🙏नेताजी जयंती की शुभकामना🙏
"रामज्योति से राष्ट्रज्योति तक"
22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ जो 'रामज्योति' जलाई जा रही हैं, 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर 'राष्ट्रज्योति' प्रज्वलित करने में समर्थ हो जाए ; इस विषय पर गहरा चिंतन-मनन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विधि का ऐसा विधान किसी विशेष उद्देश्य से होता है कि इंडिया गेट पर प्रतिष्ठित सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने ही रामलला की मोहक मुस्कान वाली मूर्ति भी बनाई।भारत विविधताओं का देश है और 'विविधता में एकता' की ज्योति को जलाकर ही हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महापुरुषों ने भारत को स्वतंत्र कराया था।
नेताजी के पास विविधता में एकता की ज्योति को जलाने वाला अद्भुत मंत्र था और उस मंत्र को उन्होंने क्रियान्वित भी करके दिखाया। देश में विभाजन के भीषण लहर के बीच भी हिंदू,मुस्लिम, सिख,इसाई को संगठित कर उन्होंने 'आजाद हिंद फौज' का गठन करके दिखा दिया। आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर जब लाल किले में देशद्रोह का मुकदमा चल रहा था तो विभिन्न धर्म से जुड़े इन सेनानायकों के केस को लड़ने के लिए धर्म आधारित संगठन तैयार थे लेकिन इन सेनानायकों की सहमति से इनका केस राष्ट्र आधारित संगठन से जुड़े वकीलों द्वारा लड़ा गया और हिंदुस्तान सड़कों पर चिल्ला रहा था-
'हिंदुस्तान की एक आवाज
सहगल,ढिल्लन,शाहनवाज।'
रामज्योति का असली मतलब होता है- चेतना की ज्योति जल जाए जो सभी में एक ही है। स्वामी विवेकानंद के विराट और व्यापक हिंदू धर्म की व्याख्या से जो ज्योति सुभाषचंद्र बोस में जली थी, वह हिंदू,मुस्लिम,सिख,इसाई में कोई भेदभाव नहीं देखती थी। यहां तक कि नर और नारी में भी समान रूप से वही जलती हुई ज्योति नेताजी को दिखाई दी। तभी तो उन्होंने लक्ष्मीबाई ब्रिगेड बनाकर नारियों को भी युद्ध में लड़ने के लिए समान अधिकार दे दिया।
रामज्योति जलने का मतलब है कि मानव ही नहीं, पंक्षी,रीछ और वानर भी,यहां तक की छोटी गिलहरी भी आपको एक समान दिखाई देने लगे और आपके साथ जुड़ाव महसूस करने लगे। यदि ऐसी ज्योति जले तो वह रामज्योति राष्ट्रज्योति से भी बढ़कर चर अचर सभी को समाहित करने वाली ब्रह्माण्डीय-ज्योति होगी। तुलसी के हृदय में रामज्योति जलने पर सारा जगत सियाराममय हो गया- 'सियाराममय सब जग जानी'.
उसी ओर इशारा करते हुए कबीर ने कहा-
'कस्तूरी कुंडली बसै मृग ढूंढै बन माहि
ऐसे घट घट राम है दुनिया देखै नाहि।'
500 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद जो रामज्योति जली हैं, उसे प्रज्वलित रखने की जिम्मेदारी सभी की हैं किंतु राम भक्तों की विशेष रुप से हैं। उसके लिए विवेकानंद का विवेक भी चाहिए और नेताजी का पराक्रम भी चाहिए। श्री नरेंद्रनाथ दत्त की तरह सत्य की प्यास भी चाहिए और श्री नरेंद्र मोदी की तरह संकल्प की दृढ़ता भी चाहिए।
भारत सिर्फ एक भौगोलिक इकाई वाला देश ही नहीं, भारत एक संदेश भी है जो 'कर्मण्येवाधिकार:' के मूलमंत्र को लेकर चलता है और जो कर्तव्य की बलिवेदी पर अपना सर्वोच्च बलिदान देने के लिए सदा तैयार रहता है। प्राचीनतम व सभी के आराध्य युगपुरुष राम का जीवन हो या आधुनिकतम युगपुरुष नेताजी का जीवन हो; त्याग और तपस्या का जीवन है।रामज्योति से उपजी उत्सवता का यह क्षण परिपक्वता का क्षण भी बने, विजय का यह क्षण विनय का भी क्षण बने और राम की प्राणप्रतिष्ठा का क्षण भारत की प्राणप्रतिष्ठा का भी क्षण बने ; इसके लिए हम सभी को राम को हृदय में रखकर नेताजी के बताए मार्ग पर चलना होगा। आज के नेताजी को भी यह जानना चाहिए कि भारत राष्ट्र उनको अपना नेताजी मानता है जो अपने मन,वचन और कर्म से एक हों और राष्ट्र के लिए समर्पित हों।
पराक्रम दिवस की शुभकामना
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹