🙏भाई दूज की शुभकामना🙏
"दर्शन की महत्ता"
'विश्व दर्शन दिवस' यूनेस्को द्वारा 15 नवंबर को या तीसरे सप्ताह के गुरुवार को मनाया जाता है। मूल उद्देश्य है कि दर्शन की साझी विरासत को संरक्षित और संवर्धित किया जाए। भारत के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण दिवस भविष्य में सिद्ध होगा क्योंकि भारतीय संस्कृति का प्रथम विषय 'दर्शन' था। दर्शन की महत्ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि किसी भी विषय की सर्वोच्च उपाधि Ph.D. का मतलब होता है 'डॉक्टरेट इन फिलासफी'।वह दर्शन विषय आज इतना उपेक्षित है कि स्कूलों में तो इसे पढ़ाया ही नहीं जाता है,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी इस विषय के पढ़नेवाले और पढ़ानेवाले बहुत कम हैं।
विश्व की सभी प्राचीन संस्कृतियां यूनान,मिस्र और रोमन कालक्रम से लुप्त हो गईं किंतु भारतीय संस्कृति की हस्ती मिटाई नहीं जा सकी तो उसका मूल कारण भारतीय दर्शन की अगाधता और गंभीरता है। इकबाल के शब्दों में-
"कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।"
हस्ती बनाने वाली शक्ति 'दर्शन' को आज ज्यादा से ज्यादा पढ़ने और पढ़ाने की जरूरत है तभी भारत विश्वगुरु बन सकता है। 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म'(अर्थात् सब कुछ ब्रह्म है) की विराट और व्यापक दृष्टि ही विश्व को विनाश से बचा सकती है। धर्म,जाति,क्षेत्र,भाषा इत्यादि अनेक संकुचित आधारों पर बांटने वाली दृष्टि असम्यक् है। भारतीय दर्शन कहता है कि इस ब्रह्मांड का मूल एक है, भले ही वह दिखाई नहीं देता हो। जिस प्रकार से एक बीज से नि:सृत भूरी टहनियां,हरी पत्तियां, भिन्न रंग के फूल और अन्य रंग के फल एक ही पेड़ के होते हैं, उसी प्रकार से हम सभी एक ही स्रोत से आए हैं-
"दिखाई दे ना कभी यह तो मुमकिनात में है
वह सब वजूद में है जो तस्सवुरात में है
नजर के जाविए बदले हैं और कुछ भी नहीं
वही है काबे में ,जो नूर सोमनात में है।"
नजर के जाविए(दृष्टिकोण) बदलने के कारण 'एकं सद् विप्रा: बहुधा वदंति'अर्थात् एक सत् को विद्वान भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं। संत रामदास इतनी सुंदर राम कथा कहते थे कि उसको सुनने के लिए स्वयं हनुमान छुपे वेष में आने लगे। एक दिन संत ने कहा कि हनुमान जब अशोक वाटिका में पहुंचे तो वहां सुंदर सफेद फूल खिले हुए थे। हनुमान जी ने खड़े होकर टोका कि अशोक वाटिका में सफेद नहीं,लाल फूल खिले थे। रामदास ने कहा कि आप बीच में मत बोलो,आपको नहीं मालूम। तब हनुमानजी ने अपना असली रूप दिखाकर कहा कि अब बोलो फूल सफेद थे या लाल। रामदास ने कहा कि फूल तो सफेद थे। विवाद बढ़ने पर निर्णय के लिए दोनों राम के पास गए। राम जी ने कहा कि अशोक वाटिका के फूल सफेद थे किंतु हनुमान अत्यंत गुस्से में थे इसलिए वे सफेद फूल भी लाल दिखाई दे रहे थे।
दरअसल देखते तो सभी हैं किंतु यथार्थ बहुत कम लोग देखते हैं जिसे हम तत्त्वज्ञान कहते हैं। उस तत्त्वज्ञान को बताने वाले भारतीय दर्शन के पास मत-मतांतर के कारण बढ़ती जा रही कटुतारूपी समस्या का समाधान है-
"सबमें तेरा रूप समाया
कौन है अपना,कौन पराया।"
लेकिन हमारे शिक्षा केंद्रों की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि भारत अपने मूल विषय 'दर्शन' को ही विस्मृत करता जा रहा है। ज्ञानप्रधान भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा को लौटाने में 'विश्व दर्शन दिवस' बहुत कारगर साबित हो सकता है क्योंकि जब विभिन्न दृष्टियों की परस्पर तुलना होगी तो यह बात उभर कर आएगी कि 'सर्वे भवंतु सुखिन:' की मंजिल तभी प्राप्त हो सकती है जब हम भारतीय दर्शन के मार्ग पर चलें।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो डॉ. अंजना रानी, दर्शनशास्त्र,विभागाध्यक्ष,
प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹