"Maa"
एक वीडियो देखा जिसमें केक पर Maa लिखा हुआ था। लगा बच्चे-बच्चियां अपनी मां का happy birthday मना रहे हैं। लेकिन संख्या इतनी ज्यादा थी कि यह सिर्फ जन्म देने वाली मां का हैप्पी बर्थडे नहीं हो सकता था। मेरा अनुमान सही निकला और बाद में पता चला कि यह जीवन देने वाली मां (अर्थात् किसी शिक्षिका) का हैप्पी बर्थडे मनाया जा रहा था। वह भी देवभूमि हिमालय की राजधानी शिमला में।
वही शिमला जहां अभी-अभी विश्वविद्यालय के पास स्थित समर हिल के शिव मंदिर में सोमवार को बाबा के दर्शन के लिए आए हुए कई लोग महाकाल के गाल में भूस्खलन के कारण समा गए। उसमें अधिकतर संख्या शिक्षाविदों की थी।
शिक्षकों के अचानक इस प्राकृतिक हादसे में चले जाने से विद्यार्थियों के सामूहिक अवचेतन मन में एक आश्रयविहीनता ने जन्म ले लिया है। अनाथ होने के अपने दर्द को मिटाने के लिए बार-बार मना करने के बावजूद भी शिमला-हॉस्टल की छात्राओं ने अपनी शिक्षिका के जन्मदिवस को कुछ इस प्रकार से मनाया कि बर्बाद हुए देवभूमि का वह दृश्य दिल में सदा-सदा के लिए आबाद हो जाए।
आखिर कारण क्या है? टूटे हुए दिलों को सबसे ज्यादा जरूरत होती है प्रेम और करुणा की। जब कोई टीचर अपने ज्ञान को प्रेम और करुणा से अपने विद्यार्थियों के लिए लूटाता है तो उस बारिश में सभी भींगने लगते हैं। जब ज्ञानदान के साथ हॉस्टल की सुरक्षा की महती जिम्मेदारी को भी कोई बखूबी निभाता है तो सुरक्षा के एहसास से उस ज्ञान और प्रेम की भावधारा में विद्यार्थी बहने लगते हैं। विद्यार्थी इतने भोले होते हैं कि कभी अपने टीचर के धर्म,जाति,क्षेत्र को नहीं पूछते, बस उसके प्रेम को देखते हैं।
यह तो राजनीति है जो धर्म,जाति, क्षेत्र की याद दिलाती है। टीचर तो सारे दीवारों को गिरा देता है और उन्हें खुला आकाश दिखा देता है। जीवन के अंधकारपूर्ण क्षणों में जैसे कोई बिजली चमक जाए और अपना रास्ता दिखाई दे दे, वैसे ही निराशा में डूबे हुए विद्यार्थियों के लिए अपने टीचर का जन्मदिवस आशा का एक प्रकाश-स्तंभ लगा।
'विपदा के समय में कोई खुशी न मनाया जाए'-शिक्षक की इस चेतावनी को विद्यार्थियों ने नहीं माना। विद्यार्थियों ने जन्मदिवस की खुशी मनाई लेकिन उपर से आसमान की बरसात और धरती पर आंसुओं की बरसात के साथ। ये आंसू किस कारण से बहे, यह कहना मुश्किल है-प्राकृतिक हादसा में खो गए शिक्षकों के लिए थे या जन्मदिवस की खुशी के लिए थे या शिक्षिका की सेवानिवृत्ति से उपजे वियोग के कारण थे। या इन आंसुओं में सुख-दुख सब समाहित हो गए थे।
मां का संबोधन अद्भुत संबोधन है। दुनिया का सबसे छोटा संबोधन दुनिया के सबसे बड़े त्याग, प्रेम और करुणा के बाद मिलता है।
"फिर कभी देखा नहीं मां के गले में हार को
भूख के दिन बिक गई जो वह निशानी याद है
वक्त से पहले ढली जो वह जवानी याद है
मुझको अपने जिंदगी की हर कहानी याद है।"
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ सर्वजीत दुबे 🙏🌹