🙏नवरात्र और विश्व विद्यार्थी दिवस की शुभकामनाएं🙏
"ज्ञान और प्रेम का मसीहा कलाम"
मेरे घर में कल ही एक छोटा सा मंदिर बना। मंदिर बनाने वाले कलाकार ने दिनभर उपवास रखकर इतनी सूक्ष्मता से इतना सुंदर काम किया कि तुरंत वहां बैठकर पूजा- प्रार्थना करने की इच्छा जाग्रत हो गई। कलाकार का नाम पूछा तो पता चला- मेहबूब। मूर्तिभंजक धर्म से आने वाले कलाकार के हृदय में इतना सुंदर मंदिर बसता है कि मूर्तिपूजक धर्म से आने वाला इंसान भी आश्चर्यचकितभाव से भरकर उसे हृदय से लगा लेना चाहता है। मेहबूब को देखकर मुझे भारत रत्न कलाम साहब की याद आ गई जिनको राष्ट्रपति बनाने के लिए हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ानेवाले तत्कालीन प्रधानमंत्री बाजपेयी जी ने पहल की।
धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बांटकर तथा लड़वाकर राजनीति करने वाली स्वप्नभंजक दुनिया में जीवन के सपनों को साकार करने का जो मंत्र इस अब्दुल (ज्ञान) ने दिया है,उससे जीवन का मंदिर बहुत ही भव्य बन सकता है। वह मंत्र है-"सपने वे नहीं जो नींद में आते हैं बल्कि सपने वे हैं जो नींद ही नहीं आने देते हैं।" प्रेम का जो जीवन इस कलाम ने जीया है, उस प्रेम के आगोश में आने के लिए इंसान अपने जाति,धर्म के सारे बंधनों को तोड़ देता है।
अगड़ा-पिछड़ा या हिंदू-मुसलमान की दरकार हिंदुस्तान को नहीं है, आज हिंदुस्तान उस तालीम पसंद इंसान का मुरीद है जो समुद्र के पास जन्म लेकर भी ज्ञान का इतना प्यासा था कि हर तट पर ज्ञानगंगा में डूबकी लगाता गया-चाहे प्राथमिक शिक्षक अय्यर साहब का तट हो या इसरो के संस्थापकों में से एक विक्रम साराभाई का तट हो। सीखने की ललक इतनी थी कि उस बेमिसाल कलाम ने मस्जिद में जितनी श्रद्धा से नमाज पढ़ी ,उतनी ही श्रद्धा से मंदिर में भी अपना सर झुका दिया-
"हम तो तेरा दर समझकर झुक गए
खुदा जानें वह काबा था या बुतखाना।"
प्यासे को पानी चाहिए, किस तट का पानी है इसका ख्याल भी नहीं आता। सिखानेवालों ने भी कभी जाति-धर्म नहीं देखा, उनकी चिंता तो बस इतनी ही रहती हैं कि मेरी ज्ञान विरासत को कोई संभाल ले और आगे बढ़ा दे।
सरकारी शिक्षालयों से पढ़कर उस समय भी कलाम जैसी प्रतिभा निकली और आज भी चंद्रयान-आदित्ययान बनाने वाले वैज्ञानिकों में से अधिकतर साधारण शिक्षालयों से निकली हुई प्रतिभाएं हैं-
"कुसुममात्र खिलते नहीं राजाओं के उपवन में
अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुंज कानन में
कौन जाने रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल।"
अभावों में जन्म लेने वाली प्रतिभाओं को यदि अय्यर साहब जैसे ज्ञान और प्रेम से पूर्ण शिक्षक मिले जो क्लास में पंछी के बारे में बताने के बाद अपने विद्यार्थियों को समुद्रतट पर ले जाकर आकाश की ओर उड़ते हुए पंछियों का दर्शन कराए तो कई कलाम आज भी भारत को मिल सकते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि गरीब प्रतिभाओं की आश्रयस्थली सरकारी शिक्षालयों को शिक्षक के लिए तरसना पड़ रहा है और उपलब्ध शिक्षकों को गैरशैक्षिक कार्यों से मुक्ति के लिए तथा पढ़ाने के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है।
यू एन ओ द्वारा 2010 में कलाम साहब के जन्मदिवस को 'विश्व विद्यार्थी दिवस' के रुप में मनाने का निर्णय किया गया। लेकिन यह निर्णय तभी सार्थक हो सकता है,जब हम सभी उस विद्यार्थी-भाव को अपने अंदर जगाएं जो धर्म-जाति के सारे बंधनों को तोड़कर अपनी योग्यता के बल पर सभी के दिलों में आदर का स्थान बना लेता है तथा जो अपने ज्ञान तथा प्रेम से भारत को शक्तिशाली भी बना देता है और गौरवशाली भी।
भारत का नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य भी है कि हम ऐसे विद्यालय और महाविद्यालय के लिए आवाज बुलंद करें जहां ज्ञान और प्रेम से भरे हुए अय्यर साहब,साराभाई और सतीश धवन जैसे शिक्षक हों,जो अहर्निश अपने विद्यार्थी को तरासने के लिए समस्त संसाधन और सुविधाएं पा सकें। तभी हम ज्ञान व प्रेम के मसीहा कलाम साहब को फिर पैदा कर सकते हैं।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹