🙏गांधी शास्त्री जयंती की शुभकामना🙏


"सनातनी हिंदू गांधी"


क्या गांधी स्त्रैण और सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रतिनिधि थे? कुछ लोगों की नजर में गांधी के प्रेम और अहिंसा के सिद्धांत ने देश को चूड़ियां पहना दीं। यह देश कायर हो गया और लड़ना भूल गया। ऐसे नेताओं की ही नहीं बल्कि महात्माओं की भी संख्या बढ़ती जा रही हैं जो लोगों को घृणा और हिंसा के लिए उकसा रहे हैं। अपने आप को सनातनी हिंदू बताते हुए 'अहिंसा परमो धर्म:' की जगह पर 'धर्म हिंसा तथैव च' वाक्यांश पर ज्यादा जोर देकर हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र उठाने की वकालत कर रहे हैं। हिंदू ग्रंथों के वाक्यों में फेरबदल कर नई पीढ़ी को धर्मयुद्ध के लिए अपना सर्वस्व न्योच्छावर करने की प्रेरणा दे रहे हैं।


ऐसे में सनातनी हिंदू गांधी के जीवन और दर्शन पर पुनर्विचार होना चाहिए। महात्मा की हिंदू धर्म के प्रति आस्था जितनी अडिग थी उतनी ही ज्यादा वे दूसरे धर्मों के प्रति भी आदर से भरे हुए थे। उन्हें इसका साक्षात्कार हो गया था कि सारे धर्मों का मूलभूत आधार एक है,जो सत्य,प्रेम,अहिंसा है। अतः वे जीवन भर और अपने जीवन के अंतिम समय तक प्रार्थना कर सके कि -


"ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान।"


"वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाने रे।"


सनातनी हिंदू होने के नाते सत्य-प्रेम-अहिंसा में उनका जीवन इतना रमा हुआ था कि गोली लगने के बावजूद भी उनके मुख से गाली नहीं बल्कि 'हे राम!' निकला।


जिस तरह विज्ञान के नियम हिंदू,मुस्लिम,सिख, ईसाई के लिए अलग-अलग नहीं बल्कि सार्वभौमिक है ,उसी प्रकार भारतीय संस्कृति के द्वारा खोजे गए धर्म के सनातन नियम भी सार्वभौमिक है जिसे सनातन हिंदू धर्म ने स्वीकार किया। जगत असत्य,घृणा और हिंसा से चल नहीं सकता। अतः हमारी परंपरा में महावीर उसे कहा गया जिसने 'अहिंसा परमो धर्म:' का उपदेश दिया।


पश्चिम की संस्कृति में युद्ध और हिंसा को वैचारिक आधार मिला जिसके कारण हिटलर,मुसोलिनी,स्टालिन जैसे नायक पैदा हुए। पूरब की संस्कृति में प्रेम और करुणा को सर्वोपरि मूल्य माना गया जिसके कारण बुद्ध,महावीर और गांधी जैसे महानायक पैदा हुए।


UNO ने भी गांधी के जन्मदिवस को 'विश्व अहिंसा दिवस' के रुप में मनाने का निर्णय इसीलिए लिया कि युद्ध और हिंसा से विश्व विनाश के कगार पर पहुंच गया। दो विश्व युद्धों के बाद भी निरंतर चल रहे युद्धों से किसी समस्या का समाधान नहीं निकला। आखिर रूस और यूक्रेन युद्ध से क्या मिल रहा है?-


"जंग तो खुद एक मसअला है


जंग क्या मसअलों का हल देगी


खून और आग आज बरसेगी


भूख और ऐहतियाज कल देगी।"


युद्ध की मानसिकता को वैचारिक आधार देने वाले विचारक नीत्शे ने तो बुद्ध,महावीर,गांधी के प्रेम और अहिंसा के प्रति अत्यधिक झुकाव को देखते हुए उन्हें स्त्रैण कहकर मजाक भी उड़ाया था लेकिन भारतीय संस्कृति स्त्री सुलभ प्रेम-करुणा के इन गुणों को बहुत महिमा देती है। सत्य-प्रेम-अहिंसा के कारण स्वतंत्रता की लड़ाई में गांधी स्त्रियों का भी इतना बड़ा समर्थन प्राप्त कर सके कि दुनिया आश्चर्य से भर गई। महिला सशक्तिकरण का इतना बड़ा प्रयोग आज तक किसी ने नहीं किया था। महात्मा बुद्ध ने तो स्त्रियों को अपने बौद्ध धर्म में लेने से प्रारंभिक तौर पर मना तक कर दिया था जबकि महात्मा गांधी ने अबला समझी जाने वाली स्त्रियों को स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल करा दिया और स्त्री-शक्ति से और आत्म-शक्ति से दुनिया को परिचित करा दिया।


सनातन धर्म तो इतना व्यापक है कि वेद का समर्थन करने वाला हिंदू धर्म और वेद विरोधी जैन व बौद्ध धर्म भी सनातनी है क्योंकि सभी प्रेम और अहिंसा को बड़ा मूल्य देते हैं। गांधी ने तो सत्य-प्रेम-अहिंसा की व्यक्तिगत साधना को स्वतंत्रता संग्राम में सार्वजनिक सहयोग से व्यवहार में लाकर जगत को सत्याग्रह का एक नया रास्ता दिखाया जिसके कारण वे मानव से महामानव बन गए।


कुछ लोग गांधी को राष्ट्रपिता और महात्मा नहीं कहना चाहते हैं या नहीं मानना चाहते हैं तो उनका भी स्वागत होना चाहिए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें "राष्ट्रपिता" कह दिया और नोबेल पुरस्कार विजेता कविवर रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें "महात्मा" कह दिया तो जरूरी नहीं है कि हर कोई उन्हें राष्ट्रपिता और महात्मा कहे।आज जरूरत है सनातन हिंदू धर्म के विराट जीवन मूल्यों को जीवन में उतारकर अपने जीवन से संकीर्णता हटाकर विराट बनाने की। अहिंसा के पुजारी के जन्म दिवस को 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में पूरा विश्व मना रहा है, इससे बड़ा सनातन हिंदू धर्म का सम्मान और क्या हो सकता है!


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹