🙏गुरु गोविंद सिंह जयंती की शुभकामना🙏
'चिड़ियों को बाज से लड़ानेवाले'
महापुरुष चाहे किसी भी धर्म के क्यूं न हों, वे सद्गुणों के पुंज होते हैं। तभी तो उनकी प्रेरणा प्राप्त कर अन्य आत्माएं भी जाग उठती हैं। इन महापुरुषों के जन्मदिवस पर सार्वजनिक अवकाश की जो घोषणा होती हैं, उनका सदुपयोग शिक्षा जगत को उन महापुरुषों के जीवन को पढ़ने और पढ़ाने में करना चाहिए ताकि नई पीढ़ी जान सके कि भारत भूमि पर कैसी-कैसी दिव्य आत्माओं ने जन्म लिया और कितनी प्रतिकूल परिस्थितियों में वे कुंदन की तरह आग से गुजरकर और निखर गए।
गुरु गोविंद सिंह के नाम में पहला शब्द गुरु ज्ञान और शांति का प्रतीक है तो अंतिम शब्द सिंह पराक्रम और क्रांति का प्रतीक है। पौराणिक पात्र परशुराम में जो तप और खड़्ग का अद्भुत मिश्रण बताया जाता है,वही इस महापुरुष में देखने को मिलता है-
तप से मनुज दिव्य बनता है,षड्विकार से लड़ता है।
तन की समर भूमि में लेकिन काम खड़ग ही करता है।
उड़ता पंजाब फिल्म ने जो पंजाब की छवि बनाई थी;उसके उलट गोविंद सिंह जी ने पढ़ता पंजाब और लड़ता पंजाब के बीज बोए थे। अपने गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि जिंदा कॉम पढ़े भी और लड़े भी।
राष्ट्रकवि दिनकर पूछते हैं कि -
दो में से क्या तुम्हें चाहिए- कलम या कि तलवार?
मन में ऊंचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार??
संसार में ऐसा दुर्लभ संयोग मिलता है कि व्यक्तित्व में कलम भी उतनी ही जोरदार हो और तलवार भी उतनी ही धारदार हो।
पटना साहिब में जन्मे सिखों के दसवें गुरु ने अन्याय के विरुद्ध कलम भी उठाया और तलवार भी उठाई।एक तरफ कलम चलाने के लिए कवि का धड़कता हृदय उन्होंने पाया था तो दूसरी तरफ तलवार उठाने के लिए लोहे से भुजदंड भी।
खालसा पंथ की स्थापना कर उन्होंने मुट्ठी भर सेना लेकर विशाल फौजों को शिकस्त दी। उनका संकल्प था कि-
'चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं
सवा लाख से एक भिड़ाऊं
तभी गोविंद सिंह नाम कहांऊं।
गुरु की परंपरा को खत्म कर गुरु ग्रंथ को सर्वेसर्वा बना देने की अद्भुत पहल उन्होंने की।
समस्त भेदभाव को मिटाकर धर्म की रक्षा के लिए जो विचार उन्होंने दिए और जो आचार उन्होंने स्थापित किए, वे आज भी प्रेरणादायी हैं।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹