🙏गीता जयंती की शुभकामना🙏
"कृष्णसंग हो तो विषाद भी योग"
कुंतीपुत्र अर्जुन की तरह आज का अर्जुन भी विषादग्रस्त है किंतु उसके साथ कृष्ण नहीं हैं। अतः नई गीता जन्म नहीं लेती और आज का अर्जुन विषाद में डूबकर आत्महत्या का कदम उठा लेता है। कृष्ण-चेतना के उपस्थित होने से कितना बड़ा अंतर पड़ जाता है कि आत्महत्या का क्षण आत्मरूपांतरण के क्षण में तब्दील हो जाता है।
जीवन बिना तनाव के नहीं हो सकता, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार घर्षण के बिना गति संभव नहीं। तनाव का मतलब है कि पता नहीं चल रहा कि क्या करें और क्या नहीं करें? इसे द्वंद्व कहते हैं,जो जीवन का स्वभाव है। इस द्वंद्व से बाहर निकालने में सिर्फ कृष्ण ही समर्थ हैं। क्योंकि अर्जुन अपने दिल की बात खोलकर उनके पास रख सकता है और वे सुनने के लिए भी तैयार हैं ; साथ ही वे अर्जुन की चेतना के तल से ऊपर के तल पर खड़े हैं।
आज के अर्जुनों का दुर्भाग्य यह है कि अपने से ऊपरी चेतना वाले व्यक्ति के साथ उनकी गहरी मित्रता नहीं है,जिनके पास वे अपनी समस्या बता सकें ताकि समाधान मिल सके।
संसद में घुसकर अपनी बात उठाने का तरीका अपनाने वालों के पास मुद्दा तो सही था किंतु मार्ग सही नहीं था। काश! उनके संपर्क में कोई कृष्ण-चेतना होती तो ऐसा मार्ग बता सकती थी कि मुद्दा देश के सामने भी आ जाता और उनकी जिंदगी भी बर्बाद नहीं होती। बेरोजगारी का मुद्दा उठाने के लिए अपने ही देश की संसद में सुरक्षा में सेंध लगाकर गैरकानूनी तरीके से घुसना जरूरी नहीं है बल्कि 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' की तर्ज पर 'इंडिया अगेंस्ट अनइंप्लॉयमेंट' का आंदोलन चलाना चाहिए था। लेकिन इसके लिए साहस के साथ धैर्य और विवेकयुक्त कृष्ण- चेतना का साथ चाहिए।
अपने जीवन का एक विशेष अनुभव आज के अर्जुनों के लिए बताना चाहता हूं, जो बहुत काम का हो सकता है। दस साल क्रिकेट की साधना करने के बाद एक प्रदर्शनी मैच खेलने के कारण मुझ पर क्रिकेट संघ द्वारा बैन लगा दिया गया। मेरे आंख के आगे अंधेरा छा गया और दस दिनों तक सूरज दिखाई नहीं दिया। क्रिकेट का रास्ता बंद होने से मुझे लगा कि मेरी जिंदगी का रास्ता बंद हो गया। सौभाग्य यही था कि मैं रामकृष्ण मिशन आश्रम जाया करता था। वहां के एक स्वामी जी ने मेरी सारी बातें सुनकर प्रेम से मुझे समझाया कि क्रिकेट बैन से जिंदगी बंद नहीं हो जाती। संघर्ष जारी रखो,बस पढ़ाई के रास्ते पर आ जाओ। उस मुलाकात की एक किरण ने मुझे अंधेरे में भी रास्ता दिखा दिया और आज प्रोफेसर बना दिया।
गीता जयंती के दिन आज उन कृष्णचेतनाओं की याद आई। अनेक कमियों के बावजूद एक खूबी मेरे में यह है कि मैं शुरु से ही पढ़नेवाले और स्वयं से ज्यादा मेधावाले की संगति में रहना पसंद किया करता हूं। वे सब कृष्णचेतनाएं थीं,जिनके साथ रहने से अंधेरे में भी आशा की कोई किरण दिख जाती थी।
आज की कोचिंग प्रधान व्यावसायिक-शिक्षा सिर्फ सब्जेक्ट की चिंता लेती है, व्यक्ति की नहीं। मां-बाप भी अपने बच्चों पर जाने-अनजाने अपनी महत्वकांक्षा थोप देते हैं। ऐसे में मन की बात सुननेवाला, समझनेवाला और राह दिखाने वाला किसी कृष्णचेतना से संपर्क स्थापित करने की जरूरत है,जिसके प्रसाद से आपका विषाद (depression) भी योग (connection with God)बन जाए।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे 🙏🌹