संवाद


"युवा और कौशल"


15 जुलाई को "विश्व युवा कौशल दिवस" के रूप में मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2014 में इसलिए लिया गया ताकि युवा वर्ग कौशल से लैस हो सके। इसके बाद शिक्षा जगत में एक क्रांतिकारी बदलाव आया है, वह है युवाओं को कौशल सिखाने की प्राथमिकता-Skill India अर्थात कौशल भारत,कुशल भारत। अभी तक की प्रचलित शिक्षा को सिर्फ सैद्धांतिक-शिक्षा मानकर अपूर्ण बताया जा रहा है। क्योंकि इससे डिग्रीधारी बेरोजगारों की एक ऐसी फौज खड़ी हो गई, जिसके पास किसी कार्य के हुनर से कोई आय-अर्जन की क्षमता नहीं है।


अतः विश्व युवा कौशल दिवस 2023 की थीम विचारणीय है- "परिवर्तनकारी भविष्य के लिए शिक्षकों,प्रशिक्षकों और युवाओं को कुशल बनाना".


अब कौशल विकास को इतना महत्व दिया जा रहा है कि सिद्धांत (theory classes)को ताक पर रखकर कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। शिक्षा जगत में विषय-विशेषज्ञों को कौशल विकास कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अपने विषय ज्ञान की बलि चढ़ानी पड़ रही हैं। राजकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी भाषा का प्रोफेसर कॉलेज में है किंतु कौशल विकास कार्यक्रम के तहत एजेंसी के माध्यम से नियुक्त कम मेरिट वाला प्रशिक्षक ही अंग्रेजी भाषा दक्षता सिखाया । प्राय: ऐसे कोर्सेज कॉलेज के निर्धारित समय के बाद कराए जाते हैं,अतः उसमें विद्यार्थियों की उपस्थिति नामजद संख्या की तुलना में न्यूनतम होती है। विषय की पढ़ाई तो कौशल विकास कोर्सेज चलाने की तैयारी में बाधित होती ही हैं, विद्यार्थियों की उपस्थिति भी कॉलेज में कम होने लगती है क्योंकि विद्यार्थियों की निर्धारित संख्या पूर्ण करने के लिए उनके नाम जबरदस्ती लिखे जाते हैं,जिससे विद्यार्थियों में गलत संदेश जाता है।


निश्चितरूपेण शिक्षा में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों का महत्व है। किंतु थ्योरी नींव का पत्थर है, जिसके आधार पर कौशल विकास का भवन खड़ा किया जा सकता है। कौशल विकास कार्यक्रम को शिक्षा के साथ जोड़ा जाना चाहिए लेकिन सैद्धांतिक शिक्षा की कीमत पर नहीं। कौशल विकास कार्यक्रम से सबसे बड़ा खतरा मानविकी विषयों को उपस्थित हुआ है। भाषा-साहित्य और दर्शन जैसे विषयों के बारे में एक गलत अवधारणा प्रचारित और प्रसारित की जा रही है कि सिर्फ बातें बनाने से क्या होगा, कुछ काम करके दिखाओ।


ऐसी बातों के प्रभाव में आकर युवा पढ़ाई-लिखाई को नजरअंदाज कर सीधे प्रैक्टिकल क्षेत्र में कूदना चाह रहे हैं। मेरी दृष्टि में फिर से वही गलती दोहराई जा रही है जो पुरानी शिक्षा पद्धति में हुई, जिसमें सिद्धांत रूपी एक पंख को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया गया, और प्रैक्टिकल रूपी दूसरे पंख को पूर्णतया नजरअंदाज किया गया।


कौशल विकास प्रधान नई शिक्षा नीति में सिर्फ प्रैक्टिकल पक्ष को ज्यादा महत्व दिया जाएगा तो एक पंख उपेक्षित और कमजोर हो जाएगा। व्यक्ति उड़ता है दोनों पंखों से, अतः सिद्धांत के बिना प्रैक्टिकल में गहराई नहीं आएगी और प्रैक्टिकल के बिना सिद्धांत में ऊंचाई नहीं आएगी। परिवर्तनकारी भविष्य के लिए इन दोनों में सामंजस्य बिठाना बहुत जरूरी है। लेकिन शिक्षकों और प्रशिक्षकों को गैर-शैक्षणिक-कार्यों में लगा दिया गया है जिसके कारण युवाओं की स्थिति "धोबी का कुत्ता घर का न घाट का" के समान हो गई है-


"सिलसिले खत्म हो गए यार अब भी रक़ीब है


हम कहीं के न रहे घाट और घर करीब है।


ये नजारें अजीब हैं ,हम बहुत बदनसीब हैं


हम कहीं के न रहे घाट और घर करीब है।।"


आज के युवा वर्ग की पीड़ा यह है कि दोष सरकार और समाज का है जबकि दोषारोपण युवाओं पर किया जा रहा है। आज का हर बेरोजगार युवा यह पूछ रहा है -- "तुमने हमको ऐसी शिक्षा क्यों दी जिसमें कोई कौशल नहीं? सिर्फ डिग्री बांटने वाले केंद्र खोलकर हमारे जीवन का इतना बहुमूल्य समय और श्रम क्यों नष्ट किया?"


युवाओं को भी यह समझना होगा कि परिवर्तनकारी भविष्य के लिए वे थ्योरी क्लासेज और प्रैक्टिकल क्लासेज दोनों की मांग करें। इसके लिए विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालय में शिक्षकों और प्रशिक्षकों की सभी सीटें भरी हो। शिक्षक को सैद्धांतिक ज्ञान देने के लिए तथा प्रशिक्षकों को व्यावहारिक ज्ञान देने के लिए ढांचागत सारी सुविधाएं सरकार मुहैया कराए।


सरकार और समाज अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। युवा पीढ़ी की आंखों के समक्ष आज एक गहरा अंधेरा है, उनको आंखें देने वाले शिक्षकों और प्रशिक्षकों को नजरअंदाज करने का यह फल है। युवाओं की मांग स्कूटी,मोबाइल,लैपटॉप और अन्य किसी भी सामान की नहीं होनी चाहिए; युवाओं की मांग सिर्फ योग्यता-निर्माण के लिए होनी चाहिए। उस योग्यता का निर्माण शिक्षक और प्रशिक्षक ही कर सकता है। योग्यता निर्माण के बाद दुनिया का कोई भी सामान स्वयं ही खरीदा जा सकता है , सिर्फ इंसान नहीं। उस इंसान को निर्माण करने वाले शिक्षकों और प्रशिक्षकों को इसीलिए हमारी संस्कृति ने देव कहा- "गुरु देवो भव".


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे🙏🌹