🙏प्राण प्रतिष्ठा की मंगल कामना🙏
"प्राणों में प्रतिष्ठित राम"
धर्म भारत का प्राण है। सनातन प्राण में राम प्रतिष्ठित हैं। इसी कारण से प्राण प्रतिष्ठा के स्वागत में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ा है, अद्भुत है। मुहूर्त शास्त्रसम्मत है या नहीं , मस्तिष्क इसकी थोड़ी बहुत फिक्र भले ही ले ले किंतु हृदय इसकी परवाह नहीं करता। क्योंकि राम नाम की महिमा ऐसी है कि कृष्ण की दीवानी मीरा भी नाच उठती है,यह कहते हुए कि -पायो जी मैंने राम रतन धन पायो.....!
राम लला जब पुलिस छावनी के बीच टाट में थे तो उस स्थल पर पहुंचकर वह अयोध्या मुझे बहुत सूनी और उदास दिखी थी, आज वही अयोध्या टीवी पर इतनी आकर्षक दिख रही है कि फिर एक बार वहां जाने को जी मचल रहा है। राम भक्तों की भावना का स्वर स्पष्ट रूप से यहीं से सुनाई दे रहा है-
'एक युग से बन रही थी कल्पना मेरी चितेरी
रूप क्या तुझको दिया है तनिक क्षमता देख मेरी।
मैं न तुझमें रंग भरती फिर तू न यूं छविमान होता
मैं न होती भावना फिर तू कहां भगवान होता?
सैकड़ों पाषाण में से तू भी एक पाषाण होता
मैं न होती भावना फिर तू कहां भगवान होता?'
बहुत ज्यादा पूजा पाठ करने वाले घर में जन्म लेने के बावजूद मैं कर्मकांड बहुत कम करता हूं।लेकिन बचपन से बाबूजी को जिस शांति और प्रेम के साथ राम नाम का जाप करते हुए और रामचरितमानस को पढ़ते हुए देखा, उसका मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। दुख हो तो राम और सुख हो तो राम कहते-कहते उनका संतुलन ऐसा सध गया कि बहुतों को उस सैनिक में संत का अक्स दिखने लगा। पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद जंगल में भी मंगल जीवन की कला उन्होंने कहां से सीखी? इस प्रश्न पर सोचता हूं तो उत्तर मिलता है-शायद राम नाम के इस व्यक्ति को राम का आधार मिल गया था। उनका मूलमंत्र था-
'सुख होवे सो हरि कृपा, दुख कर्मन का भोग
रामदास यों मारिए, मन मूरख का रोग।'
सनातन संस्कृति का मूल आधार यह राम मुसलमानों के लिए भी उतने ही आस्था का विषय है,जितना हिंदूओं के लिए। तभी तो रहीम कहते हैं-
'रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे राम
पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम।'
अर्थात् यदि कभी धोखे से भी भावपूर्वक मुंह से राम का नाम लिया जाए तो कल्याण हो जाता है।
राम के सबसे बड़े समालोचकों में से एक आधुनिक युग के सबसे बड़े रहस्यदर्शी ओशो ने भी अपनी सात किताबों का शीर्षक 'राम' नाम पर रखा है-नहीं राम बिन ठांव, रामदुवारे जो मरै, राम नाम जान्यो नहीं, पीवतराम रस लगी खुमारी, राम नाम रस पीजै, राम नाम निज औषधि, मैंने राम रतन धन पायो।
इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि प्राचीनतम युग से लेकर आधुनिकतम युग तक हर प्राण में प्रतिष्ठित राम रहे हैं- रमंते योगिन: अस्मिन् इति राम:। अगुन,अरूप,अलख,अज राम की प्राण प्रतिष्ठा भक्तों के प्रेम के कारण सगुन रूप में जन्मभूमि अयोध्या में हो रही हैं ताकि वे ज्ञानियों के साथ-साथ अपने भक्तों के लिए भी सर्वसुलभ हो सकें।
उस प्रेम के प्रतीक राम की प्राण प्रतिष्ठा प्रेम के द्वारा ही संभव है; और सिर्फ अयोध्या में ही नहीं बल्कि हर हृदय में होनी चाहिए क्योंकि संत दरिया कहते हैं-
जात हमारी ब्रह्म है,मात पिता है राम
गिरह हमारा सून में, अनहद में विश्राम।
जब तक हर घर अयोध्या नहीं बनता और हर हृदय में राम नहीं बसता तब तक जीव काम की अग्नि में जलता और सागर में रहकर भी प्यासा ही मरता।
🙏मंगल भवन अमंगल हारी🙏
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹