🙏 "हर घर अयोध्या, हर जीव राम" 🙏
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की प्रतीक्षा में रात में भी आंखें खुली रह गईं।भावनाओं का ज्वार आकाश को छू रहा है। पता नहीं कौन सा आकर्षण सभी का ध्यान अयोध्या की ओर खींच लिया है। स्वत:स्फूर्त उत्साह की इस बेला में सभी नाचते-गाते हुए अपनी गलियों की सफाई कर रहे हैं और घर को सजा रहे हैं। ऐसा लगता है कि हर जीव राम है और हर घर अयोध्या।
आज विश्व के कई हिस्सों में युद्ध चल रहा है। रूस-यूक्रेन और हमास-इजरायल युद्ध की विभीषिका को देखकर तो ऐसा लगता है कि काश! अयोध्या के बारे में वे जान जाते। 'अयोध्या' का अर्थ होता है-वह स्थान जहां कोई युद्ध नहीं होता। लेकिन जब तक राम अर्थात् प्रेम प्रकट नहीं होता तब तक अयोध्या नहीं बनता।
राम राम का अभिवादन करने वाली सनातन संस्कृति को जानकर आज ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू,मुस्लिम,सिख, ईसाई ये सब शब्द बाद में आए हैं। ऊं को इस्लाम ने आमीन रुप में अपनाया, ईसाईयों ने omni के रूप में तो सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने 'एक ओंकार सतनाम' के रुप में इसे स्वीकार किया। उसी ऊं को हिंदुओं ने 'राम' भी कहा। ऊं और राम दोनों के अंत में 'म' शेष बचता है,जिसे सनातन संस्कृति मूल ध्वनि मानती है। विज्ञान भी इसे स्वीकृति देता है और अपना अनुभव भी बताता है कि ऊं या राम का गुंजार करने पर दोनों ओठों के बंद होने के बाद 'म' ही बचता है।
कहने का अभिप्राय यह है कि हम सभी का मूल स्रोत कहीं एक है तभी राम की प्राण प्रतिष्ठा के स्वागत समारोह में जाति,धर्म,क्षेत्र और लिंग की दीवारें गिर गई हैं। इस संबंध में ताज़ातरीन एक संस्मरण दिल को छू लेने वाला है।अल्लाहवख्श साहब से किसी ने सीधे पूछ लिया कि हमारे राम के प्रति आपका यह उत्साह और प्यार क्या वास्तविक है?
अल्लाहवख्श साहब के जवाब ने उस सत्य का दर्शन कराया जिससे पता चलता है कि राम की प्राण प्रतिष्ठा में सभी कोई क्यूं शामिल होना चाहता है।
वे रामचरितमानस को बहुत प्रेम से पढ़ा करते थे किंतु कट्टरपंथियों के खौफ के मारे छुपाकर रखा करते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि रात को रामचरितमानस को पढ़ते-पढ़ते उनको नींद लग गई। रामचरितमानस की मोटी पुस्तक उनकी छाती पर पड़ी रह गई।चोर घर में घुस आए और एक बड़े खंजर को उन्होंने उनकी छाती पर दे मारा। खंजर रामचरितमानस को छेदकर पार तो कर गया किंतु उनके सीने में नहीं घुस पाया। दहशत के मारे वे तो सन्न रह गए और चोर उन्हें मरा समझकर छोड़ गए।
तब से अल्लाहवख्श साहब के दिल में रामचरितमानस और राम का प्रभाव ऐसा है कि वे इसे छुपा भी नहीं पाते और सरेआम बता भी नहीं पाते। किंतु अपनी भावना को शब्दों में अकेले में बता दिया और राम की प्राण प्रतिष्ठा के स्वागत में गलियों को सजाकर दुनिया को भी दिखला दिया। जब उन्हें पता चला कि 'अल्लाह बख्श' को हिंदी में 'राम प्रसाद' कहते हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उस राम के लिए हर कोई नए-नए शब्द और नई-नई संज्ञाएं चुन रहा है-
'तुम्हारे रूप के अनुरूप संज्ञाएं चयन कर लूं
तुम्हारी ज्योति किरणें देखने लायक नयन कर लूं
अभी अच्छी तरह आख़र अढ़ाई पढ़ नहीं पाया
जरा ये बांह धरती और आंखें गगन कर लूं।।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹