🙏नववर्ष 2024 मंगलमय हो🙏


'जात हमारी ब्रह्म है, मात-पिता है राम।


गिरह हमारा सुन्न में, अनहद में बिसराम।।’


"नूतन वर्ष में श्री राम मंदिर"


नूतन वर्ष में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। ऐसे में श्री रामदेव नाम के एक सैनिक की याद आई जो सदा राम नाम का जाप किया करते थे।इसके प्रभाव से उनकी शांति ऐसी थी जैसे किसी संत की। अनेक युद्धों में भाग लेने के बावजूद उनके हृदय में युद्ध नहीं, प्रेम था। हर परिस्थिति में उनके समभाव को देखकर गांववाले कहा करते थे कि बिना राम कृपा के किसी सैनिक को संत वाली शांति सुलभ नहीं होती। पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद वे रोज सुबह रामचरितमानस का पाठ किया करते थे। पूछने पर वे टूटे-फूटे शब्दों में इतना ही राज खोल पाते थे कि "असली बात तो हृदय में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने की है।मेरे श्री राम दर्पण की भांति हैं।युद्ध सामने हो तो सैनिक बन जाते हैं,नहीं तो संत के रूप में शांति के साथ विराजते हैं। हम लोग जैसे साधारण जन का मन कैमरे के समान होता है जिस पर कोई चित्र आ जाए तो हटता ही नहीं।हर दिन ही नहीं बल्कि हर पल राम नए हैं क्योंकि वे सच्चिदानंद हैं।"


नूतन वर्ष के अभिनंदन मे नूतन मन की अभीप्सा जग जाती है। परमात्मा तो नित नूतन है और नित नूतन उसका सृजन है। लेकिन हमारा मन पुराने के बोझ से इतना दब गया है कि नित नूतन चेतन राम को भी हम परंपरागत ढंग से सिर्फ दशरथ पुत्र राम के रूप में ही जानते हैं और अयोध्या में ही उनका जन्म मानते हैं ; जबकि दशरथ पुत्र राम के पहले भी राम सांसों में बसे हुए थे। बाल्या भील तो राम प्रभाव से वाल्मीकि बन गए और सारी कथा रामायण में दशरथ पुत्र राम की घटना घटने के पहले ही लिख दिए। कण-कण में बसे वे राम आदिकाल से मन-मन में बसे हुए हैं तभी तो हमारा अभिवादन भी राम-राम कहकर होता है-


"अगुन अरुप अलख अज जोई


भगत प्रेम बस सगुन सो होई।"


वे राम नए-नए रूपों में नए-नए ढंग से हर क्षण नए होकर प्रकट हो रहे हैं। यदि राम प्रतिपल नए होने की कला नहीं जानते तो सुबह के राज्याभिषेक की खबर को मन में बिठाए रहते और शाम के वनगमन की खबर से विचलित हो जाते-


'प्रसन्नतां यां न गताभिषेकतस्तथा न मम्लौ वनवासदुखत:'


बच्चा धरती पर आता है तो हर चीज उसके लिए नई होती हैं और हर चीज पर वह इतना आनंदित होता है कि लगता है मानों कुबेर का खजाना उसे मिल गया हो। राह पर पड़े पत्थरों से भी वह इतना पुलकित हो जाता है कि बड़े लोग हीरों से भी नहीं हो पाते। क्योंकि उसके हृदय के नएपन का भाव पाषाण को भी भगवान बना देता है-


'सैकड़ों पाषाण में से तू भी एक पाषाण होता


मैं न होती भावना फिर तू कहां भगवान होता।'


यह नूतन हृदय,यह नूतन भाव,यह नूतन उमंग,यह नूतन लोचन जरूरी है नूतन वर्ष अभिनंदन के लिए। वह नूतन लोचन ही कवि को नए-नए गीत उस नित नूतन परमात्मा के बारे में रचने को विवश करता है-


"कवि ने गीत लिखे नए-नए बार-बार


पर उसी एक विषय को देता रहा विस्तार


जिसे कभी पूरा पकड़ पाया नहीं


जो कभी किसी गीत में समाया नहीं


किसी एक गीत में वह अट गया दिखता


तो फिर कवि दूसरा गीत ही क्यूं लिखता?


अरबों मनुष्य हो गए किंतु एक के अंगूठे की छाप दूसरे से नहीं मिलती, एक ही वृक्ष का एक पत्ता दूसरे पत्ते से अलग होता है। हर दिन ही नहीं हर पल नया है, क्योंकि कण-कण में वही परम-चैतन्य-परमात्मा समाया है। किंतु नए वर्ष के नए दिन को नए ढंग से मनाकर हम स्वयं को नया कर लेते हैं। सिर्फ एक बार स्वयं को नया कर लेने से जब इतना आनंद होता है तो जो हर पल अपने आप को नया करते रहे, उसके आनंद की क्या बात? हर पल स्वयं को नया करने की कला से पूर्ण राम की ऐसी महिमा है कि हर पल उसमें योगी रमन करते हैं-'रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः'--


"एक राम घट-घट में बोले,


दूजो राम दशरथ घर डोले।


तीसर राम का सकल पसारा,


ब्रह्म राम है सबसे न्यारा।।"


नूतन वर्ष में हर हृदय में उस राम की प्राण-प्रतिष्ठा हो; इसी शुभकामना के साथ।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹