संवाद
"पढ़ाई का बेवफाई से क्या नाता?"
सदियों के संघर्ष के बाद पढ़ाई की बदौलत लड़कियां अंधेरे से धीमे-धीमे बाहर निकल रही हैं किंतु पढ़ाई के क्षेत्र में लड़कियों की प्रगति पुरुष प्रधान समाज को पच नहीं रही, अतः एसडीएम ज्योति मौर्या और आलोक मौर्या की कहानी को आधार बनाकर पढ़ाई और बेवफाई का नया सिद्धांत गढ़ा जा रहा है। टूटने के डर से खिलौना बनाना नहीं छोड़ा जाता , सड़क दुर्घटना के डर से बाहर निकलना नहीं छोड़ा जाता और अंतरिक्ष से लौटते समय कल्पना चावला के मरने से स्पेस-अभियान को नहीं छोड़ा जाता-
"क्या टूटने के डर से बनते नहीं खिलौने
हम तो मरें पर हमारा इतिहास मर न जाए।
दुनिया का यह चलन है, दुनिया चलेगी यूं ही
धोखे हजार हों , पर विश्वास मर न जाए।।"
विश्वास और विश्वासघात पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों में कहीं भी मिल सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से दो बड़े पुलिस ऑफिसरों को मैं जानता हूं जो अच्छे अधिकारी होने के साथ प्रेम करने वाले पति, देखभाल करने वाले पिता, अच्छे रिश्तेदार और अच्छे दोस्त भी हैं जबकि उनकी जीवन संगिनी विशेष पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन वे संवेदनशील इंसान हैं। जीवन में कुछ ऐसी महिलाएं भी मेरी परिचित हैं जो अपने पति से ऊंचे पद पर विराजमान रहते हुए वफादार पत्नी,ममतापूर्ण मां होने के साथ रिश्ते और ऑफिस की सारी जिम्मेदारियों को बखूबी संभालती हैं, व्यक्तिगत परिवार ही नहीं ,संयुक्त परिवार को भी जोड़े रखती हैं। ऐसे अच्छे इंसानों की जिंदगानियां यदि सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बनती तो दुनिया बहुत वफादार और पवित्र दिखाई देती।
ज्योति,आलोक और मनीष की कहानी में जितनी रूचि दिखाई जा रही है,उससे पढ़ाई और बेवफाई का रिश्ता उतना ही गहरा बनाया जा रहा है संकीर्ण सोच रखने वालों के द्वारा। पति अपनी पत्नियों की पढ़ाई छुड़ाकर कोचिंग इंस्टिट्यूट से वापस घर ले जा रहे हैं। वे कम में जीवन यापन करने को बेहतर मान रहे हैं, बनिस्बत पढ़ा-लिखाकर उसे बड़े पद पर पहुंचा कर उससे बेवफाई का दंश झेलने की अपेक्षा।जबकि मेरे जीवन का अनुभव कहता है कि इसी तरह की पढ़ाई पढ़कर बहुत अच्छे पुरुष और बहुत अच्छी महिलाएं निकली हैं और अपने बेमेल रिश्तो में भी सुंदर मेल बिठाया है। इसमें पढ़ाई का क्या कुसूर?
पढ़ाई तो स्वाति नक्षत्र में गिरी उस वर्षा की बूंद के समान है जो कदली में गिरकर कपूर बन जाती है , सांप के मुंह में जाकर विष बन जाती है लेकिन सीप के मुंह में गिरकर मोती बन जाती है। महत्वपूर्ण सवाल संगति का है-
"कदली,सीप,भुजंग-मुख स्वाति एक गुन तीन
जैसी संगति बैठिए तैसोई फल दीन।।"
जहां तक अवैध संबंधों की बात है, वह पढ़े- लिखे हों या अनपढ़; दोनों में कमोबेश रूप में सब जगह पाई जाती है।अवैध-रिश्तों में स्वर्ग दूसरों को बाहर से दिखाई देता है किंतु जो नरक अवैध-रिश्ते बनाने वाले अंदर से झेलते हैं, उनको तो वे ही जान पाते हैं। गलत राह पर पैर पड़ते ही ,आत्मा आपकी आपके विरुद्ध हो जाती है। आप मन की सुनते हैं लेकिन आत्मा सदा आपको धिक्कारती रहती है। फिर बहुत सारी बातें छुपानी पड़ती हैं,बहुत लोगों से नजरें चुरानी पड़ती हैं, फिर भी भेद खुल जाने का डर बना ही रहता है क्योंकि-
"खैर,खून,खांसी,खुशी, बैर,प्रीत ,मदपान
रहिमन दाबे न दबे , जानत सकल जहान।।"
हर संस्कृति और समाज की अपनी कुछ विशेष मूल्य और मान्यताएं होती हैं ,जिसका उल्लंघन करने पर व्यक्ति कहीं का नहीं रहता है। क्योंकि संस्कृति के मूल्य अंदर से उसकी अंतरात्मा को वैसा ही बना देते हैं और समाज बाहर से उस पर सतत निगरानी करता है कि मान्यताओं का पालन किया जा रहा है या नहीं। भारतीय संस्कृति और समाज की वह मूल्य और मान्यता है- "चरित्र" । चरित्रहीन व्यक्ति भी अपने बेटे-बेटियों में अच्छे चरित्र की कामना करता है क्योंकि वह अपने अनुभव से भी जान जाता है कि अच्छे चरित्र से ही सुकून और शांति मिल सकती है।
गांधी के आह्वान पर जब नारियां स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए बाहर निकलीं तो परंपरावादियों ने उनसे यही सवाल पूछा था-"क्या बाहर निकलने से नारियां दुश्चरित्र नहीं हो जाएंगी?" महात्मा ने कहा-"जो चरित्र घर की दीवारों में ही सुरक्षित रह सकता है, वह दो कौड़ी का है। असली चरित्र की परीक्षा तो बाहर निकलने पर और अवसर मिलने पर ही होती है।" यह बात सच है कि इस चरित्र की परीक्षा में कुछ लोग फेल होते हैं लेकिन वे नर और नारी दोनों होते हैं। किसी लड़के के दुश्चरित्र होने पर अन्य लड़कों की पढ़ाई पर सवाल नहीं उठते तो किसी लड़की के दुश्चरित्र होने पर अन्य लड़कियों की पढ़ाई पर क्यूं सवाल उठने चाहिए?
माना कि जीवन में कीचड़ बहुत फैला हुआ है लेकिन उसी कीचड़ में कमल खिल ही जाता है। कीचड़ को ही क्या देखना है?उसी की ज्यादा संगति और चर्चा क्या करना? कुछ गिने-चुने कमल की संगति और चर्चा करने से कमल जैसा होने की प्रेरणा मिलती है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹