संवाद


"शिक्षा वही जो गोविंद गुरु की तरह जगाए"


20 दिसंबर श्री गोविंद गिरी जी का जन्मदिवस है,जिन्होंने सत्य और धर्म की राह पर चलने वाली शिक्षा देकर भील समाज को आंदोलित किया।इनके नाम पर बांसवाड़ा संभाग के सबसे बड़े महाविद्यालय और क्षेत्र के एकमात्र विश्वविद्यालय का नामकरण किया गया है। कल जब 'श्री गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय' के एक छात्र का नाम व्यसन और हत्या से जुड़ा तो दिलोदिमाग में एक ही प्रश्न गूंजने लगा कि जिस महापुरुष के गुण से प्रेरित होकर उनके नाम पर हम महाविद्यालय खोलते हैं ,उस महापुरुष के सद्गुण इस पीढ़ी में क्यों नहीं उतरते?जिन नैतिक ऊंचाइयों के लिए श्री गोविंद गुरु ने अपना जीवन खपाया, वे शैक्षिक ऊंचाइयों से अधिकाधिक लोगों के जीवन का सहज आचरण बन सकतीं हैं। संप सभा और भगत आंदोलन के द्वारा उन्होंने समाज को एकजुट कर जगाने का प्रयास किया ताकि समाज अंधविश्वासों और व्यसनों से मुक्त हो सके। उनका जीवन जागरण का बहुत बड़ा प्रमाण था।


परंपरागत साधनों से उन्होंने जितने लोगों को जगाया और उच्चतर उद्देश्यों के लिए बलिदान देने को प्रेरित किया, आधुनिकतम साधनों से भी उतने लोगों को हम नहीं जगा पा रहे हैं और उच्चतर उद्देश्यों के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं, आखिर क्यूं?


क्योंकि तथाकथित आज की शिक्षा हृदय को नहीं छू पा रही है, सिर्फ मस्तिष्क को थोड़ा-बहुत स्पर्श कर पा रही है। शिक्षकों के भारी अभाव और उपलब्ध शिक्षकों को गैरशैक्षिक कार्यों में लगा देने के कारण बांसवाड़ा संभाग के शिक्षा की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि विद्यार्थियों के द्वारा लिखे आवेदनपत्र में कई गलतियां पाई जाती हैं। पासबुक से पढ़ने वाली पीढ़ी पास होने लायक मस्तिष्क भी नहीं बना पा रही हैं,फिर भी उन्हें डिग्री मिल जा रही हैं तो सवाल उठता है कि वे गोविंद गुरु जैसा प्रेमपूर्ण-हृदय और पवित्र-जीवन कैसे पाएं?


मेरी नजर में सिर्फ शब्दों की शिक्षा से काम नहीं चलेगा। विश्वविद्यालय जिन्हें गोल्डमेडल (Gold-medal) दे रहे हैं, उनका जीवन कितना गोल्डन(golden) बन रहा हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। पहले विश्वविद्यालय के गोल्डमेडलिस्ट को विश्वविद्यालय दूसरे दिन से अध्यापन कार्य के लिए अपने यहां नियुक्त कर लिया करते थे ; क्योंकि कोई भी अपने श्रेष्ठ बीज को दूसरे के हाथों में कैसे जाने दे सकता है? आज गोल्डमेडलिस्ट और पीएचडी डिग्रीधारी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।


ऐसे में जरूरत है उस शिक्षा की जिसे पाकर श्री गोविंद गुरु स्वयं जागे और लोगों को जगाया भी। उनके पास ऐसा मस्तिष्क था, जिससे वे अपने समाज की कमजोरियों को और शासकों की चालाकियों को पहचान गए ; साथ ही उनके पास ऐसा हृदय भी था,जिससे व्यसन और शोषण से पीड़ित अपने लोगों को मुक्त करने के लिए प्रेम से एकजुट कर सके। और भीलों को 'राजस्थान का जालियांवाला बाग' कहे जाने वाले मानगढ़ धाम की शहादत के लिए तैयार कर सके।


श्री गोविंद गुरु जैसा चिंतनशील-मस्तिष्क और भावपूर्ण-हृदय साधना से प्राप्त होता है। अपने जीवन को उन्होंने साधा और दूसरों को भी साधना के लिए प्रेरित किया‌। उनके जीवन चरित्र को और शिक्षा को पाठ्यक्रम में तो शामिल किया ही जाना चाहिए,उससे भी ज्यादा जीवन में उतारा जाना चाहिए,जिससे भगत और साधक तैयार हो सकें।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹


🙏श्री गोविंद गुरु को शत-शत नमन🙏