🙏महाशिवरात्रि व महिला दिवस की शुभकामना🙏
'सत्यम्-शिवम्-सुप्रियम्' वाली शिक्षा'
महाशिवरात्रि और महिला दिवस का यह शुभ दिन पारिवारिक विघटन के कारण अवसाद और आत्महत्या की ओर बढ़ते विश्व को बहुत कुछ दे सकता है। अर्धनारीश्वर का हमारा सांस्कृतिक प्रतीक यह संदेश देता है कि नर और नारी परस्परपूरक है, प्रतिस्पर्धी नहीं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 के लिए जो थीम है- 'इंस्पायर इंक्लूजन', वह भी यही कहता है कि 'समावेशी-भाव' को प्रेरित करो।
सबसे बड़ा सवाल है कि शिक्षा के गिरते हुए स्तर को देखते हुए क्या अर्धनारीश्वर का जगत या सर्वसमावेशी जगत का निर्माण हो सकता है?
सरकारी शिक्षा की घोर उपेक्षा के कारण शिक्षकों से मानव निर्माण की जगह वह काम लिया जा रहा है जो कदाचित शिक्षावृत्ति के लिए अनुकूल नहीं है। विद्यार्थी को लाभार्थी बनाया जा रहा है और शिक्षक को सेवार्थी। कन्या महाविद्यालय की बालिकाएं कह रही हैं कि एक तो सारे सब्जेक्ट की पढ़ाई नहीं हुई और दूसरी परीक्षा में गैप भी नहीं दिया गया,जिसके कारण हम सभी भयंकर तनाव से गुजर रहे हैं;फिर महाशिवरात्रि और महिला दिवस मनाने का क्या औचित्य है?
ज्ञानप्रधान भारतीय संस्कृति के आदर्शों को अपनाए बिना हम एक "सत्यम् शिवम् सुप्रियम्" जगत का निर्माण नहीं कर सकते। 'सत्य' यह है कि माता-पिता के मिलन से ही जन्म संभव होता है। किंतु जन्म ही पर्याप्त नहीं है,सत्य के साथ 'शिव' चाहिए। जब तक दांपत्यजीवन में प्रेम और समर्पण शिव-पार्वती के समान नहीं हो तो जीवन शिवत्व अर्थात् कल्याण की ओर नहीं बढ़ सकता। अहंकारी,भ्रष्टाचारी और व्याभिचारी संतानों को देखकर हम आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि सत्य और शिव से इतर दांपत्यजीवन ही इसके लिए जिम्मेवार है। कोटा कोचिंग में विद्यार्थियों की आत्महत्या के लिए भी मां-बाप की महत्वाकांक्षा को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरदायी माना।
भारतीय संस्कृति मानती हैं कि सत्य और शिव के साथ 'सुप्रियम्' तत्व हो तो जीवन पूर्णरूपेण खिल सकता है। नर के लिए शिक्षा के सुप्रिय विषय विज्ञान,गणित और वाणिज्य हो सकते हैं क्योंकि उनकी प्रवृत्ति महत्वाकांक्षा केंद्रित होती हैं। लेकिन नारी के लिए शिक्षा के सुप्रिय विषय काव्य ,संगीत और कला होंगे क्योंकि उनकी प्रवृत्ति प्रेम केंद्रित होती है। कुछ अपवाद हो सकते हैं जो नियम को पुष्ट ही करते हैं।आज जगत में जो हिंसा व गलाकाट-प्रतियोगिता का तांडव दिखाई दे रहा है, उसके मूल में शिक्षा की दयनीय स्थिति और एकांगी शिक्षा भी है।
नारी जगत प्रेम का जगत है जबकि राजनीति का जगत खालिस महत्वाकांक्षा का जगत है जो आज शीर्ष पर बैठ गई है। विश्व गुरु भारत में अंधकार को दूर करने वाला गुरु शीर्ष पर होता था, जिसके कारण राम जैसे राजा पैदा होते थे और जिनके मार्गदर्शन में अयोध्या की राजनीति चलती थी। वशिष्ठ,विश्वामित्र,शतानंद और अष्टावक्र जैसे गुरुओं के कारण राम-लक्ष्मण-भरत जैसे विनयशील नर और सीता तथा उर्मिला जैसी सहगामिनी और त्यागिनी नारियां पैदा होती थीं। अर्धनारीश्वर से प्रेरित सुंदर दांपत्य वाले जीवन में ऐसी सुंदर संतानें पैदा होती थीं जो 'सत्यम्-शिवम्-सुप्रियम्' के अन्वेषण से जीवन को सफल और सुफल बनाती थीं।
2013 में यूपीएससी के सिलेबस में 'एथिक्स' को जोड़ा गया क्योंकि नौकरशाहों के जीवन में नैतिकता का क्षरण हो रहा था, इसके बाद सभी राज्य आयोगों ने इसे अपना लिया। आश्चर्य की बात है कि नौकरशाही को निर्देशित और नियंत्रित करने वाले हमारे नीति-निर्माताओं के लिए न कोई योग्यता निर्धारित है और न कोई शिक्षा, सिर्फ बहुमत पाना पर्याप्त है। महत्वाकांक्षा केंद्रित राजनीतिक जीवन में प्रेम केंद्रित व्यक्तित्व वाली नारियां कैसे टिक पाएंगी? पितृसत्तात्मक समाज में सरपंच पति की प्रचलित अवधारणा यही बताती है कि नारियां राजनीति में सिर्फ मोहरा बनकर रह जाती हैं-
'जो भींग चुका हो वो भला किस बात से डरता
जो घर में खड़ा था , उसे बरसात का डर था
जिंसों का तो बाजार में बिकना था जरूरी
बाजार में बिकते हुए जज्बात का डर था।।'
शिव-पार्वती के समान दांपत्य जीवन के लिए और सर्वसमावेशी भाव को विकसित करने के लिए 'सत्यम् शिवम् सुप्रियम्' की ओर ले चलने वाली शिक्षा से बढ़कर और क्या माध्यम हो सकता है, जो महाशिवरात्रि और महिला दिवस को सार्थक और सुफल बनाए।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹