🙏गांधीशहादत को श्रद्धासुमन🙏
'मूल्यों की राजनीति या अवसरवादी राजरीति'
रहस्यदर्शी ओशो ने कहा था कि वह बहुत दुर्भाग्य का दिन होगा जब राम को काल्पनिक माना जाएगा। आश्चर्य नहीं होगा जब कुछ दिनों के बाद गांधी को भी काल्पनिक कहा जाने लगेगा। क्योंकि जब सत्ता के लिए अपनी आत्मा को बेचने वाले माननीय लोग हों तो क्षणमात्र में महल छोड़कर जंगल के लिए निकल जाने वाले राम को और मूल्यों के लिए बलिदान देने वाले सत्याग्रही गांधी को सत्ताग्रही लोग काल्पनिक नहीं मानेंगे तो स्वयं को कैसे सही ठहरा पाएंगे।
रामज्योति घर में जल गई किंतु हृदय में रामज्योति जलाने के लिए गांधी की तरह सत्य के साथ प्रयोग (experiment with truth)करना होगा। सत्य-प्रेम-अहिंसा को धर्म मानने वाले गांधी के लिए राजनीति धर्म और नैतिकता के बिना विधवा के समान है।
गोडसे ने तो सिर्फ गांधी के शरीर को गोली मारी, आज की पलटीमार राजनीति तो गांधी की आत्मा को प्रत्येक दिन मार रही हैं-
'गोडसे ने तो सिर्फ नश्वर शरीर को मारा
किंतु गांधीवाद को अमर कर दिया
गांधीवादियों ने तो सिर्फ खादी संवारा
और उन्हें पत्थरों में बेखबर कर दिया।'
गोली लगने के बाद गांधी के मुख से 'हे राम' निकला। वे राम जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और जिनके लिए कहा जाता है-
'रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाई पर वचन न जाई।'
इसी मन,वचन,कर्म की एकता के कारण मोहन महात्मा हो गए। हमारी संस्कृति ने तो मन,वचन,कर्म की एकता नहीं रखने वाले को दुष्टात्मा कहा है-
मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्
मनस्यन्यद् वचस्यन्यद् कर्मन्यन्यद् दुरात्मनाम्।
अब राजनीति में सिर्फ राज ही राज बचा है,नीति कहीं भी नहीं। अतः राजनीति की जगह 'राजरीति' शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। गंभीर चिंता की बात यह है कि जनता भी धर्मविहीन और नीतिविहीन राजरीति को अपना समर्थन देने लगी है; कभी धर्म के नाम पर, तो कभी जाति के नाम पर, तो कभी व्यावहारिकता के नाम पर, तो कभी किसी मजबूरी के नाम पर।
गांधी अंतरात्मा की आवाज सुना करते थे, आज उस अंतरात्मा की हम सभी ने हत्या कर दी है। अंतरात्मा व्यक्ति में होती हैं। आजकल तो व्यक्ति बहुत गौण हो गया , समूह प्रमुख हो गया। लेकिन जब भारत गर्व करता है तो राम और गांधी जैसे व्यक्ति पर जो आत्मवान थे। उन्होंने अपने त्याग और बलिदान से उन मूल्यों की सृष्टि की जिसे भारतीय संस्कृति कहते हैं।
भारतीय संस्कृति की राजनीति अब पश्चिमी संस्कृति की मैकियावेली-रीति पर चल रही है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'प्रिंस' में मैकियावेली ने जिस राजनैतिक- अवसरवादिता को महिमामंडित किया था, उसका चरम रूप आज भारत में देखा जा रहा है।मैकियावेली-राजरीति अपनाने वाले नेताओं को एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि मैकियावेली की पुस्तक 'प्रिंस' को सभी राजाओं ने पढ़ा,किंतु मैकियावेली को अपने पास स्थान नहीं दिया। क्योंकि शातिर राजनीतिज्ञों को भी यह डर लगा कि जिसके विचार इतने खतरनाक हैं,उसका व्यवहार कितना खतरनाक हो सकता है।
गांधी की समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने का अधिकार तो उन्हें मिलना चाहिए जो मूल्यों की राजनीति करते हों।गांधी की आत्मा तो आज भी यही कह रही है-
निश्चिंत रहो,जब तक खड़ा हूं तिमिर के तट पर
कभी भी रोशनी को खुदकुशी करने नहीं दूंगा
तुम्हें आश्वस्त करता हूं पदार्थों के छली युग को
कभी भी आत्मा का तेज मैं हरने नहीं दूंगा।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹