संवाद
"नापाक लोकतंत्र में नैतिक-शिक्षा कैसे?"
लोकसभा का चुनाव होना है।लोकसभा का ध्येयवाक्य है-'धर्मचक्र प्रवर्तनाय'.
उस ध्येयवाक्य को हृदय में रखते हुए और राजनीति में नैतिकता का मापदंड निर्धारित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने संसद में कहा था कि जोड़-तोड़ और अनैतिक गठबंधन से जो सत्ता मिलती हो,उसे मैं चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। सचमुच वाजपेयी जी ने अपने वचन और नैतिक मूल्य पर अडिग रहते हुए एक वोट से सत्ता गंवा दी किंतु भारत के एक चिर आदर्श को पुनर्जीवित कर दिया, जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने जीवन मूल्यों से स्थापित किया था।श्री राम जी ने कहा था -
'न भीतोमरणादस्मि केवलं दूषितो यश: ...'
अर्थात् मैं मरने से नहीं डरता केवल अपयश से डरता हूं।
पश्चिमी संस्कृति के लार्ड एक्टन की परिभाषा थी कि सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट कर देती है किंतु पूर्वी संस्कृति के पुरोधा प्रभु श्री राम को सत्ता भ्रष्ट नहीं कर पाई। राजनीतिरुपी कीचड़ में ही रामरुपी कमल खिलता है, जब हृदय में सत्य-प्रेम-सेवा विद्यमान हो।
कमलवत खिले अटल जी भी कीचड़ से घिरे हुए थे तभी तो उन्होंने लिखा था-
'बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज,सच से भय खाता हूं।
लगी कुछ ऐसी नजर,बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं।।'
आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अनैतिक-लोकतंत्र में नई पीढ़ी को नैतिक-शिक्षा कैसे प्रदान की जाए? लोकतंत्र में नेता सबसे ज्यादा चर्चित और सबसे ज्यादा मीडिया कवरेज पाने वाले व्यक्तित्व हो गए हैं। नई पीढ़ी उनके जीवन और कर्मों को देखती हैं, उनके शब्दों और प्रदर्शनों को नहीं।
नई पीढ़ियां देख रही हैं कि लोकतंत्र के नाम पर पाकिस्तान में क्या हो रहा है और किस प्रकार बड़े से बड़े पदों पर बैठे हुए लोग छोटे से छोटे षड़यंत्रों में आकंठ डूबे हुए हैं। यह भी देखने में आया कि किस प्रकार से पाकिस्तान में रावलपिंडी के मुख्य चुनाव आयुक्त ने अंतरात्मा की आवाज सुनकर प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और उसमें इस्तीफा भी दिया और कहा कि पिछले एक डेढ़ साल से उन्होंने तमाम सारी गड़बड़ियां सरकार के इशारे पर की,जिसके लिए मुझे और इस प्रकार के काम करने वाले सभी को सरेआम फांसी पर लटकाया जाए। और फिर किस प्रकार से वे अपनी अंतरात्मा की आवाज से एकदम पलट जाते हैं।
भारत में भी लोग देख रहे हैं कि..... किस प्रकार से एक चुनाव अधिकारी ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में धांधली की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र की हत्या कहा। राजनीतिक चंदे की शुचिता और पारदर्शिता को ध्यान में रखकर बनाया गया इलेक्टोरल बॉन्ड का कानून सुप्रीम कोर्ट की नजर में असंवैधानिक है। किस तरह मूल्यों को ताक पर रखकर अनैतिक गठबंधन बनाया जा रहा है और दलबदल किया जा रहा है ; इसके बाद सार्वजनिक जीवन में सर ऊंचा उठाकर के ऊंची आवाज में अपने कदम को सही ठहराया जा रहा है। इससे भी गंभीर बात यह है कि ऐसे कदमों के समर्थन में समाज भी आगे आ रहा है।
एक समय था कि अपनी कही हुई बातों से उलट जाने पर व्यक्ति अपनी ही नजरों से गिर जाता था। आज तो कहीं गई बातों से मुकर जाने वाला न तो अपनी नजरों में गिरता है और न समाज की नजरों में ; इसके विपरीत वह तो आंखों में आंखें डालकर सबके सामने सम्मान प्राप्त कर रहा है।
मीडिया भी इसे अच्छे शब्दों से नवाज रहा है और कूटनीति बता रहा है। जिसके पास संसाधन और सत्ता है , वह अपने गलत कदमों के पक्ष में इतने तर्क जुटा लेता है कि नैतिकता की बात करने वाले सोचने लगते हैं कि इस व्यक्ति को गलत समझ कर कहीं हम भूल तो नहीं कर बैठे।
शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि एक तरफ वे मूल्यों से गिरते हुए ऊंचे-ऊंचे लोगों को देख रहे हैं और दूसरी तरफ कागज पर लिखे हुए ऊंचे-ऊंचे शब्दों की ऊंची भावना को देख रहे हैं। ऐसे में कोई शिक्षक नैतिक शिक्षा कैसे प्रदान करे?
भारत के साथ सबसे बड़ी कशमकश यह है कि यहां मन-वचन-कर्म की एकता वाले पूर्वजों का हमेशा नाम लिया जाता है और दूसरी तरफ ऐसे लोग खड़े हैं जिनके मन-वचन-कर्म की दूरियां इतनी बढ़ गई हैं कि उन्हें देखकर भविष्यवाणी करने वाले भी अब कुछ बोलने से डरते हैं।
एक बच्चे ने अपने शिक्षक से पूछा कि सत्य,प्रेम, अहिंसा की राजनीति करने वाले गांधी जिस रामराज्य की बात करते थे और अभी हम सभी ने जिस रामज्योति को जलाया , वह कहां दिखाई दे रहा है? मैंने सुना है कि वह शिक्षक ढूंढने निकला है ताकि लौटकर बच्चे को यह बता सके कि अटलमूल्योंवाले इंसान आज भी हैं।
हम सभी दुआ करें कि वह शिक्षक जिंदा लौट सके और बच्चे को अपना जवाब दे सके।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹