संवाद


"वर्ल्डकप का सपना"


अद्वैत दर्शन के प्रतिपादक शंकर ने संसार को माया कहा। वर्ल्ड कप का बुखार चरम पर है,जिसे इस समय कितना भी कोई माया कहे, अधिकतर लोगों को तो यही सत्य दिखाई दे रहा है।


वर्ल्ड कप जीतने के साथ संसार जीतने की अनुभूति से विजेता टीम भर जाएगी। 10 देशों की आपसी प्रतिद्वंद्विता में विजेता बनकर संसार जीतने का सपना माया या भ्रम नहीं है तो और क्या है? करोड़ों दर्शक इस फाइनल को सेंसेशनल बना देंगे। पूरा जगत दर्शक और दृश्य में बंट जाएगा। दृश्य अर्थात् खिलाड़ी/नेता/अभिनेता जिनको देखा जाता है। इनके प्राण दर्शकों में होते हैं।


दो देशों के दर्शक तो अपने-अपने देश के जीत की कामना करेंगे ही, लेकिन तटस्थ देशों के दर्शक भी तटस्थ कहां रह पाते हैं? वे भी किसी खिलाड़ी के प्रशंसक के रूप में अपना जुड़ाव अपने पसंदीदा खिलाड़ी के साथ-साथ टीम से भी बना लेते हैं। कुल मिलाकर दो भागों में यह दुनिया 19 नवंबर को बंटी हुई दिखाई देगी। रविवार के दिन भी विश्राम कहां? सर्वत्र तनावयुक्तरोमांच का वातावरण दिखाई देगा।


विजेता के आकलन की चर्चा तो अभी से होने लगी है। उनके फार्म और आंकड़ों के आधार पर जोड़- घटाव चलने लगे हैं। विश्लेषकों को खूब मालूम है कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का गेम है,फिर भी विश्लेषण को रोक पाना उनके वश की बात नहीं। सारे आंकड़े और सारे तर्क धरे रह जाते हैं और कोई खिलाड़ी किसी विशेष दिन किसी टीम पर भारी पड़ जाता है। कोई टीम लगातार जीत का स्वाद चखते चली जाती है, फिर भी जीत किसी की भी सुनिश्चित नहीं कहा जा सकता अन्यथा 1983 का विश्वकप इंडिया वेस्टइंडीज को हराकर नहीं जीतता।


खेल तो खेल होता है, लेकिन क्रिकेट का खेल इस मायने में विशेष है कि एक विशेष दिन किसका बल्ला चल जाए और किसकी बालिंग कहर बरपा दे ,कुछ कहा नहीं जा सकता। समालोचक बहुत कुछ कहेंगे और भविष्यवक्ता अपनी भविष्यवाणी भी करेंगे। उसके बावजूद अंततोगत्वा जो होना है ,वह होकर रहेगा।


यही होनी-अनहोनी करोड़ों दर्शकों को गेम से जोड़ती है और खिलाड़ियों ही नहीं खेल में भी प्राण फूंक देती है। कर्म तो फाइनल में पहुंचने वाली दोनों टीमों ने समान किया है लेकिन भाग्य जिसका प्रबल होगा उसके सर जीत का सेहरा बंधेगा।


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया कि सिर्फ कर्म में ही तेरा अधिकार है, फल में नहीं-'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन'. किंतु अब तो फल ही सब कुछ हो चुका है। किसी भी कीमत पर वर्ल्ड कप ट्रॉफी चाहिए।


यहीं पर खेल भावना का सवाल उठता है जिसके लिए इस विशेष वर्ल्डकप को याद किया जाएगा। स्लेजिंग या किसी विवाद से मुक्त यह सद्भावनायुक्त वर्ल्डकप अब तक रहा। इसका मुख्य कारण आईपीएल के दौरान सभी खिलाड़ियों का परस्पर विकसित आपसी संबंध है,जहां भिन्न-भिन्न देश के खिलाड़ी किसी एक टीम से जुड़कर टीममेट्स बन जाते हैं।


आशा है वर्ल्ड कप का फाइनल भी एक उत्कृष्ट खेल के साथ एक उत्कृष्ट खेल भावना का भी निदर्शन कर पाएगा। जीत तो किसी एक को मिलेगी लेकिन खुशी सबको मिल सकती है एक सद्भावनायुक्त सुंदर वर्ल्ड कप का साक्षी या द्रष्टा बनने पर।


भारतीय दर्शन ने दृश्य और दर्शक से ऊपर उठकर द्रष्टा बनने का अद्भुत मंत्र दिया है ,जिसमें कोई जीत का तो कोई हार का मजा ले सकता है, कोई ट्रॉफी जीत सकता है तो कोई दिल। फिर भी हर दिल में एक यही प्रश्न उठ रहा है-


"वर्ल्ड कप का सपना


क्या हो सकेगा अपना?"


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹