संवाद
"नफरत की आग"
दंगाइयों ने मेरा बजाज स्कूटर जला दिया। वह न हिंदू था, न मुसलमान। किन्हीं क्षणों में तो इंसान से भी ज्यादा सहयोगी और सुकून देने वाला था। आज से 20 वर्ष पहले मैंने उसे खरीदा था। उस कमाई से खरीदा था,जो पाई-पाई बहुत मेहनत से खून-पसीने से कमाई गई थी। घर घर चूल्हा कुकर ठीक करा लो की आवाज लगाते हुए सुबह से शाम तक घूमता था। पिछले 5 वर्षों की मेहनत के बाद सौ- दो सौ रूपए की जो बचत थी, उसे जुटाकर एक पुराना बजाज स्कूटर उस व्यक्ति से खरीदा जो नई गाड़ी आने से स्कूटर उसके लिएअनुपयोगी हो गया था।
लेकिन यह पुरानी गाड़ी मेरे लिए बहुत उपयोगी थी। सुबह-सुबह मैं इस पर अपने दो बच्चों को लेकर स्कूल छोड़ने जाता था। फिर चूल्हा कुकर ठीक करने का सामान लेकर फेरी लगाने जाता था। फिर दोपहर में बच्चों को इसी स्कूटर से स्कूल से वापस घर लाता था। फिर देर शाम में पूरे परिवार के साथ इसी स्कूटर पर कभी-कभी अपनों से मिलने भी जाया करता था।
नहीं पता दंगाइयों को क्या सूझा कि घर के बाहर पड़ी मेरी स्कूटी को आग लगा दी। घर में छुपकर अपने परिवार की मैंने तो जान बचा ली लेकिन जले हुए स्कूटर को देखकर मेरी तो जान निकल गई। मैं जार जार रोने लगा। यह स्कूटर महज मेरे लिए एक सामान नहीं बल्कि साक्षात् खुदा या भगवान से कम नहीं था। मैं अब कैसे अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाऊंगा? अपने सामानों को लेकर घर घर फेरी लगाने इतनी दूर तक कैसे जाऊंगा? सपरिवार स्कूटर पर चढ़कर अपनों से मिलने का आनंद अब जीवन को कैसे नसीब होगा?
चिंता में सोचते-सोचते इतने ऊहापोह में नहीं पता कब मुझे नींद आ गई। उस नींद में भी मेरी आंखें गीली थीं। सांत्वना देने के लिए कोई सपने में आया। बोले वत्स! कोई एक वरदान मांग ले। मैंने कहा कि मेरी जली हुई स्कूटी ठीक-ठाक हालत में मुझे लौटा दे। मैं इंतजार करता रहा किंतु उनका प्रत्युत्तर नहीं आया।
शायद वे भी भी जलाए गए सामान और मारे गए इंसान को लौटाने में असमर्थ थे। मैं सोच में पड़ गया कि एक सामान के साथ मेरे इतने सपने जुड़े हुए थे। सारे सपने बिखर गए। तिनका तिनका जोड़ कर फिर घर बसाना होगा। लेकिन अब वो ताकत नहीं बची कि पैदल बच्चों को स्कूल छोड़ने जाऊं, पैदल दूर-दूर तक फेरी लगाने जाऊं। मैं अपने दुख से दुखी हुआ जा रहा था तभी टीवी पर सैकड़ों गाड़ियां जली हुई दिखाई दी, सामान की तो छोड़ो इंसान के मारे जाने की खबर सुनाई दी। दुकान, घर जलाए जाने और इंसान के मारे जाने की खबरें देखकर मुझे अब अपने स्कूटर के जलने की घटना छोटी लगने लगी।
कितने लोगों के कितने सपने खाक कर दिए इस नफरत की आग ने।
कल तक हंसता खेलता आबाद नगर वीरान पड़ा था
क्योंकि किसी के दिल में हिंदू ,किसी के दिल में मुसलमान खड़ा था।
लेकिन जो दंगाइयों द्वारा जलाया गया, वह किसी इंसान का घर था और वहां जीवन को चलाने वाला सामान था।
यदि फिर से मुझे वरदान मांगने को अवसर मिले तो यही मांगूं कि-
दिलों में जलते हुए इस नफरत की आग को बुझा दे
और प्रेम की कोई जोत जला दे।
जिसकी रोशनी में न हिंदू बचे,न मुसलमान ;
दिखाई दे तो खालिस इंसान।
और उसके जीवन को चलाने वाला उपयोगी सामान।।
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ सर्वजीत दुबे🙏🌹