🙏रक्षाबंधन और संस्कृत दिवस की शुभकामना🌹


"संस्कृत की रक्षा के बंधन में बंधें"


संस्कृत दिवस और रक्षाबंधन का पावन अवसर हमें संस्कृत की रक्षा के बंधन में बंधने का निमंत्रण देता है। संस्कृत एक भाषा तो है ही लेकिन उससे ज्यादा एक जीवन पद्धति का नाम है जिसे सनातन संस्कृति कहा गया।


'प्रकृति' शब्द से हम परिचित हैं जिसका अर्थ है 'कृति के पूर्व' (before creation). मानव के हृदय में घृणा भी है और प्रेम भी, क्रोध भी है और करुणा भी। यह प्राकृतिक अवस्था है। संस्कृति एक व्यवस्था देती है कि घृणा का बीज तो बीज ही बना रहे लेकिन प्रेम का बीज वटवृक्ष बन जाए, क्रोध बीज रूप में रह जाए लेकिन करुणा बड़ा वृक्ष बन जाए।


"अवचेतन में छिपी घृणा ही चेतन का अनुराग बन गई


जो अंतर की आग अधर पर आकर वही पराग बन गई।"


संस्कृत के ऋषियों ने मूल तत्व को खोजा और पाया कि विविधता बाहरी-परत है, विविधता के मूल में एकता आंतरिक-परत है। छोटे से बीज से तने,पत्तियां,शाखाएं,फूल और फल निकलते हैं जिनमें काफी अंतर दिखाई देता है। बीज को जानने वाला दिखाई देने वाले अंतर से प्रभावित नहीं होता बल्कि मूल में छिपी एकता से अभिभूत होता है। तभी तो ऋषि वाणी निकली-


"सर्वे भवंतु सुखिन:"अर्थात् सभी सुखी हों।


यहां सूक्ति में आए "सर्वे" शब्द में मानव ही नहीं,पशु-पक्षी भी आते हैं और पेड़-पौधे भी आते हैं। इसलिए ऋषि वनों में पेड़-पौधों के बीच पशु-पंक्षियों के साथ प्रेम और करुणापूर्ण वातावरण में सुख से रहते थे। ऐसी सूक्ति से दूर होने पर देवभूमि आज खतरे में पड़ गई।


आज तो एक मानव दूसरे मानव के साथ नहीं रह पा रहा। क्योंकि उस संस्कृति से हम दूर हो गए जो संस्कृत भाषा में हमें सिखाती थी कि अग्नि,जल,वायु, पृथ्वी, आकाश सभी हमारे देवता है और माता-पिता है।


उस संस्कृत की रक्षा के बंधन में बंधकर हम इंसान से भगवान की ओर गति कर सकते हैं। रक्षाबंधन आज भले ही भाई-बहन के त्यौहार के रूप में प्रचलित हो गया हो लेकिन मूल में धर्म-रक्षा का यह बंधन था। धर्म का अर्थ था- जो धारण करे। भाई का धर्म है बहन की रक्षा करे और बहन का धर्म है भाई की रक्षा करे , राजा का धर्म है प्रजा की रक्षा करे और प्रजा का धर्म है राजा की रक्षा करे। हम सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं-


"ऐसा कोई गीत नहीं है जिसमें तेरा राग नहीं हो


ऐसी कोई प्रीत नहीं है जिसमें तेरा त्याग नहीं हो।"


रक्षा का यह "बंधन" कोई कारागृह नहीं जिसमें अनमनापन और दुख हो बल्कि "रक्षाबंधन" तो प्रेमपूर्ण होने के कारण आनंद से संयुक्त जिम्मेदारी का एहसास है जैसे काठ को छेद कर देने वाला भंवरा फूल की कोमल पंखुड़ियों में मजे से बंद रहता है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹