आधुनिक चिंतन: पत्रकारिता और साहित्य


प्रश्न:-"स्वतंत्रतापूर्व के पत्र और साहित्य और आधुनिक समाचारपत्र, पत्रकार व साहित्यकार में क्या अंतर आया है?"-श्री अनिल सक्सेना 'ललकार',राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम


तकनीकी प्रधान इस आधुनिक युग में शब्दों और सूचनाओं का जितना बाहुल्य हो गया है, उतना ही पत्रकारिता और साहित्य में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं।


"पहले सफे से आखिरी हर पेज इश्तिहार हैं


कहीं नहीं है सच मगर कहने को ये अखबार हैं।"


समाचारपत्रों के कलेवर में गांधी का वह संकल्प कहां दिखता है कि वे अपने पत्र में विज्ञापनों को नहीं छापते थे क्योंकि इससे स्वतंत्रता बाधित होती है। आज विज्ञापनों से ही नहीं बल्कि पेड न्यूज़ से समाचारपत्र भरे होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हाल "गोदी मीडिया" जैसे शब्दों से आप बखूबी समझ सकते हैं। पहले एक दूरदर्शन समाचार को जानने का स्रोत होता था लेकिन बाद में अनगिनत चैनल और दिन रात चलने वाले चैनल खुल गए। आशा थी कि किसी भी घटना को दबाया नहीं जा सकता और किसी भी घटना के सच को छुपाया नहीं जा सकता। लेकिन अनुभव कहता है कि अधिकतर चैनल एक प्रकार के विषय पर डिबेट कराते हैं और लगभग एक प्रकार की न्यूज़ दिन रात परोसते रहते हैं। दिन-रात सरकार का गुणगान और विपक्ष से तीखे सवाल की इनकी प्रवृत्ति से इनकी विश्वसनीयता को बहुत गहरा धक्का लगा है-


ये कौन लोग हैं हुजूर जो ढो रहे हैं पालकी


कौन सी ये गैंग है जिसके हाथ में सरकार है।।


स्वतंत्रता पूर्व काल में तिलक,गणेश शंकर विद्यार्थी और गांधी जैसे पत्रकारों ने अपने साहित्य और पत्रकारिता से ही नहीं बल्कि अपने जीवन से भी सत्य के लिए संघर्ष,त्याग और बलिदान की अलख जगाई थी। उस समय की पत्रकारिता और साहित्य ने जनजागरूकता का ऐसा अभियान चलाया कि समाज की अनेक बुराइयां ही खत्म नहीं हुई बल्कि ब्रिटिश सरकार की नींव भी हिल गई। पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े ऐसे लोग जन नायक बनकर के उभरे और उन्होंने स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। इन लोगों ने अपने जीवन मूल्य के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया और जनता के दिलों में सदा सदा के लिए अमर हो गए।


एक तरफ गोदी मीडिया के एंकरो की वाणी से सांप्रदायिकता और नफरत का माहौल बढ़ता जा रहा है जिसका परिणाम मॉब लिंचिंग और दंगाई मनोवृति में स्पष्टरूपेण दिखाई दे रहा है तो दूसरी तरफ कुछ स्वतंत्र पत्रकार जो सरकार की आलोचना मुखरता से करते हैं, उनके ऊपर हर प्रकार का शिकंजा कसा जा रहा है। रवीश कुमार हो या पुण्य प्रसून बाजपेई, ऐसे अनेकों पत्रकारों को अपने स्थापित चैनलों से नौकरी छोड़ कर अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आना पड़ा।


समाचारपत्र खोलो या टीवी चैनल खोलो, एक बात का मुझे अनुभव होता है कि नकारात्मक खबरों के कारण तनाव बहुत बढ़ जाता है। नकारात्मक और दुखद घटनाएं सामने आनी चाहिए, लेकिन सकारात्मक और सुखद घटनाओं के बिना जीवन ऊपर जाने के लिए कैसे प्रेरित होगा?


एक स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार आज के इस माहौल में किस प्रकार से जीवन मूल्यों को आगे बढ़ा सकता है, यह सबसे बड़ी चुनौती मेरी नजर में है। सनसनी पैदा करने वाली पत्रकारिता और साहित्य से जीवन नहीं बदलता, इनकी टीआरपी भले ही बढ़ जाए लेकिन लेकिन जनता के दिलों दिमाग में इनका कद नहीं बढ़ता है। संवेदना को पैदा करने वाली पत्रकारिता और साहित्य साधनविहीन होकर अलग-थलग पड़ गए हैं। सच को लिखने की,दिखाने की और बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है जिसके लिए आज की पत्रकारिता और साहित्य तैयार नहीं दिखाई देता।


जहां कहीं है ज्योति जगत में जहां कहीं उजियाला


वहां खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला।।


जिनके अंदर में कोई ज्योति जली है और जिनके हृदयों का प्रकाश बाहर के अंधेरों को चीरकर उजाला फैलाना चाहता है, वे ही लोग सत्यम् शिवम् सुंदरम् की ओर पत्रकारिता और साहित्य को ले जा सकते हैं।


यह संघर्ष हर युग में रहा है। मूल्यों को लेकर जीवन को आगे बढ़ाने वाले लोग कम होते हैं लेकिन आत्म- अभिव्यक्ति की उनकी शक्ति को अस्तित्व का समर्थन मिलने लगता है। आज विडंबना यह है कि सरकार के सामने मूल्यों को आगे बढ़ाने वाले पत्रकार और साहित्यकार बहुत विवश हो चुके हैं, इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि समाज इस मामले में पूर्णतया तटस्थ हो गया है। समाज की तटस्थता महान उद्देश्यों के लिए जीने वाले पत्रकार और साहित्यकार के लिए बहुत महंगी पड़ रही है। एक तरफ सत्ता उन्हें साधनविहीन कर दे रही हैं तो दूसरी तरफ समाज उन्हें निराश-हताश बना दे रहा है।


सत्ता और समाज दोनों की उपेक्षा को झेलते हुए भी जो पत्रकार और साहित्यकार अपने लेखनी ही नहीं बल्कि जीवन से भी उच्च मूल्यों का संदेश देने की जद्दोजहद में लगे हैं, निश्चितरूपेण वे विरले हैं। ऐसे विरले लोगों के लिए ही "राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम" की चर्चा संजीवनी साबित होगी, ऐसी आशा करता हूं।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹