संवाद


'मानवाधिकार कहां है सुरक्षित?'


10 दिसंबर को 'विश्व मानवाधिकार दिवस' के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने इसराइल और हमास युद्ध में जारी भारी नरसंहार पर दोनों देशों को युद्ध अपराधी बताया है। शांति और सुलह के सारे प्रयासों के बावजूद युद्ध जारी है।ऐसे में यह चिंता और चिंतन का विषय है - 'मानवाधिकार कहां है सुरक्षित?'


मानवाधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर द्वारा नागरिकों को दिए गए ऐसे अधिकार हैं, जो उन्हें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के प्रमुख चिंतकों और सरकारों के प्रतिनिधियों को यह अनुभव हुआ कि आधुनिक राज्यों की शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई है, जिसके फलस्वरुप आम नागरिकों के दमन और संहार को रोके जाने के लिए मानवाधिकारों की स्पष्ट घोषणा की जानी चाहिए।


10 दिसंबर,1948 को यूएनओ की महासभा में मानवाधिकारों की घोषणा की पहल पूंजीवादी देश अमेरिका ने की थी और उस सभा में सोवियत रूस सहित आठ समाजवादी देश अनुपस्थित थे।


हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराने वाला अमेरिका विश्व भर में मानवाधिकारों के संरक्षण की वकालत करता है। लेकिन आज भी मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा ज्यों का त्यों बना हुआ है।


इजरायल और हमास युद्ध में दोनों पक्षों द्वारा जिस प्रकार से आम नागरिकों ,रिहायशी इलाकों, शरणार्थी शिविरों और अस्पतालों को निशाना बनाया गया है। रूस यूक्रेन युद्ध में भी आम जन ही सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं‌‌। इसे देखकर लगता है कि मानवाधिकारों के प्रति विश्व की लगभग सभी सरकारों की कथनी और करनी में भारी अंतर रहा है।


नीतियां कितनी भी अच्छी बना दी जाए किंतु उसकी क्रियान्विति तो नीयत (intention) पर निर्भर करती है। नीयत साफ और पवित्र हो तो एक का कर्तव्य दूसरे का अधिकार बन जाता है।सत्ता के विरुद्ध मानवाधिकार का संघर्ष चलता है किंतु विडंबना यह है कि सत्ता से ही इसको संरक्षित भी किया जाना है।


सत्ता एक हाथ से जो अधिकार देती है,बहुत चालाकी से दूसरे हाथ से छीन लेती है। इसीलिए पश्चिमी विचारक लॉर्ड एक्टन को कहना पड़ा कि सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट कर देती है। किंतु भारतीय संस्कृति में राम के हाथ में सत्ता आई तो वे भ्रष्ट नहीं हुए क्योंकि राम का जीवन कर्तव्य-परायण था।


जिन सत्ताओं को अपने नागरिकों को अधिकार देने होते हैं, वे स्वयं के कर्तव्य पर ज्यादा जोर देती हैं। पिता का कर्तव्य पुत्र के अधिकार को सुनिश्चित कर देता है और पुत्र का कर्तव्य पिता के अधिकार को।


आज समस्या यह है कि हर पक्ष सिर्फ अधिकार की बात कर रहा है। अतः मानवाधिकार की बातें तो खूब हो रही हैं किंतु विश्व के हर कोने में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹