संवाद


"अटल मूल्यों की राजनीति"


आज भी अटल जी की सर्वस्वीकार्यता और लोकप्रियता को देखकर आश्चर्य होता है। प्रतियोगिता की राजनीति आज उस चरम पर पहुंच गई है कि हास्यव्यंग्य और प्रेम की कोई गुंजाइश ही नहीं बची। लेकिन किसी के हृदय में प्रेम हो तो बाहर की राजनीति के कीचड़ में कमल खिल जाता है।


अंदाज़े बयां उनका ऐसा था कि उनका भाषण राजनीतिक कम हार्दिक ज्यादा लगता था। किशोरावस्था में पटना के गांधी मैदान में जब पहली बार उनको सुना तो मंत्रमुग्ध हो गया। वे बोल रहे थे --"लोकसभा अध्यक्ष जी ने कहा कि जितने भी बिहारी-सांसद हों ,खड़े हो जाएं। मैं भी खड़ा हो गया। अध्यक्ष जी ने कहा कि अटल जी आप तो बैठ जाएं,आप तो बिहार से नहीं आते। मैंने कहा- और सब तो केवल बिहारी हैं, मैं तो अटल बिहारी हूं।"


आज की राजनीति में गंभीरता ज्यादा हो गई है, जिसके कारण कटुता बढ़ती जा रही है।हास्यभाव कम होने का यह दुष्परिणाम है। दूसरे अवसर पर अटल जी को सुन रहा था तो वे बोल रहे थे कि कहीं भी दंगा हो या कुछ भी हो, विपक्षी आरोप भाजपा पर लगा देते हैं। अभी लालू जी के घर में बच्चे का जन्म हुआ है, कहीं ऐसा न हो कि आरोप भाजपा पर लग जाए।' उनकी इस वाक्पटुता पर इतनी तालियां बजीं कि लगा कि कान बधिर हो जाएंगे। आज तो ऐसी बातों पर कई वाद दायर हो जाएं।


जब नेहरू जी ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री बताया और जब कांग्रेस सरकार द्वारा भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए यूएनओ में अटल जी को भेजा गया तो इसमें दूसरे की उदारता ही एक पक्ष नहीं थी, अटल जी की मधुरता के कारण सर्वस्वीकार्यता भी एक पक्ष था।


सौम्य और शालीन व्यक्तित्व के धनी इस व्यक्ति ने जब एक वोट से अपनी सरकार खोई तो पूरे भारत की अंतरात्मा रोई।


कैसे कुछ नेता एक पार्टी विशेष का होकर भी सबके हो जाते हैं; जाति,धर्म,क्षेत्र की दीवारें लांघकर हृदयों में समा जाते हैं?-इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मैंने आंखें ऊपर उठाई तो आकाशवाणी हुई कि


"अटल मूल्यों की जो राजनीति करेगा,


जन-जन उस पर अटल प्रीति धरेगा।"


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो सर्वजीत दुबे🙏🌹


Happy Christmas day


सुशासन दिवस की शुभकामनाएं