🙏जीवन देनेवाले हे शिक्षक!प्रणाम🙏


"क्या नहीं है झम्मन मास्साहब आज?"


अभी प्रोफेसर बनीं एक मैम ने सबसे पहले प्राइमरी स्कूल में पढ़ानेवाले झम्मन मास्साहब का नाम लिया तो मुझे आश्चर्य हुआ कि विश्वविद्यालय में गोल्डमेडल दिलानेवाले या शोध करवानेवाले प्रोफेसरों का सबसे पहले नाम क्यों नहीं लिया? मैंने जिज्ञासा की तो उनका जवाब मेरे दिल को छू गया। उनका जवाब था-"मेरे लिए तो सारे शिक्षक आदरणीय हैं और प्रातःस्मरणीय हैं किंतु जब लड़कियों को घर के सारे काम करने के बाद ही पढ़ने की इजाजत मिलती थी, उस वक्त में झम्मन मास्साहब के पढ़ाने का अंदाज ऐसा था कि स्कूल की पढ़ाई के बाद घर पर आकर किताब खोलना हमारा सबसे सुखद क्षण होता था। झाड़ू-पोंछा से लेकर खाना बनाने का काम करने के बाद भी रात में देर तक उनके पढ़ाए हुए पाठ को पढ़ने में और याद करने में बहुत मजा आ जाता था। लगता था कि किताबें जिंदा हो गईं और सबसे प्रिय सहेली बन गईं।


बांसवाड़ा के विद्यार्थी तो किताबें ही नहीं खरीदते, पढ़ने की बात तो दूर; लास्ट मिनिट पासबुक से पढ़ने वाली पीढ़ी को किताबों की ओर आकर्षित करने का जादूमंत्र मुझे झम्मन मास्साहब में दिखा। "मिट्टी" के बारे में बच्चों को पढ़ाना होता था तो झम्मन मास्साहब काली मिट्टी,लाल मिट्टी,दोमट मिट्टी,लेटराइट मिट्टी छोटे-छोटे डब्बे में भरकर लाते थे और हम सभी बच्चों को बड़े मजेदार ढंग से उनको दिखाते हुए पढ़ाते थे। जब हम घर पर जाकर मिट्टी का चैप्टर पढ़ती थीं तो तुरंत समझ में आ जाता था। "फसल" अध्याय के बारे में पढ़ाने के लिए झम्मन मास्साहब खरीफ,रबी और जायद फसलों के नमूने अलग-अलग रुमालों में बांधकर लाते थे और खेतों में और बाजारों में ले जाकर हम सभी से फसलों की पहचान करवाते थे।


कोई भी पाठ पढ़ाने के बाद जब तक सारे बच्चों को पाठ कंठस्थ नहीं हो जाता था तब तक वे अगला चैप्टर शुरू नहीं करते थे।


झम्मन मास्साहब की कहानी मैडम की जुबानी इतनी सुहानी हो गई कि वक्त का पता ही नहीं चला। फिर मुझे याद आया कि उनके पिताजी भी तो उसी स्कूल में पढ़ाते थे, फिर वे पिताजी से भी पहले झम्मन मास्साहब का ही नाम क्यों ले रही हैं? उनका जवाब लाजवाब था-"पिताजी भी काफी मेहनत से बच्चों को अच्छा पढ़ाते थे और लाइब्रेरी की अच्छी-अच्छी पुस्तक पढ़ने को देकर बच्चों के जीवन को बदलने का प्रयास करते थे लेकिन झम्मन मास्साहब का कोई जवाब नहीं क्योंकि वे तो "घर" चैप्टर के बारे में पढ़ाने के लिए इतनी सुंदर झोपड़ी बनाकर लाते थे कि हम सभी बच्चे मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। कोई बच्चा दो-तीन दिन क्लास में नहीं आता था तो घर जाकर पूछते थे कि कहीं तबीयत तो खराब नहीं है।


अब मुझे पता चला कि अपने शिक्षक-पिताजी से भी पहले झम्मन मास्साहब का नाम कोई विद्यार्थी क्यूं लेता है?


झम्मन मास्साहब के उजाले में आज के शिक्षकों का अंधकार मुझे और ज्यादा प्रगाढ़ दिखाई देने लगा और दिल को कचोटने लगा। आज के मास्साहब के एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में फाइल के साथ दौड़ते हुए देखकर सभी बच्चे हंसते हैं और मजाक में कहते हैं कि यह एरोप्लेन क्लास में कब लैंड करेगा?


मेरी नजर में आज का शिक्षक भी झम्मन मास्साहब से कम मेहनत नहीं कर रहा है किंतु उसकी मेहनत बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं बल्कि अधिकारियों को सूचना भेजने के लिए हो रही है। आज का बच्चा शिक्षक को जिस रूप में देख रहा है, कल उस शिक्षक को किस रूप में याद करेगा? इस शिक्षक की स्थिति आज भी हास्यास्पद है और बच्चे की नजर में कल भी आदरास्पद नहीं होगी। क्योंकि यह शिक्षक अधिकारियों के लिए और अपनी नौकरी बचाने के लिए जी रहा है जबकि झम्मन मास्साहब बच्चों के लिए जी रहे थे और उनके जीवन को बदलने के लिए मर रहे थे। तभी तो प्रोफेसर बनने वाली मैडम को ऐसी आंखें मिलीं कि वे नींव के पत्थर को देख सकीं -


"पुरानी रोशनी और नई रोशनी में फर्क इतना है


उसे किश्ती नहीं मिलती,इसे मंजिल नहीं मिलती।"


पुराने शिक्षकों के पास सुविधाएं कम थीं किंतु बच्चों के लिए दिल में प्यार बहुत ज्यादा था। यही कारण है कि चंद्रयान या आदित्ययान को सफल बनाने वाले अधिकतर इसरो वैज्ञानिक किसी साधारण सरकारी स्कूल से या सामान्य कॉलेज से पढ़कर निकले हैं लेकिन भारत का नाम असामान्य और असाधारण ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं क्योंकि उन्हें कोई झम्मन मास्साहब मिला होगा।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.डॉ.सर्वजीत दुबे


शिक्षक दिवस की शुभकामना🙏🌹