संवाद
"मुझे चांद चाहिए"
चंद्रयान-3 की सफलता के गौरवपूर्ण क्षण में चांद आकाश में दिखाई नहीं दे रहा लेकिन इतना ज्यादा चांद को नजदीक से मैंने कभी नहीं देखा। क्योंकि हमारे इसरो के वैज्ञानिकों ने 'चांद हमारे अंगना उतरे कोई तो ऐसी रैन मिले' की कल्पना को अब कल्पना नहीं रहने दिया। चांद पर चंद्रयान को उतार कर डिमडिम उद्घोष कर दिया है कि चांद हमारे पास नहीं आ सकते तो हम चांद के पास पहुंचते हैं।
चांद छूने के संकल्प को आज सिद्धि मिली वैज्ञानिकों की अथक एकांत साधना से। उन महान वैज्ञानिकों की एकाग्रता, तपस्या,आशावादिता और मिलकर काम करने के सद्गुणों को यदि हम भावी पीढ़ी तक पहुंचा सकें तो एक दिन सौरयान की सफलता का जश्न भी हम मनाएंगे।
वृक्ष सबको दिखाई देता है, बीज नहीं दिखाई देता। लेकिन इसरो रूपी बीज को जिसने बोया,क्या कृतज्ञ राष्ट्र उसको भूल सकता है? कभी नहीं, क्योंकि भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा ने इसरो जैसे संस्थान में आकाश की ऊंचाइयां चूमी। अनेक निराशा और असफलता के दौर से गुजरते हुए आगे बढ़ने की ललक ने आज की आशा और सफलता का सूरज शाम को उगाया है जिसके कारण चंदा मामा दूर के अब नहीं रहे बल्कि टूर के हो गए।
'जय विज्ञान' के इस मांगलिक क्षण में एक ख्याल मन में उठ रहा है कि हिंदू,मुसलमान,सिख,इसाई सबका विज्ञान एक है, फिर धर्म सबका एक क्यूं नहीं?
"चांद पर पहुंच चुके हैं विज्ञान के पांव
देखना यह है कि इंसान कहां तक पहुंचे?"
जब आमजन धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं तो विज्ञान की सार्वभौमिक स्वीकृति आज न कल सार्वभौमिक स्वीकृति वाले धर्म को तलाश करेगी। भारतीय संस्कृति में 'वसुधैव कुटुंबकम्' , 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' जैसे महावाक्य उसी एक धर्म की याद दिलाते हैं-
"एक इस आस पे अब तक है मेरी बंद जुबां
कल को शायद मेरी आवाज वहां तक पहुंचे।।"
चंद्रयान पर पहुंचने की सफलता की यह खुशी शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती, लेकिन यह खुशी इतनी ज्यादा है कि उसे व्यक्त किए बिना भी रहना मुश्किल है। जिस तरह से सर्वत्र सार्वभौमिक विज्ञान की जय हो रही है, उसी तरह से जब सर्वत्र सार्वभौमिक धर्म की जय होगी तभी सर्वत्र सुख और शांति होगी। विज्ञान सुख देगा और धर्म शांति।
इसी आशा के साथ शुभकामना और सभी को बधाई!
'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹