संवाद
"नारी वोट की ताकत"
नारी शक्ति वंदन बिल को जितना बड़ा समर्थन मिला उसे देखकर लगता है कि हमारी सोच कितनी ज्यादा नारी समर्थक है। लेकिन वास्तविकता यह है कि पुरुष- प्रधान-भारतीय-समाज इतना ज्यादा नारी विरोधी रहा है कि गर्भ से लेकर कब्र तक नारी को समाप्त कर देने के अनेक उपाय किए। कन्या-भ्रूण-हत्या से लेकर सती-प्रथा तक अनेक कुरीतियां समाज में प्रचलित रहीं और आज भी स्थितियां बहुत ज्यादा उनके अनुकूल नहीं हैं। नारी के प्रति बढ़ते अपराध इसके सबसे बड़े प्रमाण है।
यह तो विज्ञान का चमत्कार है कि उसके अविष्कारों के कारण मसल्स-पावर की प्रधानता गौण हो गई। शिक्षा के प्रचार-प्रसार ने लड़कियों को स्वयं को साबित करने का अवसर दे दिया। वैज्ञानिक सोच और गुणवत्तायुक्त शिक्षा वाले समाज में महिला-आरक्षण-बिल के बिना ही महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं।
महिला-आरक्षण-बिल दरअसल पाप का प्रायश्चित है अथवा वोट की मशक्कत, यह विचारणीय विषय है क्योंकि महिला मतदाताओं के बढ़ते प्रतिशत ने हर राजनीतिक दल का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।पहले किसी के साथ भेदभाव कर उसको कमजोर बनाओ और फिर 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' लाकर खुद को मसीहा बनाओ। इन दोनों अतियों पर गहराई से सोचें बिना हमारी प्रगति संभव नहीं। नारी को सेकेंडरी दर्जा देने का परिणाम यह हुआ कि पीढ़ियां दीन-हीन होती चली गईं। सामान्य गणित है कि शारीरिक और मानसिक दृष्टि से सबल नारी से ही बलशाली और बुद्धिमान बच्चे जन्म ले सकते हैं। लेकिन समाज की गलत सोच ने नारी को पुरुष-आश्रित बना दिया और फिर नारी को भार घोषित कर दिया।
पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण से वहां उनका प्रतिनिधित्व बढ़ा और अब 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' से संसद में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ जाएगा। लेकिन असंसदीय माहौल में "गरिमापूर्ण-मर्यादापूर्ण-महिला -सांसद" कितनी महफूज और मुखर रह पाएंगी? एक बार लता जी से पूछा गया था कि संसद में आपकी इतनी कम उपस्थिति क्यों रहती हैं? लता जी का जवाब था कि सुर के साधकों को बेसुरे लोगों के बीच बैठना बहुत मुश्किल होता है।नारी का प्रतिनिधित्व बढ़ने से नारी सुलभ सलीका,तहजीब,मर्यादा के साथ त्याग,प्रेम,सच्चाई इत्यादि गुण भी बढ़ रहे हैं अथवा नहीं, यह मुख्य चिंता और चिंतन का विषय होना चाहिए।
प्राकृतिक रुप से नारी स्वभाव और पुरुष स्वभाव में एक अंतर है। नारी का स्वभाव घर को प्रेममय बनाकर एक रखने का था और पुरुष का स्वभाव बाहर निकलकर अपने पौरुष के बल पर दूसरे से प्रतियोगिता करके धन कमाने का था। दोनों के अद्भुत संतुलन से यह संसार सुखमय बनता है। घर का प्रेम अपनी जगह पर महत्वपूर्ण है और बाजार की प्रतियोगिता अपनी जगह पर।
ध्यान देने की बात यह है कि बाहर में प्रतिनिधित्व हेतु निकलने वाली नारी को घर के पुरुष का कितना और कैसा समर्थन मिलता है। हर पुरुष की सफलता के पीछे किसी न किसी नारी का योगदान अवश्य होता है, यह तो हम बहुत सुनते आए हैं किंतु क्या हर नारी की सफलता के पीछे पुरुष का योगदान भी अवश्य होगा? -यह देखने वाली बात होगी।
नारी और पुरुष को एक दूसरे से सीखने की जरूरत है क्योंकि दोनों एक दूसरे के परिपूरक है। लेकिन आज के हेट-स्पीच और नफरती-हालात में तो नारी के कोमल गुणों को अपनाए जाने की ज्यादा जरूरत है-
नारी के जिस भव्यभाव का,साभिमान भाषी हूं मैं
उसे नरों में भी पाने का उत्सुक अभिलाषी हूं मैं।
मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को यदि व्यवहार में नहीं उतारा गया तो महिलाओं के लिए आरक्षित सीट भी भरनी मुश्किल हो जाएगी-
"खुश्बू पाने के लिए फूल खिलाना मजबूरी है
उन्हें बुलाने के लिए माहौल बनाना जरूरी है।"
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹