🙏राष्ट्रीय एकता दिवस की शुभकामना🙏
"भावात्मक एकता बढ़ाने वाली शिक्षा"
प्रश्न:-धर्म और जाति के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा तो राष्ट्रीय एकता कैसे संभव होगी?
प्रिय विद्यार्थी!
आपका प्रश्न बहुत अच्छा है और इस समय यह सभी के मन का प्रश्न बन चुका है। सरदार पटेल के समय भी देश धर्म के आधार पर बंट चुका था और जाति के आधार पर समाज विभाजित था। लेकिन उनके विचार इतने उदार थे और राष्ट्र के प्रति उनका प्रेम इतना बड़ा था कि अनेक रियासतों का विलय उन्होंने भारत में करा दिया। लौह पुरुष के द्वारा प्रदत्त राष्ट्रीय एकता राजनीतिक थी क्योंकि साम,दाम,दंड,भेद आदि सभी उपायों से उन्होंने इसे प्राप्त किया था। आशा थी कि इस राजनीतिक एकता को गुणवत्तायुक्त समान शिक्षा के द्वारा भावात्मक एकता में बदल दिया जाएगा।
मानव निर्माण करने वाली शिक्षा के आधार पर जाति,धर्म,भाषा,प्रांत इत्यादि की दीवारों को गिराया जा सकता था लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा देश का कभी भी प्रमुख मुद्दा नहीं बना। इसी कारण आज भी शिक्षा पर कुल जीडीपी का 3% ही खर्च किया जाता है। परिणामस्वरूप गुणवत्तायुक्त-शिक्षा सभी को उपलब्ध नहीं हुई। विशेषकर सरकारी शिक्षालयों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। एक तरफ शिक्षकों की भारी कमी और दूसरी तरफ उपलब्ध शिक्षकों को गैरशैक्षणिक कार्यों में लगाकर ऐसे शिक्षालयों से सिर्फ डिग्रीधारी बेरोजगार तैयार किए जा रहे हैं।
ऐसे बेरोजगारों को धर्म,जाति,भाषा,प्रांत इत्यादि अनेक आधारों पर बांटकर राजनीतिक दल अपना वोट बैंक तैयार कर रहे हैं क्योंकि दूरदृष्टि का पूर्णतया अभाव हो चुका है। विद्यार्थी को लाभार्थी बनाया जा रहा है। भावी भारत का नागरिक तैयार करने वाला शिक्षक शिक्षा के गिरावट को और बांटने वाली राजनीति को फलते-फूलते हुए अपनी आंखों के सामने देख रहा है। शिक्षा का राजनीतिकरण इस हद तक हो चुका है कि सिलेबस में किस महापुरुष को पढ़ाया जाए और किसे हटाया जाए यह भी राजनीतिक दल निर्धारित कर रहे हैं। राजनीतिक विचारधारा के आधार पर शिक्षक भी बंट चुके हैं और शिक्षालयों में भय और भेदभाव का माहौल हावी होता जा रहा है जिसका परिणाम हमें शिक्षापरिसर में उग्र व हिंसक आंदोलनों के रूप में दिखाई दे रहा है। भयाक्रांत माहौल में शिक्षक सत्य बोलने का साहस खोता जा रहा है-
"अजीब हादसे घर में गुजर रहे हैं आज
चराग रोशनी देने से डर रहे हैं आज।"
स्वतंत्रता की लड़ाई में इस डर को परे रखकर अपनी जान की बाजी लगाकर समाज को जागरूक करने के लिए बहुत बड़ा प्रयास किया गया था, जिसका सशक्त माध्यम शिक्षा और पत्रकारिता बनी थी। रोशनी फ़ैलाने वाले चिरागों ने अपनी संपत्ति लगाकर और दान जुटाकर स्कूल-कॉलेज खोलकर तथा पत्र-पत्रिका निकालकर स्वतंत्रता की अलख जगाई और राष्ट्रीय एकता के भाव को आगे बढ़ाया। उस समय जो राजनीतिक दल भी बने उनका प्राथमिक उद्देश्य समाज को जगाना था और राष्ट्रीय एकता के भाव को बढ़ाना था, आज के राजनीतिक दलों की तरह किसी तरह सत्ता पर काबिज होना नहीं था।
चुनाव एक अवसर होता है जिस समय मतदाता मालिक बन जाता है। वृद्धों और विकलांगों को मतदान के लिए चुनाव आयोग होम-वोटिंग की सुविधा दे रहा है और हर मतदाता के समक्ष राजनेता घुटने टेक रहा है तथा सर झुका रहा है।लेकिन मतदाता होने का असली मतलब सिर्फ वोट डालना नहीं होता। 'मतदान' का अर्थ विचार(मत) देना भी होता है और वोट देना भी। मेरी दृष्टि में मतदाता का अर्थ होता है कि देश के लिए चुनाव का मुद्दा भी तय करो और मतदान भी करो।
भारत से प्रेम करने वाले सभी नागरिकों का यह मौलिक कर्तव्य है कि चुनाव का प्राथमिक मुद्दा गुणवत्तायुक्त समान शिक्षा को बनाएं। नालंदा,तक्षशिला जैसे ज्ञान के केंद्रों ने भारत को विश्वगुरु बनाया था,जहां से लोगों को बांटकर अत्याचार करने वाले निरंकुश राजाओं को उखाड़ देने वाले शिक्षक निकलते थे। ऐसे शिक्षक समस्त भारत को एकता के सूत्र में बांधने का ज्ञान यज्ञ चलाते थे।
सरदार पटेल का राष्ट्रीय एकता का सपना तभी पूरा हो सकता है जब विविधता में एकता देने वाली शिक्षा सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हो। वैज्ञानिक राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कहते थे कि शिक्षा 'लेने वाली मनोवृत्ति' को 'देने वाली मनोवृति' में बदल देती है। दूसरे शब्दों में कहें तो लाला बेटा और लाली बेटी को शिक्षा दादा बेटा और दादी बेटी में तब्दील कर देती है। उस सम्यक-शिक्षा के अभाव में आज व्यक्ति भटक रहा है और राष्ट्रीय एकता खतरे में है-
"फिर रहा है आदमी भूला हुआ , भटका हुआ
एक न एक लेबल हर माथे पर है लटका हुआ।
आखिर इंसान तंग सांचों में ढला जाता है क्यूं?
आदमी कहते हुए अपने को शरमाता है क्यूं??"
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे
लौह पुरुष सरदार पटेल के जन्म दिवस और आयरन लेडी श्रीमती इंदिरा गांधी के शहादत दिवस को नमन🙏🌹