"चुनावी जन्मदिवस की शुभकामना"


25 नवंबर के चुनाव में अतिव्यस्त-स्थिति में जन्मदिवस की शुभकामनाओं के प्रति जो मन:स्थिति थी, उसको शब्दों में प्रकट करके अपनी थकान मिटा रहा हूं और अपने द्वंद्व को समझने का प्रयास कर रहा हूं, कृपया ध्यान दें-


भारतीय संस्कृति में अवतारों का जन्मदिवस मनाया जाता है। रामनवमी और कृष्णजन्माष्टमी इस बात की प्रतीक है कि एक ऐसा भी जन्म होता है जिससे कई जीवन का कल्याण होता है। रावण और कंस मारे जाते हैं जिससे राम और कृष्ण का एक लोकनायक के रूप में पुनर्जन्म होता है। 'द्विज'(twice born) शब्द का प्रयोग यही बताता है कि एक शरीर का जन्म मां-बाप से होता है लेकिन जीवन का जन्म तो गुरु-कृपा से होता है। राम और कृष्ण की चेतना का जन्म बिना गुरुओं के नहीं हो सकता है।


लेकिन पश्चिम की संस्कृति के प्रभाव में हर व्यक्ति आज के जमाने में अपने जन्मदिवस को विशेष रूप से मनाना चाहता है। आज से 50 साल पहले जन्मदिवस मनाने का कहीं रिवाज नहीं था, यह रिवाज तो इधर कुछ वर्षों में इतना बढ़ गया है कि शुभकामनाओं का जवाब देने का समय नहीं मिलता।हमारे समय के संयुक्त परिवार में एक साल में दो-तीन बच्चों का जन्म होता था और सबको बस इतना ही याद रहता था कि जन्म रामनवमी और जन्माष्टमी के पहले हुआ या बाद में; अथवा उस समय कोई विशेष त्यौहार- दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा तो नहीं था। स्कूल में एडमिशन के समय जो तिथि लिखवा दी जाती थी वही जन्मदिवस बन जाता था।अब तो जन्म के साथ जन्मप्रमाणपत्र भी बन जाते हैं और फेसबुक को आपके जन्मदिवस की जरूर याद रहती है, भले ही आप भूल जाएं।


25 नवंबर को कुछ ऐसा ही मेरे साथ घटित हुआ। एक तरफ सेक्टर मजिस्ट्रेट के रूप में चुनाव में ड्यूटी लगी हुई थी जिसके कारण होम वोटिंग से लेकर अन्य चुनावी गतिविधियों में बहुत दिनों से समय का पता ही नहीं चल रहा था , नींद भी पूरी नहीं हो रही थी और उस पर से 4:00 बजे सुबह जिला कलेक्टर कार्यालय से रिजर्व ईवीएम मशीन प्राप्त करनी थी। इस मशीन का महत्व यह था कि होमगार्ड के जवान को एक व्यक्ति की सुरक्षा में नहीं बल्कि एक मशीन की सुरक्षा में लगाया गया था। उसे मैंने भी समझा दिया कि यदि कहीं से जानलेवा आक्रमण भी हो तो मेरी जान नहीं बल्कि मशीन को बचाना।


होमगार्ड का जवान ईवीएम मशीन के साथ 4:00 बजे सुबह से रात 2:00 बजे तक चिपका रहा जब तक इसे चुनाव के बाद वापस जमा नहीं करा दिया गया। मशीन के इतना महत्व को देखकर मुझे मशीन से ईर्ष्या होने लगी।मेरे मन से आवाज आई कि हे भगवान! मुझे मशीन बना देना जिसकी कीमत आज मानव से भी ज्यादा है। आज की व्यवस्था मानव को मशीन बनाने की प्रक्रिया में जुट गई है।


रिजर्व ईवीएम मशीन एक दिन पहले सेक्टर मजिस्ट्रेट को दे दी जाती थी लेकिन अभी छत्तीसगढ़ के चुनाव में एक सेक्टर मजिस्ट्रेट गाड़ी में मशीन को छोड़कर सब्जी खरीदने लगे। बस किसी ने फोटो खींच ली और खबर छाप दी कि ईवीएम मशीन को लावारिस छोड़ दिया गया। और चुनाव आयोग द्वारा यह निर्णय लिया गया कि सभी सेक्टर मजिस्ट्रेट को चुनाव के दिन ही 4:00 बजे सुबह मशीन दी जाएगी। इंसान लावारिस हो सकता है, ईवीएम मशीन नहीं क्योंकि इससे चुनाव में जीतने वाले का जन्म होता है।


"लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई


एक की गलती सब पर आफत बनकर आई।"


चुनाव में लगे किसी भी कर्मचारी या अधिकारी को सर उठाने की फुर्सत नहीं मिलती। सेक्टर मजिस्ट्रेट का काम तो ऐसा था कि सांस भी लेने की फुर्सत नहीं मिल रही थी। एक तरफ 13 बूथों का निरीक्षण करना,हर 2 घंटे पर सभी बूथों पर डाले गए मतों की सूचना लेना ,सूचना प्राप्त करने के लिए कई व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर जिला प्रशासन द्वारा लगातार फोन करना और उन सारी सूचनाओं को अनेक प्रपत्रों में भरना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल कार्य जरूर था। खास करके तब जब आपके पास अनेक बूथों से अनेक प्रकार की समस्याएं आ रही हों और आप बहुत ज्यादा संवेदनशील और संवादशील प्रकृति के हों। नीचे से समस्याएं आती रहीं और ऊपर से सूचनाएं मांगी जाती रहीं।


बहुत ज्यादा परेशानी बढ़ने लगी, इसी बीच में जन्मदिवस की शुभकामनाएं भी आने लगीं। दुख के बीच में सुख की झलकें भी आने लगीं और अपने महत्वपूर्ण होने का महत्वपूर्ण चुनाव दिवस के दिन पता भी चलने लगा। अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बहुत जहरीली होती है, मुंशी प्रेमचंद के इस वाक्य का अर्थ पता चला। एक तरफ से जन्मदिवस की बधाइयां आ रही थीं तो दूसरी तरफ से जल्दी सूचना भेजने का फरमान आ रहा था। बधाइयां पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आता कि उसके पहले समस्याएं सुनकर तनाव उपस्थित हो जाता। एक तरफ किसी ने लिखा कि तुम्हारा अहंकार इतना बढ़ गया है कि जन्मदिवस की शुभकामनाएं भेजने पर जवाब भी नहीं देते तो दूसरी तरफ किसी ने कहा कि तुम्हारा अहंकार इतना बढ़ गया है कि हमारी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते।


समस्या का समाधान तो मिल नहीं रहा था और कुछ रास्ता भी सूझ नहीं रहा था।किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में प्रशासनिक जीवन के अनुभव का गुरु मंत्र मुझे मिला- तुम सिर्फ चुनाव की सूचनाओं पर ध्यान दो,मानव की समस्याओं और भावनाओं पर नहीं। एक शिक्षक के लिए यह बहुत मुश्किल काम था। चुनावी यज्ञ संपन्न कराने में हर विभाग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है किंतु शिक्षकों की भूमिका विशेष महत्वपूर्ण इसलिए होती है कि उनकी सजगता और कर्तव्यपरायणता पर सरकार भी ज्यादा भरोसा करती है। महीनों से शिक्षा विभाग चुनावी कार्यक्रम में अहर्निश अपनी सेवाएं दे रहा है।


मतदान का कार्यक्रम संपन्न हुआ तो 25 नवंबर के बदले आज 26 नवंबर को अपने शुभेच्छुओं द्वारा जन्मदिवस की दी गई शुभकामनाओं पर अपना आभार का मत प्रकट करने का समय मिला है और चुनाव में साथ देने वाले सहयोगियों के प्रति भी धन्यवाद कहने का सुकून भरा पल मिला है। जीवन का कोई भी अनुभव हो,चाहे सुख का या दुख का, वह अनुभव बहुत कुछ सीखा जाता है। शुभकामनाओं का अनुभव सुख दिया, उसके लिए अपने आदरणीय और प्रिय जनों के प्रति आभार प्रकट करता हूं और चुनावी अनुभव ने कुछ वेदना भी दी, उसके लिए भी धन्यवाद देता हूं। बस एक छोटे से प्रश्न के साथ कि चुनावी कार्य में जितनी सजगता और तत्परता दिखाई जाती है, क्या उतनी ही सजगता और तत्परता सरकारी शिक्षा कार्य में दिखाई जाती है???


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹