स्वीकार करने से और धैर्य रखने से कुछ अनोखे फल जिंदगी ला सकती है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹