संवाद
"शिक्षाकेंद्र सुसाइड-प्वाइंट क्यूं बना?"
कोटा के एलेन कोचिंग इंस्टीट्यूट में डॉक्टर बनने की जिद लेकर पढ़ने आए पुष्पेंद्र ने सुसाइड कर लिया तो उसके चाचा इंद्र ने एक प्रश्न उठाया है- "कोई समझाए कि शिक्षा- केंद्र सुसाइड-प्वाइंट क्यूं बन रहा?"
इस समाचार को पढ़ने के बाद मेरे दिलोदिमाग में यह प्रश्न इतना चक्कर लगाने लगा कि मैं बेचैन हो गया। जनवरी से लेकर अभी तक 12 विद्यार्थियों के सुसाइड करने का मतलब यह है कि कोटा-शिक्षा-नगरी में खासकर Allen शिक्षा केंद्र पर भारी मनोवैज्ञानिक भूल हो रही है। मेरी नजर में "महत्वाकांक्षा और योग्यता" के परस्पर संबंध पर विचार किए बिना मन की यह आत्मघाती-ग्रंथि दूर नहीं की जा सकती।
बड़े सपने कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले को अवश्य दिखाना चाहिए और विद्यार्थी को भी अवश्य देखना चाहिए किंतु उसके पहले अपनी योग्यता और क्षमता से पूर्ण परिचित हो जाना चाहिए। शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का विज्ञापन किया जाता है और कोचिंग इंस्टीट्यूट द्वारा उसकी गारंटी दी जाती है। हर विद्यार्थी इस महत्वाकांक्षा के रोग से ग्रसित हो जाता है। महत्वाकांक्षा जगाने में क्षणमात्र लगते हैं लेकिन योग्यता बढ़ाने में बरसों लग जाते हैं। गिने-चुने विद्यार्थी जिनकी योग्यता बड़ी होती हैं,वे इस बड़ी महत्वाकांक्षा को पा लेते हैं। हर साल इन्हीं गिने-चुने विद्यार्थियों का विज्ञापन किया जाता हैं,इनके नाम पर लाखों विद्यार्थियों को आकर्षित किया जाता है और शिक्षा के नाम पर करोड़ों का व्यापार किया जाता है। करोड़ों में से लाखों यदि संबंधित निगरानी करने वाले विभाग को पहुंचा दिया जाए तो आपसी सामंजस्य से सारा काम चलता रहता है। बेचारे विद्यार्थियों पर ध्यान किसका है?
आखिर उपाय क्या है? योग्यता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए और महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाई जाए। जितनी योग्यता बढ़ती है, उतनी आकांक्षा की पूर्ति अस्तित्व कर देता है। योग्यता से ज्यादा बड़ा पद यदि मिल जाए तो भी कल्याणकारी नहीं होता क्योंकि इतनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ न्याय नहीं हो पाता। आज के भ्रष्टाचार के मूल में यह बात महत्वपूर्ण है कि कम योग्यता वाले किसी तरह से बड़े पद पर पहुंच जाते हैं और उस पद के गौरव-गरिमा के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पाते।
आज की प्रतियोगितापूर्ण शिक्षा इतना तनाव दे रही है कि लंबे समय तक इसे बाल-मन या किशोर-मन झेल नहीं पा रहा। प्रेम का परिवेश उसे कहीं नहीं मिल रहा। रूम पर साथी प्रतियोगिता की बात कर रहे हैं और क्लास में शिक्षक महत्वाकांक्षा को भड़का रहे हैं। मां-बाप और परिवार वाले भी जाने-अनजाने पढ़ाई की ही बात करके उसके तनाव को और बढ़ा देते हैं। ऐसा लगता है कि विद्यार्थी का जीवन मां-बाप और कोचिंग वालों की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए ही बना है।
मेरी समझ में विद्यार्थियों के पास एक धड़कता हुआ दिल है जो मोहब्बत का प्यासा है। वह मोहब्बत यदि मां-बाप ,परिवार और शिक्षक से नहीं मिले तो बाहर में कोई सहारा खोजा जाता है। तीव्रतम तनाव से थोड़ी दूर हटने का कोई सहारा मन को चाहिए। ऐसे में किसी अफेयर ,किसी अश्लील साइट्स या किसी नशे की गिरफ्त में विद्यार्थी आ जाता है।
मेरा अनुभव कहता है कि घर पर मां-बाप ही नहीं क्लास में शिक्षक भी विद्यार्थी को प्रेम प्रदान करे और उसकी योग्यता को बढ़ाने में सहयोग करे तो विद्यार्थी ज्यादा मेहनत कर पाता है और ज्यादा ग्रहण कर पाता है। कर्म ही अपने वश में है , फल नहीं ; तो फिर महत्वाकांक्षारूपी फल की चर्चा कोचिंगवाले, मां-बाप और सभी दिन-रात क्यूं कर रहे हैं?
किशोरावस्था में हृदय की मांग बहुत बड़ी होती है लेकिन पूरा वातावरण चाहता है कि हृदय को मारकर विद्यार्थी सिर्फ मस्तिष्क में जीए। ह्रदय और मस्तिष्क में यदि संतुलन तथा सामंजस्य बैठाया जा सके तो शिक्षा केंद्र कभी भी सुसाइड प्वाइंट नहीं बन सकता।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे🙏🌹