🙏गुरुनानक जयंती की शुभकामना🙏


संवाद


"सिक्ख धर्म से सीखने की जरूरत"


सोचने और सीखने की प्रवृत्ति पर सबसे ज्यादा जोर देने के कारण सिक्ख धर्म मुझे विशेष प्रिय है। भारतीय संस्कृति के 'शिष्य' शब्द से निकला हुआ यह 'सिक्ख' शब्द आज की सबसे बड़ी जरूरत है। भारत एक धर्मप्राण देश है और धर्म के द्वारा ही इसकी चेतना को ज्यादा प्रभावित किया जा सकता है और परिवर्तित किया जा सकता है।


26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया गया। हमारा संविधान भी सोचने और सीखने की प्रवृत्ति का परिणाम है। बाबा साहेब अंबेडकर जैसे अनेक महापुरुषों ने विविधतापूर्ण भारत के लिए सर्वसमावेशी संविधान बनाने के पहले बहुत सोचा और बहुत देशों के संविधान से बहुत सीखा। फिर भी भारतीय संविधान के प्रति जनसामान्य में उतनी आस्था नहीं है, जितनी धर्मग्रंथो के प्रति। संविधान की शपथ दिलवाई जा रही है और संविधान पार्क बनाया जा रहा है फिर भी भारतीय संविधान जनसामान्य में लोकप्रिय नहीं बन पा रहा है और उसे घरों में आदर के साथ नहीं रखा जा रहा है।


सिखों के धर्मग्रंथ गुरु-ग्रंथ में सिख गुरुओं के अतिरिक्त 30 अन्य हिंदू और मुस्लिम संतों की वाणी को भी स्थान दिया गया है। अर्थात् जहां से भी शुभ विचार मिले उन पर सोचने के बाद सीखने के उद्देश्य से ग्रहण कर लिया गया।


गुरु नानक जयंती की सार्थकता इसी में है कि हम इस विषय पर सोचें कि "क्यूं भारत सोचने से ज्यादा सूचनाओं पर जोर दे रहा है?"


उदाहरण के तौर पर शिक्षा जगत को लीजिए तो सूचनाएं जुटाने और उसे ऊपर तक ऑफलाइन और ऑनलाइन पहुंचाने के काम में पढ़ने-पढ़ाने वाले को इतना व्यस्त कर दिया गया है कि वह समाचारपत्र भी ठीक से नहीं पढ़ पाता,किताब क्या पढ़ेगा और क्या पढ़ाएगा। सूचना का आदेश पढ़ा जाता है और उसको जुटाने और भेजने में दिन-रात लगाया जाता है।


आज का संस्थाप्रधान यह नहीं पूछता और यह नहीं देखता कि क्लास हुआ कि नहीं,पढ़ाने वाले ने पढ़ाया कि नहीं और पढ़ने वाले ने पढ़ा कि नहीं। वह तो सिर्फ यह पूछता और देखता है कि सूचना तैयार हुई या नहीं और संबंधित अधिकारी को भेज दी गई या नहीं। सूचनाओं के कारण कुछ लोगों की नौकरी भले ही बच जाती हैं लेकिन आने वाली पीढ़ी में सोच विकसित करने का प्रयास नहीं करने से शिक्षक की आत्मा मर रही है और आने वाली पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं।


25 नवंबर को हुए चुनाव में सेक्टर मजिस्ट्रेट के रूप में भी मैंने पाया कि सबसे ज्यादा जोर सूचनाओं के एकत्रीकरण पर हैं जबकि सेक्टर मजिस्ट्रेट का मुख्य कर्तव्य और दायित्व यह था कि सेक्टर में संविधान के अनुसार चुनाव करवाए और मतदाता को अपना मतदान करने के लिए तथा नागरिक को अपना नागरिक धर्म निभाने के लिए प्रेरित करे। एक तरफ मैं अपने कर्तव्य और दायित्व निर्वहन के लिए सोचने में मशगूल था तो दूसरी तरफ ऊपर से सिर्फ सूचना संग्रहित करने और भेजने का इतना दबाव था कि मैं विशेष चिंता में पड़ गया।


चिंता से मैं जितना अंधकार में गिरता गया उतना ही ज्यादा मेरी चेतना ने चिंतन कर प्रकाश की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया।


सूचनाओं का संसार आज सोचने के संसार पर हावी है। सूचनाएं तो कोई भी जुटा सकता है लेकिन हर कोई सोच नहीं सकता। इसी कारण से भारतीय संस्कृति में सोचने वाला 'गुरु' को सबसे ऊपर रखा गया।


भारत की पावन वसुधा पर गुरु पद पूजित और महान


वेदों में भी किया गया इस पावन पद का बड़ा बखान।


मतदान के प्रतिशत बढ़ने की सूचना से हम सोचते हैं कि लोकतंत्र मजबूत हो रहा है लेकिन गहराई से सोचने पर पता चलता है कि बिना सोच विकसित किए संख्या को बढ़ाना लोकतंत्र के लिए भारी खतरा है। लोगों से बातचीत करने पर मुझे पता चला कि पढ़ने-लिखने और सोचने वाले लोग वोट की राजनीति से निराश है। उनकी सोच थी कि-


"न राज बदलेगा और न रिवाज बदलेगा


सिर्फ चेहरा बदलेगा और आवाज बदलेगा।"


उनका अनुभव था कि सब एक जैसे हैं। सोचने पर मुझे उनकी बात में सत्यता दिखी लेकिन मुझे ऐसी सूचना नहीं भेजनी थी। अपनी तरफ से मैंने उनको मतदान केंद्र पर आने के लिए सोचने हेतु प्रेरित किया।


सिख धर्म से मुझे यही सीखने को मिला कि कलम भी उठाओ और धर्म पर संकट हो तो तलवार भी उठाओ। राष्ट्रकवि दिनकर ने तो पूछा था कि-


'दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार


मन में ऊंचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार'


मेरी दृष्टि में भारत को दोनों चाहिए। कलम इसलिए कि सोच पैदा हो सके और तलवार इसलिए कि आततायियों से धर्म की रक्षा हो सके‌। अतः ऐसे धर्म को पैदा करने वाले गुरु नानक के चरणों में सर झुकाता हूं।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो सर्वजीत दुबे🙏🌹