GGTU में उपराष्ट्रपति जी के साथ संवाद
"संवाद की महत्ता"
विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यों में से एक है-'वाद विवाद को संवाद में तब्दील करके जीवनोपयोगी विचार देना।' गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय,बांसवाड़ा माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी के साथ संवाद का आयोजन कर हमें विचार ग्रहण करने का एक अमूल्य अवसर प्रदान कर रहा है। माननीय कुलपति प्रो.केशव सिंह ठाकुर जी के प्रयास से आयोजित इस संवाद को सफल और सुफल बनाना शिक्षा जगत का नैतिक दायित्व भी है और कर्त्तव्य भी; क्योंकि
'अमंत्रं अक्षरं नास्ति, अमूलं न च औषधम्
अयोग्य:पुरुष:नास्ति,योजकस्तत्र दुर्लभम्।'
भाव है कि इस जगत में योजक (Planner) दुर्लभ होता है जो उत्कृष्ट कोटि के संवाद को सुलभ करा दे।
भारतीय संस्कृति में संवाद का विशेष महत्व रहा है। 'अथातो ब्रह्म जिज्ञासा', 'अथातो भक्ति जिज्ञासा'.... बताते हैं कि जिज्ञासा अर्थात् जानने की इच्छा के कारण हमारे महान ग्रंथों का जन्म हुआ जो कि संवाद का मूल आधार है।
'शिष्य-गुरु संवाद' केंद्र के माध्यम से 20 वर्षों से विद्यार्थियों के साथ सतत संवाद के बाद मुझे बांसवाड़ा के शिक्षा जगत की मुख्य चुनौतियों का कुछ ज्ञान हुआ। शैक्षिक-दृष्टिकोण से पिछड़ा समझे जाने वाले बांसवाड़ा की समस्याओं के समाधान के लिए शैक्षिक-दृष्टिकोण से अग्रणी झुंझुनू जिले की एक विशेष प्रतिभा शहर में आ रही हैं तो यह परम सौभाग्य है।
बिट्स पिलानी में पढ़ रहे अपने बच्चे के पास जब जाता था तो सीकर-झुंझुनू जिला अन्य जिलों से कुछ अलग नजर आता था। सुबह-सुबह रास्ते पर दौड़ते हुए नौजवान, सेठ और शहीदों की आदमकद मूर्तियां और सिर्फ पढ़ने-पढ़ानेवालों की होर्डिंग्स देखकर मैं भावविभोर हो जाता था। यह क्षेत्र कुछ विशेष संदेश जीवन का दे रहा था जो खासकर बांसवाड़ा जैसे संभाग के लिए विशेष काम का हो सकता है। धरती वहां की बहुत उर्वर नहीं दिखी लेकिन ज्ञान के प्रति और देश सेवा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण मानवीय संसाधन के दृष्टिकोण से उतनी हरीभरी धरती मुझे देखने को अभी बहुत कम मिली।
वहां के बारे में मैंने जानकारियां जुटाई तो मुझे पता चला कि यहां की धरती जो प्रतिभारूपी हीरे-मोती उगल रही हैं, उसके पीछे मुख्य कारण है कि समाज के लोग शिक्षा को बहुत महत्व देते हैं। शिक्षा के विकास के लिए सेठ खुलकर दान देते हैं और नौजवान अपनी शक्ति और समय को शिक्षा प्राप्त करने में और देश-सेवा में लगा देते हैं।
मौलिक पुस्तकों की संस्कृति और स्वाध्याय की प्रवृत्ति वाले झुंझुनू जिले से यदि बांसवाड़ा ये गुण ग्रहण कर सके तो यहां आमूलचूल परिवर्तन हो सकता है। शिक्षकों की भारी कमी के साथ, पासबुक की विकृति और ट्यूशन की प्रवृत्ति के कारण हमारे यहां के विद्यार्थी बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में उचित स्थान नहीं बना पा रहे हैं।
बांसवाड़ा की धरती बहुत हरीभरी और उर्वर हैं। इसके मस्तिष्क रूपी धरती में बोने के लिए कुछ अच्छे विचार-बीज यदि जीवंत आदर्श से साक्षात् मिल जाए तो शिक्षा के क्षेत्र में भी हम बड़ा मुकाम हासिल कर सकते हैं।
'मकतबे-इश्क का उसूल है निराला
उसको छुट्टी न मिली जिसको सबक याद हुआ।'
इसका अर्थ विशेष रूप से तब पता चला जब देखा कि सदा पढ़ाई में टॉप रहने वाले हमारे उपराष्ट्रपति शिक्षा संस्थानों में जा-जाकर संवाद करते हैं और उनको अपने जीवन के अनुभव बांटते हैं।
जरूरत है ऐसे लोगों के साक्षात् दर्शन की,उनको ध्यानपूर्वक सुनने की और चिंतन-मनन कर उसे जीवन में उतारने की।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे
संवाद की सफलता के शुभकामनाओं के साथ🙏🌹