🙏विवेकानंद जयंती की शुभकामना🙏


"विवेक जहां आनंद वहां"


परिवार ने बच्चे का नाम नरेंद्र रखा ताकि सम्राट के समान शानो-शौकत का जीवन जीए किंतु वह संन्यासी बना ताकि अंधकार से घिरी मानवता को प्रकाश का मार्ग दिखा सके। यही भारतीय संस्कृति की दुर्लभ विशेषता है-


बादशाहों का फकीरों से बड़ा रुतबा न था


उस समय धर्म और सियासत में कोई रिश्ता न था।


शख्स वह मामूली लगता था मगर ऐसा न था


सारी दुनिया जेब में थी और हाथ में पैसा न था।।


लाखों सम्राट आए और गए किंतु यह युवा संन्यासी विवेकानंद स्थाई प्रकाश स्तंभ के रूप में करोड़ों दिलों में बस गए। एक तरफ शांतिवादी गांधी कहते हैं कि विवेकानंद को पढ़ने के बाद मेरी देशभक्ति सौ गुनी प्रबल हो गई तो दूसरी तरफ क्रांतिवादी नेता जी सुभाष चंद्र बोस कहते हैं कि यदि स्वामी जी जिंदा होते तो मैं सारा जीवन उनके चरणों में समर्पित कर देता। गुरुदेव टैगोर कहते थे कि यदि भारत को समझना चाहते हो तो विवेकानंद को पढ़ो।


बेरोजगारी,व्यसन और महामारी के मकड़जाल में फंसी युवा पीढ़ी को मैं भी अपने निजी अनुभव के आधार पर यह कहना चाहूंगा कि सबसे सस्ता किंतु सर्वश्रेष्ठ साहित्य रामकृष्ण मिशन आश्रम आज भी उपलब्ध करवाता है जिसे पढ़कर लगेगा कि आगे बढ़ने के लिए जो भी शक्ति चाहिए होती हैं,वह स्वयं के भीतर से आती हैं।


पटना के नाला रोड में रामकृष्ण मिशन आश्रम आज भी है। विद्यार्थी जीवन में वहां नियमित जाया करता था तो पवित्रता और सेवा की जीती जागती मूर्तियों को बीच बाजार में बड़े शांति के साथ साधना में लीन होते देखता था तो आश्चर्यचकित हो जाता था। विवेकानंद की ₹2 और ₹5 की पुस्तकें लाकर पढ़ता था तो घर और मन मंदिर बन जाता था और इतनी शक्ति का संचार होता था कि लगता था कि मैं भी सब कुछ कर सकता हूं।


बी.ए.के दौरान जीवन का सबसे निराशा भरा क्षण आया।10 वर्षों से क्रिकेट की साधना में रत था और एक ऊंचाई प्राप्त करने के करीब था कि पटना क्रिकेट में मुझ पर बैन लग गया।


काफी हताश और निराश मैं रामकृष्ण मिशन आश्रम में बैठा हुआ था। संन्यासी सोमेश्वरानंद जी ने इतना ज्यादा टूट जाने का कारण पूछा। मैंने बताया कि यहां की क्रिकेट व्यवस्था में मेरे साथ अन्याय हुआ है-


"बरसों की कठिन साधना के साथ प्राण नहीं क्यों लेते हैं?


अब किस सुख के लिए मुझे धरती पर जीने देते हैं??"


उन्होंने सारी बातें ध्यान से सुनी और कहा कि इस जगत में कितनी भी अव्यवस्था दिखती हो किंतु परमात्मा के अस्तित्व में व्यवस्था है। तुम अपना विवेक जगाकर दूसरा रास्ता तलाशो; परमात्मा तुम्हारे बहाए गए पसीने की एक-एक बूंद का फल अवश्य देगा। स्वामी जी का यही संदेश है कि पहले अपने आप में विश्वास रखो और फिर परमात्मा में विश्वास रखो।


क्रिकेट में दौड़ने वाला व्यक्ति यदि पढ़ने वालों के बीच में अच्छी जगह पर पहुंचा है और आज प्रोफेसर बन गया है तो उसकी पृष्ठभूमि में वे किताबें हैं जो रास्ता दिखाती थीं, सत्संगति हैं जो कभी भटकने नहीं देती थी और आत्मा तथा परमात्मा पर विश्वास है जो अपने लक्ष्य की ओर निरंतर लगाए रहती थी।


पढ़ाई में टॉपर नरेंद्रनाथ दत्त को भी नौकरी नहीं मिल रही थी और पिता के मरने के बाद घर में खाने का अभाव तक हो गया था। बगल में देहजीवियों का मोहल्ला था किंतु उनके विवेक ने रामकृष्ण को खोज लिया जिन्होंने उन्हें आनंद से भर दिया। उसी विवेक की आज ज़रूरत है,फिर आनंद सर्वत्र उपलब्ध हो जाएगा। -


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे


विवेक-आनंद से जगत पूर्ण हो🙏🌹