संवाद
"मानसिक-स्वास्थ्य निर्भर है शैक्षिक-स्वास्थ्य पर"
प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाए जाने वाले "विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस" बढ़ते मनोरोगियों के आंकड़े लाकर हमें जागरूक करता है कि मानसिक रोगों को छुपाए नहीं बल्कि बताएं। हत्या,बलात्कार,सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या,आगजनी,हिंसा,गलाकाट-प्रतिस्पर्धा गवाही देते हैं कि हर चौथा व्यक्ति ही मानसिक रोगी नहीं है बल्कि पूरा समाज मानसिक-स्वास्थ्य की दृष्टि से संकट में है।
मेरी दृष्टि में सबसे बड़ा सवाल है कि अपने मानसिक रोगों को किससे बताएं? समाज को बताओ तो उपहास का विषय बन जाते हैं और किसी साइकियाट्रिस्ट को बताओ तो धन से कंगाल हो जाते हैं। फिर तन का इलाज भारत में कैसा होता है 'नांदेड का सरकारी अस्पताल' बता रहा है, मन के इलाज के लिए तो प्रति 10 लाख पर एक डॉक्टर भी नहीं है। और वह डॉक्टर भी मानसिक रूप से स्वयं स्वस्थ हो,कोई जरूरी नहीं है-
"फसलें न उगेंगी , न कभी प्यास बुझेगी
ये ओस की बूंदें हैं , ये बरसात नहीं हैं।
कहते हैं कोई शहर में अब भी है वफादार
हालांकि मेरी उससे मुलाकात नहीं है।।"
मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध शिक्षा से है। लेकिन जब शिक्षा का ही स्वास्थ्य खराब हो तो वहां निर्मित होने वाला मन कैसे स्वस्थ हो सकता है? खासकर सरकारी शिक्षालयों का स्वास्थ्य तो इस कदर खराब हो चुका है कि वह अचेत अवस्था में पड़ा हुआ है। मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों की खबर आई है कि वे सिर्फ कागज में चल रहे हैं। विद्यार्थी को सिर्फ डिग्री चाहिए और संचालकों को सिर्फ पैसा। अतः जिस कॉलेज के पास बिल्डिंग तक नहीं है,उसके पास भी अच्छी संख्या में विद्यार्थी हैं। विश्वविद्यालयों का स्वास्थ्य तो मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुका है, किसी तरह से वेंटिलेटर पर वे जिंदा हैं। वहां तो विद्यार्थी ही नहीं,शिक्षक का भी मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है।
बेरोजगारों की बढ़ती फौज और परीक्षाओं की दुर्दशा देखकर किसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रह सकता है? हमारी शिक्षा तन की आवश्यकताएं रोटी,कपड़ा और मकान तो पूरी नहीं कर पाई, फिर मन की इच्छाएं कहां से पूरी कर पाएगी? शिक्षालयों में पढ़ाई नहीं होने के कारण कोचिंग बढ़ते जा रहे हैं और कोटा के कोचिंग संस्थानों में मानसिक तनाव से बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम है-"मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है।" (Mental health is a universal human right)लेकिन जब तक सबको एक समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा उपलब्ध नहीं होती, तब तक मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार कैसे हो सकता है? जब तक शिक्षालयों में शिक्षकों की कमी को पूरा नहीं किया जाता और उन्हें गैर-शैक्षिक कार्यों से मुक्त करके पढ़ने-पढ़ाने की समुचित व्यवस्था नहीं जुटाई जाती तब तक विद्यार्थियों का ही मानसिक स्वास्थ्य खतरे में नहीं रहेगा बल्कि शिक्षकों का भी मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाएगा। क्योंकि सबसे बड़ा मनोरोग सिजोफ्रेनिया है। सिजोफ्रेनिया का मतलब है कि जिंदगी भर पढ़कर कोई शिक्षक बने किंतु उससे पढ़ाने का काम नहीं लिया जाए, बाकी सारे काम खाना खिलाने से लेकर सूचना जुटाने तक का लिया जाए।
"आधुनिक शिक्षा ने हम पर ऐसी मान्यताएं लादी हैं
हर व्यक्ति खुद से दूर दौड़ रहा पाने को गादी हैं।
बंधे बंधाए उत्तरों में हम आज इतने खब से गए हैं
मूल प्रश्न जीवन के कहीं दब से गए हैं।।"
जीवन का मूल प्रश्न है कि हम तन है, या मन है या आत्मा है?
प्राचीनकालीन वैदिक शिक्षा आत्म-साक्षात्कार द्वारा परमात्मा से परिचय करवाती थी जबकि आधुनिक व्यावसायिक शिक्षा मन से भी परिचय नहीं करवा पा रही है-
"तुमको जो खुद से मिल सके वही शिक्षा है
अन्यथा एक भिखारी की दूसरे भिखारी को दी गई भिक्षा है"
फलत: मानसिक स्वास्थ्य इतना खराब हो चुका है कि किसी भी धर्म का सबसे पवित्र दिन सबसे बड़ा अधर्म का दिन और कातिल दिन साबित हो रहा है। चाहे इजराइल में हमास की आतंकी घटना हो या भारत में नूह की घटना हो; ऐसी सारी घटनाएं यही बता रही हैं कि मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने वाली अच्छी शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं की गई तो सांप्रदायिक शिक्षा मानव-बम तैयार करने में सफल हो रही है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो सर्वजीत दुबे🙏🌹