'खेल और खेल-भावना'
भारतीय संस्कृति कहती हैं कि जीवन भी एक खेल है।खेलभावना यही सिखाती है कि हार और जीत दोनों में समभाव से रहो।
हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर-महाविद्यालयीय खेल उद्घाटन के अवसर पर जीजीटीयू के माननीय कुलपति जी ने खेलों को विशेष प्रोत्साहन देने हेतु अपना संकल्प व्यक्त किया। इस बात को उन्होंने जल्दी पहचान लिया कि यह एकलव्य की धरती है और यहां खेल की विशेष प्रतिभाएं हैं। अल्प संसाधनों के बावजूद विशेष संकल्प के कारण ही खेलशिक्षक (पीटीआई) नहीं होने के बावजूद इतने खेलों में इतनी प्रतियोगिताओं का आयोजन विषयविशेषज्ञ प्रोफेसरों के विशेष सहयोग से हो पा रहा है। यदि खेल प्रशिक्षक उपलब्ध हो जाएं और ट्रेनिंग की विशेष सुविधाएं मिल जाएं तो यहां की प्रतिभाएं वागड़ को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिला सकती हैं।
जब तक संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं तब तक एकलव्य के समान गुरु की मूर्ति बनाकर अपनी साधना जारी रखनी होगी। कई विषयों में विषय को पढ़ाने वाले जब शिक्षक ही उपलब्ध नहीं हैं तो खेल को निखारनेवाले प्रशिक्षक जल्द से उपलब्ध हो जाएंगे, यह जरूर से ज्यादा आशावाली बात होगी। प्रशिक्षण और संसाधन की कमी के बावजूद भी प्रतिभा खिल जाती है-
"कुसुममात्र खिलते नहीं राजाओं के उपवन में
अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुंज कानन में
कौन जाने रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल
गुदड़ी में रखती चुन चुन कर बड़े कीमती लाल।"
खेल की साधना कड़ी धूप में तपना सिखाती है, अंदर से अपने आपको कूल रखते हुए। जीत के अहंकार तथा हार के अंधकार से स्वयं को बचाने की कला खेल को खेलभावना से खेलने से आती है। परिणाम के बाद एक को जीत मिलता है और दूसरे को हार। जीतने वाले का बड़ा फोटो अखबारों में छापा जाता है। हारने वाला एकांत में चला जाता है। किंतु असली खिलाड़ी ट्रॉफी जीतने से ज्यादा दिल जीतने में भरोसा करता है।
कहानी कहती है कि कड़ी धूप में एक जगह हीरा और शीशा रखा हुआ था।दोनों में अंतर करने वाले को बहुत बड़े ईनाम की घोषणा की गई थी। सैकड़ों में से सिर्फ एक खिलाड़ी ने हीरा और शीशा में अंतर कर हीरा को पहचान लिया।उससे पूछा गया कि रहस्य क्या है?-तो उसने कहा कि धूप में शीशा तो गर्म हो जाता है किंतु हीरा गर्म नहीं होता। यह बात खेल साधना से मुझे सीखने को मिला।
आशा है कि जीत के उन्माद या हार के अवसाद मेँ भी खिलाड़ी अपने आप को शीतल(cool)बनाए रखेंगे और स्वयं को हीरा साबित करेंगे।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो. सर्वजीत दुबे🙏🌹